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इंटरव्यू।। "बिहार में रहता तो पर्सनेलिटी डेवलप नहीं हो पाती, पहली बार प्रिलिम्स भी नहीं निकला", UPSC टॉपर शुभम से जानें IAS बनने की पूरी स्ट्रेटजी

“कटिहार के शुभम कुमार ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) 2020 में कुल 761 सफल उम्मीदवारों में पहला स्थान...
इंटरव्यू।।

“कटिहार के शुभम कुमार ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) 2020 में कुल 761 सफल उम्मीदवारों में पहला स्थान प्राप्त किया है।”

बिहार के छोटे से शहर कटिहार के शुभम कुमार ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) 2020 में कुल 761 सफल उम्मीदवारों में पहला स्थान प्राप्त किया है। बकौल शुभम, उन्हें सफलता की उम्मीद तो थी लेकिन रैंक वन मिली तो सहसा यकीन कर पाना मुश्किल था। बिहार से आइएएस-आइपीएस की लंबी फेहरिस्त से राज्य एक बार फिर गदगद है। आउटलुक के नीरज झा से बातचीत में उन्होंने अपनी मेहनत, मां-पिता के सकारात्मक सहयोग की चर्चा की। प्रमुख अंशः

आपने आइएएस बनने का सपना कब से देखना शुरू किया?

पापा बैंक में हैं। मध्यवर्गीय होने के नाते प्लान बी के तहत मैंने आइआइटी बॉम्बे में एडमिशन लिया था, ताकि कुछ न हो तो जॉब कर सकूं। लेकिन, आइएएस बनने का सपना बचपन से था। जनवरी 2018 में तैयारी शुरू की थी। 5 महीने बाद प्रिलिम्स भी नहीं निकला, लेकिन 2019 की परीक्षा में 290 रैंक आई। अभी फरीदाबाद के बाद पुणे में इंडियन डिफेंस अकाउंट सर्विसेज की ट्रेनिंग चल रही थी। इसी दौरान मैंने इंटरव्यू की तैयारी की।

कटिहार से पुणे और अब यूपीएससी में पहला रैंक, कैसा रहा ये सफर? बिहार को 20 साल बाद टॉपर मिला है।

सफर चुनौती भरा और संघर्षपूर्ण रहा। मैंने अलग-अलग जगहों से- पहली कक्षा तक गांव में, उसके बाद पटना में पांचवी तक पढ़ाई की। फिर पूर्णिया से दसवीं और बोकारो से साइंस में बारहवीं पास की। मेरा सिलेक्शन आइआइटी बॉम्बे में हो गया। सिविल इंजिनियरिंग से ग्रेजुएशन किया। इस दौरान कई तरह के अनुभव और अच्छे लोग, बेहतर वातावरण मिलता गया। मेरी पर्सनेलिटी डेवलप हुई, जो शायद बिहार में नहीं हो पाती। गांव में संसाधन नगण्य थे। अब कुछ सुधार हुआ है। यह बिहार और मेरे लिए गर्व की बात है कि मैंने टॉप किया है। इससे राज्य और बाकी जगहों के बच्चों को प्रेरणा मिलेगी, जो मेरे लिए सबसे खुशी की बात है।

सफलता के पीछे परिवार का कितना योगदान रहा?

हमारा संयुक्त परिवार है। कभी डर नहीं लगा कि मैं सफल नहीं हुआ तो क्या होगा? एकाग्र होकर पढ़ाई कर सकूं, इसलिए घर की कोई भी समस्या मेरे तक नहीं पहुंचती थी। माता-पिता हमेशा सकारात्मक बातें ही किया करते थे।

कोई ऐसा मोड़ जब आप हतोत्साहित हुए हों?

नहीं, ऐसा मुझे कभी लगा नहीं। खुद पर भरोसा था। दोस्तों ने भी भरपूर साथ दिया। एकाध बार जरूर मन उदास हुआ, पर मेरे इर्द-गिर्द इतने सकारात्मक लोग थे कि मैं कभी रुका नहीं। मॉक टेस्ट में बहुत खराब मार्क्स आते थे। लेकिन, अच्छा लगता था और पता चलता था कि मेरी कमजोरी कहां है? हमें कमजोरियों से भागना नहीं चाहिए। गलतियों से सीखना चाहिए।

आपका मीडियम क्या रहा? आपने कैसे तैयारी की, ऑनलाइन, सेल्फ-स्टडी या कोचिंग?

शुरू से अंग्रेजी में ही पढ़ाई हुई है, इसलिए मीडियम यही था। मुझे इसके बारे में कोई आइडिया नहीं था। इसलिए पहले साल दिल्ली में कोचिंग ली। उसके बाद टेस्ट-सीरीज ज्वाइन की। कोविड टाइम में इंटरनेट के जरिए कंटेंट तैयार कर रिवाइज किया। अब ऑनलाइन, तैयारी का एक बेहतर जरिया है। हम इसका अधिक-से-अधिक इस्तेमाल कर सकते हैं। मेरे साथ और दोस्त भी तैयारी कर रहे थे, जिसका मुझे बहुत फायदा मिला।

इस बार भी हिंदी मीडियम के छात्रों का रिजल्ट बेहद निराशाजनक रहा। कहां कमी है?

मैं यह नहीं मानता हूं कि उनमें काबिलियत नहीं है। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कहना चाहूंगा।

आप पहली कक्षा में ही पटना क्यों चले गए?

मुझे याद है, मेरे एक शिक्षक ने मेरा एक जवाब गलत बताया था, मुझे विश्वास था मैं सही हूं। इसके बाद मैंने पापा से बोला कि मैं बाहर जाना चाहता हूं। फिर मैंने पटना में हॉस्टल में रहकर पांचवी तक पढ़ाई की।

फिर से राज्य के दर्जनों छात्र परीक्षा में सफल हुए हैं। क्या बिहार को आइएएस की फैक्ट्री बोल सकते हैं?

नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता है। छात्र तो हर जगह से सफल हो रहे हैं। बीच के कुछ वर्षों में राज्य का रिजल्ट थोड़ा कम रहा है। अच्छा है, यहां के छात्र बेहतर कर रहे हैं। एक बदलाव दिख रहा है। ‘साहब’ अब शहरों की अपेक्षा गांव से और आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से निकल रहे हैं। भारत गांव में ही बसता है और यहां अधिक आबादी रहती है। इन इलाकों से अधिक छात्र निकल रहे हैं तो यह नौकरशाही के लिए बेहतर है। गांव का अनुभव जमीनी सुधार लाने में मदद करता है। संघर्ष से रुकावटों की हर दीवार टूट जाती है, चाहे आर्थिक हो या फिर सामाजिक।

फिर राज्य में शिक्षा और बुनियादी व्यवस्था इतनी जर्जर क्यों है?

हां, स्थिति निराशाजनक तो है। लेकिन, पहले से अब कुछ सुधार हुआ हैं। इसके लिए जरूरी है कि सरकारी फंड का सही तरीके से इस्तेमाल करे। नई शिक्षा नीति और इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमें ध्यान देना होगा।

आप किस काडर में जाना चाहेंगे?

बिहार काडर ही पसंद करूंगा। उम्मीद है कि मुझे वह मिले। उसके बाद मध्य प्रदेश। लेकिन, मुझे जहां काम करने का मौका मिलेगा, पूरी क्षमता के साथ करूंगा।

आपको कटिहार की कमान सौंपी जाती है तो आप किन-किन समस्याओं पर पहले ध्यान देंगे?

छुट्टियों में गांव आता रहता हूं। जिले में हेल्थ और एजुकेशन की सबसे ज्यादा दिक्कतें हैं। हरियाणा में कम खर्च में एक ‘सक्षम’ कार्यक्रम चलाया जाता है। इससे यहां कई सुधार हुए हैं। मैं चाहूंगा कि इस तरह के अन्य सफल कार्यक्रम को अपने क्षेत्र में लागू करूं, ताकि स्थिति बेहतर हो।

अब नौकरशाहों पर राजनीतिक दबाव कितना है?

नौकरशाह  स्थायी हैं जबकि नेता-मंत्री अस्थाई होते हैं। वे बदलते रहते हैं। दोनों के बीच तालमेल होना चाहिए। किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए दोनों का महत्वपूर्ण योगदान है।

लेकिन नौकरशाहों में भी तानाशाही, क्रूरता जैसे रवैये बढ़ते देखे जा रहे हैं। इस पर क्या कहेंगे?

मैं बस इतना कहूंगा कि किसी अधिकारी को हर वक्त धैर्यपूर्वक और लोगों के हितों को ध्यान में रखकर काम करना चाहिए। हम इसीलिए चुनकर आते हैं।

क्या आप तैयारी के दौरान सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे हैं?

नहीं, कॉलेज के दिनों में फेसबुक पर था फिर उसे फिर बंद कर दिया। मुझे लगा कि मैं इस प्लेटफॉर्म का उपयोग नहीं करूंगा तो अच्छे से अपनी तैयारी कर पाऊंगा। मैंने अभी ट्विटर पर अपना अकाउंट बनाया है। कुछ लोग फेक अकाउंट बनाकर मुझे ट्रोल कर रहे हैं और एक संप्रदाय का होने का आरोप लगा रहे थे।

अब तो अधिकारी नेता भी बन रहे हैं। आपकी भविष्य में कोई योजना...

नहीं...नहीं। मैंने जिस काम को चुना है, उसमें अपना सौ फीसदी दूंगा और लोगों के लिए काम करूंगा।

जो छात्र इस बार असफल रहे हैं या जो तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए कुछ कहना चाहेंगे?

मैंने औसतन 7-8 घंटे ही पढ़ाई की है। हमें अपनी कमियों पर काम देना चाहिए। एकाग्रचित्त होकर मेहनत करें। नकारात्मक चीजों से दूर रहें। रूटीन में पढ़ाई करें।

पढ़ाई के अलावा क्या पसंद है?

घूमने का शौक है। ट्रैकिंग बहुत करता हूं। फुटबॉल-वॉलीबॉल में बेहद दिलचस्पी है। अब फोटोग्राफी में भी इंट्रेस्ट है। मुझे फिल्म देखना पसंद नहीं है।

फैमिली के अलावा कोई आपकी सफलता के पीछे...

मेरे बचपन के एक दोस्त आइएएस हैं। उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है। स्कूल से लेकर कॉलेज तक, हर जगह क्लासमेट और सीनियर ने गाइड किया है।

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