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राष्ट्रीय शिक्षा नीति: विचारों और सुझावों के समागम का फल

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 कार्यान्वित होने के प्रक्रिया में है। अनेक विश्वविद्यालयों एवं राज्य...
राष्ट्रीय शिक्षा नीति: विचारों और सुझावों के समागम का फल

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 कार्यान्वित होने के प्रक्रिया में है। अनेक विश्वविद्यालयों एवं राज्य सरकारों ने इसके कार्यान्वयन के लिए समितियाँ बना दी है। अनेक संस्थाएं क्रियान्वयन समितियाँ बनाने की प्रक्रिया में है। अभी हाल ही में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के निर्माण की प्रक्रिया को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने सराहा है। उसके प्रतिनीधि ने इसे दुनिया के सर्वाधिक राय, विचार संकलन एवं अनेक जुड़े पक्षों से संवाद के बाद विकसित हुए शिक्षा नीति के रुप में सराहना तो की ही है, साथ ही इसे सफलतापूर्वक विकसित कर लागू करने के लिए भारत के शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘‘निशंक’’ को सम्मानित भी किया है। अनेक मीडिया रिपोर्टस के अनुसार कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैश्विक प्रबंध निदेशक श्री रॉडर्स स्मिथ ने शिक्षा नीति के निर्माण में जनसंवाद की  प्रक्रिया की व्यापकता एवं विस्तार परकता को रेखांकित किया है। नीतियों के निर्माण में जनता के विविध पक्षों के साथ संवाद कर उनकी राय एवं विचारों का संकलन कर उन्हें नीति निर्माण में जगह देना भारतीय प्रशासन की एक खूबी रही है। नीति निर्माण में जन सहभागिता की इतनी व्यापक प्रक्रिया शायद ही किसी देश में चलाई जाती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसदीय चर्चाओं के साथ नीति निर्माण में जन सहभागिता सुनिश्चित करना भारतीय लोकतंत्र की एक विशिष्टता है। अन्य पश्चिमी लोकतंत्र में शायद ही नीति निर्माण की इतनी विस्तृत प्रक्रिया हमें मिले। शायद इसीलिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय जिसकी गणना अकादमिक तौर पर दुनिया के पाँच सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में होती है। जिससे जुड़े अब तक 85 विद्वान नोबेल प्राइज से सम्मानित हो चुके हैं, ने प्रभावित होकर भारत में हाल ही में लागू किए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के लिए भारत के शिक्षा मंत्रालय के प्रयासों की सराहना करते हुए शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘‘निशंक’’ को सम्मानित किया है।

अगर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के निर्माण के प्रक्रिया का अध्ययन करें तो इसमें कई स्तरों पर जनसंवाद संकलित करने की कोशिश की गई। इसके लिए आधार तल पर कन्सल्टेशन के लिए गाँव से राज्य स्तर पर संवाद आयोजित किए गए। शिक्षा मंत्रालय के एक आँकड़े के अनुसार इसके लिए लगभग ढाई लाख ग्राम पंचायतों, 6600 ब्लाक्स, 6000 नगरीय निकाय, 676 जिलों और 36 राज्य एवं यूनियन टेरिटरीज से राय मांगी गई। शिक्षा मंत्री (तब के मानव संसाधन मंत्री) ने राज्य सरकारों के साथ अलग से संवाद आयोजित किया। राष्टीªय शिक्षा नीति-2020 के रचना के क्रम में विषय वस्तु आधारित विशेषज्ञों के पैनल से भी सुझाव लिए गए। जुलाई-अक्टूबर, 2015 के बीच यू.जी.सी., एन.सी.आर.टी., ए.आई.सी.टी., विश्वविद्यालय, सिविल सोसाइटी, स्वायत्त संस्थाओं, छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों से राय मांगी गई। मंत्रालय ने देश के 6 क्षेत्रों में जोनल मीटिंग कर इसके लिए सुझाव संकलित किए। जिनके आधार पर भूतपूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर. सुब्रह्मनियम की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय समिति ने इन सुझावों का सार संकलन कर अनेक अन्तःदृष्टिपूर्ण मुद्दों की तलाश की। इनके आधार पर प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. के. कस्तुरी रंगन के नेतृत्व में बनी ड्राफ्ट समिति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को आकार दिया, जिसमें अन्य शिक्षा विदों के साथ ही जनजातीय मुद्दों के विशेषज्ञ प्रो. टी. वी. कट्टीमनि एवं दलित समाज एवं शिक्षा से जुड़े ज्ञान के प्रतिनीधि विशेषज्ञ भी शामिल किए गए।

इस प्रकार अनेक स्तरों पर संवाद कर, सुझाव संकलित कर भारतीय राज्य के शिक्षा प्रशासन से जुड़ी संस्थानों ने मिल-जुल कर इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आकार दिया है। पश्चिमी समाज एवं पश्चिमी विश्व विद्यालयों के लिए शायद यह एक अनूठा अनुभव हो, जहाँ के नीति निर्माण में विशेषज्ञ तो शामिल होते हैं, परन्तु उसमें जनता के विभिन्न पक्षों की सहभागिता इतने विस्तृत स्तर पर नहीं हो  पाती। होती भी है तो विभिन्न मुद्दों पर विचार संकलन के लिए वहाँ के मेट्रोपोल यथा कैम्ब्रिज, ऑक्सफोर्ड, एडिनबरा के विद्वान, छात्र एवं जननेता ही विमर्श का हिस्सा हो पाते हैं। उनके छोटे-छोटे देहातों (कन्ट्रीसाइड) में बसी आबादी का शिरकत शायद नीति निर्माण के प्रक्रिया में उतना गहन नहीं हो पाता, जैसा कि भारत में सम्भव होता है। जितनी सामाजिक विविधता भारत में है, विविध जरूरतों से उभरे विचारों की जितनी उपलब्धता भारत में है, वह दुनिया के अन्य देशों में शायद ही हो। पश्चिमी समाजों में विचारों की एकायामिता होती है, जबकि भारत में विचारों की विविधता पाई जाती है। भारत की यही विविधता उन समाजों के बौद्धिकों एवं नीतिनिर्धारकों को चमत्कृत करती है। किन्तु यही भारतीय समाज एवं प्रशासन के लिए चुनौती भी है। विभिन्न विचारों एवं सुझावों को पहले जानना, फिर उन्हें समझना, फिर उन्हें नीति निर्माण की मूल आत्मा में शामिल कर लेना एक अत्यंत दुरूह कार्य है। अगर पश्चिमी शिक्षा जगत को यह लगता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में यह सब हो सका है तो यह भारतीय समाज के शैक्षिक सशक्तिकरण के अभियान के लिए यह खुशी की बात ही मानी जानी चाहिए।

(लेखक इलाहाबाद स्थित जी.बी.पंत इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हैं)

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