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जौन एलिया: जवां दिलों की धड़कन

अदबी दुनिया का ऐसा कोई जमावड़ा नहीं, जहां जौन एलिया की चर्चा न होती हो। आलम यह है कि आज चाय की टपरी से...
जौन एलिया: जवां दिलों की धड़कन

अदबी दुनिया का ऐसा कोई जमावड़ा नहीं, जहां जौन एलिया की चर्चा न होती हो। आलम यह है कि आज चाय की टपरी से लेकर पान के खोखे तक हर अगला नौजवान जौन की शायरी कहता सुनाई देता है, भले ही उसे शब्दों का सही अर्थ न पता हो। फिर भी वह उससे जुड़ा रहता है। इसका कारण है जौन की शायरी का अलग अंदाज, जो युवाओं के अंतर्मन को झकझोर देता है। जौन को चाहने वाले उनकी शायरी से हर एक सतह पर जुड़ते जाते हैं। इसीलिए मौत के दो दशक बाद भी लोग उनके कहे को इतनी शिद्दत से याद करते हैं। उनकी शायरी किसी रवायत की पाबंद नहीं थी। यह एक ऐसा शायर है जो खुद की हद में कभी नहीं बंधा और जिंदगी भर रवायतों का विरोध करता रहा। वह परंपरा को तोड़ने वाले शायर थे। उनका एक शेर देखिएः

 

मेरा फ़िहरिश्त से निकाल दो नाम

 

मैं तो ख़ुद से मुकर गया कब का

 

जौन जब कराची के मंच से गजल पढ़ते थे, उन दिनों पाकिस्तान की शायरी का परिदृश्य दुनिया के फलक पर बहुत मजबूत था। जहां फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, कतील शिफ़ाई, अहमद फराज़, मदनी, मुनीर नियाज़ी, इब्ने सईद, जमीलउद्दीन आली, अहमद मुश्ताक, ज़फ़र इकबाल और मोहसिन एहसान जैसे शायर गजल पढ़ रहे हों, वहां कोई नौजवान उर्दू के परंपरागत लहजे को तोड़ने का दुस्साहस कैसे कर सकता था? लेकिन जौन ने उस जबान को न केवल तोड़ा, बल्कि उसे अपने सांचे में भी ढाला और बोलचाल की भाषा में शेर लिखे। जाहिर है, नौजवानों ने जौन की इस शैली को खूब पसंद किया।

 

इसीलिए आज का नौजवान जब हताश होता है और दूर-दूर तक उसे कोई रास्ता नहीं सूझता तब वह जौन के पास जाता है और उनके लहजे में अपनी नाउम्मीदी को पूरी ताकत से सिस्टम के मुंह पर मार देना चाहता है। जौन की शायरी उसकी बिखरी हुई जिंदगी को समेटने के काम आती है। जौन जब कहते हैं, ‘तुम्हारा हिज्र मना लूं अगर इजाज़त हो / मैं दिल किसी से लगा लूं अगर इजाज़त हो’, तो युवाओं के अंतर्मन में उतर जाता है। जौन झूठ भी बोलते हैं तो सुनने वाला उसे बड़ी सहजता से स्वीकार कर लेता हैः

 

तुम मेरा दुख बांट रही हो, मैं खुद में शर्मिंदा हूं

 

अपने झूठे दुख से तुम को कब तक दुख पहुंचाऊंगा

 

एहद-ए-रफ़ाक़त ठीक है लेकिन मुझको ऐसा लगता है

 

तुम तो मेरे साथ रहोगी मैं तन्हा रह जाऊंगा

 

जौन के प्रति नौजवानों के प्रेम का एक कारण यह भी है कि उनके यहां विजुअल का संसार है। उनकी इमेजरी खयालों को आकार देती है। ज्यादातर शायरों के पास इतना सरल लहजा नहीं था जिससे नौजवान अपनी कशमकश को शब्द दे पाते। इसके अलावा, जौन जमीन की बातें करते हैं, हवा में नहीं उड़ते, ‘अपना रिश्ता ज़मीं से ही रक्खो, कुछ नहीं आसमां में रक्खा।’ और जमीन पर दुख के अलावा कुछ नहीं है। और हर आदमी अपने दुख में आज अकेला है। जौन उसके अकेलेपन को साझा करते हैं, जब कहते हैंः 

 

दुनिया मेरे व़ुजूद की आशोब-गाह है

 

और इस दुनिया में तन्हा खड़ा हूं मैं

 

जौन के अजीज़ अनवर शूर बिल्कुल सही कहते थे, “हमें याद नहीं है कि हमने जौन को कभी किसी चीज के लिए खुश देखा हो।”

 

जिस तादाद में जौन के चाहने वालों की संख्या इस दौर में बढ़ी है, निस्संदेह कहा जा सकता है कि लोकप्रिय शायरी में ये जौन एलिया का दौर है। उनकी नब्ज आने वाले जमाने पर थी, जहां इनसान के दुखों को शायरी के अलावा कहीं और पनाह नहीं मिलनी थी। वे जानते थे कि तमाम मकबूल शायर जमाने से रुखसत हो चुके होंगे, पर उनका फिराक धड़कते जवां दिलों में जिंदा रहेगा।

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