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जानें दुनिया के मूक-बधिर लोगों को जुबान देने वाले चार्ल्स मिशेल डे एल एपी के बारे में

24 नवंबर यानी दुनियाभर के मूक-बधिर लोगों के लिए बहुत खास दिन। इसी दिन दुनिया तो साइन लैंग्वेज देने वाले...
जानें दुनिया के मूक-बधिर लोगों को जुबान देने वाले चार्ल्स मिशेल डे एल एपी के बारे में

24 नवंबर यानी दुनियाभर के मूक-बधिर लोगों के लिए बहुत खास दिन। इसी दिन दुनिया तो साइन लैंग्वेज देने वाले शख्स चार्ल्स मिशेल डे एल एपी का जन्म हुआ था। फ्रांस के शिक्षाविद् चार्ल्स मिशेल डे एल एपी ने दुनिया में बधिरों को उनकी जुबान दी थी। आज उनका 306वां जन्मदिन है।

बधिरों के पिता कहे जाते थे एपी

एपी ने फ्रांस में बधिरों के लिए दुनिया का पहला पब्लिक स्कूल खोला था। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी साइन लैंग्वेज की वर्णमाला तैयार करने में लगा दी थी। जानकारी के मताबिक, उन्होंने बधिरों को पढ़ाने के लिए टीचरों के लिए एक टीचिंग मेथड भी ईजाद किया। इसलिए उन्हें 'Father Of The Deaf' यानी बधिरों का पिता कहा जाता है।

एपी के 306वें जन्मदिन पर गूगल ने भी किया याद

चार्ल्स मिशेल डे एल एपी के 306वें जन्मदिन पर गूगल ने उनके सम्मान में एक डूडल बनाया है। इस डूडल में गूगल की स्पेलिंग को साइन लैंग्वेज के अक्षरों से स्पेल किया गया है।

यहां से मिली थी एपी को प्रेरणा

चार्ल्स मिशेल डे एल एपी का जन्म 1712 में 24 नवंबर को वर्साय हुआ था। उनके पिता आर्किटेक्ट थे। उन्होंने पहले थियोलॉजी यानी धर्मशास्त्र और कानून की पढ़ाई की। इसके बाद वो पेरिस में चैरिटी के काम करने लगे। इसी दौरान वो पेरिस के स्लम में रहने वाली दो बहनों से मिले, जो बधिर थीं। वो आपस में इशारों की भाषा में बात करती थीं। उन्हें देखकर ही एपी को इस दिशा में काम करने की प्रेरणा मिली।

मिशेल एक सुखी संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते थे, लेकिन उन्होंने पढाई को छोड़कर कैथोलिक का रास्ता अपनाया। हालांकि वो यहां भी ज्यादा दिन नहीं टिक सके, क्योंकि उनकामन हमेशा से गरीबों की मदद के लिए आगे आना चाहता था। वो गरीबों की परेशानियों को कम करना चाहते थे। वो उनके पास जाते। उनसे उनकी तकलीफों के बारे में पूछते और फिर उसे कम करने के लिए कोशिशों में जुट जाते थे।

उस वक्त मूक-बधिर लोगों को काफी हीनता के साथ देखा जाता था। ऐसे में वक्त में एपी ने उनकी जिंदगी सुधारने का फैसला कर लिया।

पैसे लेने का आरोप न लगे इसलिए स्कूल चलाने के लिए नहीं लेते थे पैसे

चार्ल्स मिशेल ने 1760 में दुनिया का पहला मूक-बधिरों के लिए पब्लिक स्कूल (Institution Nationale des Sourds-Muets à Paris) खोला था। इस स्कूल का पूरा खर्च वो खुद उठाते थे। वो कहते थे कि ये सबकुछ अमीरों के लिए नहीं, बस गरीबों के लिए हैं। मैंने अपनी जिंदगी उनको समर्पित की है। अगर ये इनके लिए नहीं होता, तो मैं कभी इस दिशा में काम नहीं करता। वो स्कूल चलाने के लिए अमीरों से पैसे भी नहीं लेते थे ताकि उनपर पैसे लेने का आरोप न लगे।

मानवता के हित के लिए काम करने वाले सम्मान से सम्मानित हुए एपी

एपी ने बधिरों के लिए साइन लैंग्वेज बनाई ताकि दूसरे जो काम अपने कान से कर पाते हैं, वो अपनी आंखों से कर पाएं। फ्रेंच नेशनल असेंबली ने उन्हें 'Benefactor of Humanity' यानी मानवता के हित के लिए काम करने वाले का सम्मान दिया। उनकी कोशिशों के चलते ही फ्रांस में बधिरों को बाकी नागरिकों के अधिकार मिले।

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