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“स्थिर सरकार को ही मिलेगा जनादेश”

झारखंड विधानसभा चुनावों के दो चरणों के मतदान के बाद राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को यकीन है कि लोग...
“स्थिर सरकार को ही मिलेगा जनादेश”

झारखंड विधानसभा चुनावों के दो चरणों के मतदान के बाद राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास को यकीन है कि लोग उनके कामकाज पर मुहर लगाएंगे। वे कहते हैं कि पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाली राज्य की उनकी पहली सरकार ने विकास और जन कल्याण कार्यों के साथ साफ-सुथरा शासन दिया है। स्थिर और विकासोन्मुखी सरकार का अनुभव पा चुकी जनता से जो प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं, उसे देखकर पूरा भरोसा है कि भाजपा दोबारा पूर्ण बहुमत हासिल करने जा रही है। सरकार के कार्यों, चुनावी मुद्दों और विपक्ष की चुनौतियों पर संपादक हरवीर सिंह से बातचीत के प्रमुख अंशः

आपकी पहली सरकार है जिसने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। इस दौरान सरकार लोगों के जीवन में क्या बदलाव ला पाई?

इससे पहले राज्य में 14 साल तक मिलावटी सरकारें रहीं। भ्रष्टाचार और आतंक का राज था। हमारी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा। हमने आतंक और उग्रवाद पर अंकुश लगाया। सड़क और अन्य बुनियादी सुविधाओं पर काम किया। जहां 14 साल में 22,206 किलोमीटर सड़कें बनी थीं, वहीं हमने पांच साल में 22,826 किलोमीटर सड़कें बनाईं। किसान, गरीब और महिलाओं के लिए कई योजनाएं लागू कीं, जिससे उनका जीवन बेहतर हुआ।

सहयोगी दल ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) ने साथ क्यों छोड़ा?

उन्हें अपने साथ रखने के लिए भरपूर प्रयास किए। लोकसभा चुनाव में उन्हें पांच बार की जीती सीट भी दे दी। लेकिन राजनीति में जब महत्वाकांक्षा बहुत बढ़ जाती है, तब पार्टियां रास्ता बदल लेती हैं। इसके बावजूद भाजपा चुनाव में भारी जीत हासिल करने जा रही है। जनता जानती है कि भाजपा ही राज्य को विकास के रास्ते पर आगे ले जा सकती है।

मिलीजुली सरकारों पर क्या कहना है?

जनता को पूर्ण बहुमत वाली सरकार के फायदों का अनुभव मिल गया है। वह खिचड़ी सरकार को जनादेश नहीं देगी।

राज्य में आदिवासी अहम हैं। लेकिन भाजपा की अगुआई में राज्य के गठन के बाद पहली बार गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री बना। इसका क्या असर हुआ?

यह सिर्फ नेताओं के लिए मुद्दा हो सकता है। आम जनता के लिए कुछ नहीं है। अगर ऐसा होता तो पांच साल तक कोई गैर-आदिवासी व्यक्ति सरकार कैसे चला पाता। हमने आदिवासियों के विकास और कल्याण के लिए काफी कुछ किया। आदिवासी मुख्यमंत्रियों ने कोई काम नहीं किया।

राज्य में गैर-आदिवासी आबादी भी काफी ज्यादा है। क्या इस तरह का राजनीतिक विभाजन दिखता है?

ऐसा कोई माहौल नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में गुरुजी (शिबू सोरेन) हार गए। वे सबसे बड़े आदिवासी नेता हैं। वे 40 साल से संथाल परगना से सांसद रहे हैं।

पत्थलगड़ी आंदोलन के बारे में आपका क्या कहना है?

अफीम की खेती को लेकर समस्या पैदा हुई थी। लेकिन अब शांति है। मतदान भी शांतिपूर्ण हुआ है।

अब तक ढाई दर्जन विधानसभा सीटों पर मतदान हो चुका है। आपका क्या आकलन है?

पहले और दूसरे चरण में जो रुझान सामने आ रहे हैं, वे भाजपा के पक्ष में हैं। हमारे पूर्व सहयोगी जमशेदपुर पूर्व से मैदान में हैं। यही हमारे लोकतंत्र की खूबी है, कोई भी कहीं से चुनाव लड़ सकता है। हम वहां एक लाख से ज्यादा वोटों से जीतेंगे।

चुनाव में राम मंदिर और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दे कितने प्रभावी साबित होंगे?

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने से लेकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने में भाजपा की बड़ी भूमिका है। झारखंड के लोग इससे प्रभावित हैं और उनमें भी राष्ट्रीयता को लेकर बहुत संवेदनशीलता है। ये मुद्दे चुनाव में जरूर प्रभावी होंगे। हमारे केंद्रीय नेता राज्य के मुद्दों के साथ-साथ केंद्रीय मुद्दे भी उसी संजीदगी से उठा रहे हैं।

आपकी नजर में 2014 के झारखंड और 2019 के झारखंड में क्या अंतर आया है?

2014 से पहले मिलावटी सरकारों के दौरान भ्रष्टाचार और उग्रवाद जैसी समस्याएं विकराल थीं। आज लोग खुशहाल जीवन जी रहे हैं। एक मौका और मिलेगा तो झारखंड को विकसित राज्य बनाएंगे।

भ्रष्टाचार और अफसरशाही बड़ा मुद्दा है?

हमने अफसरशाही को जिम्मेदार बनाया। मिलावटी सरकारों ने एक निर्दलीय को सीएम की कुर्सी सौंपकर 4,000 करोड़ रुपये का घोटाला कर डाला। पिछले पांच साल में भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार ने जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई। अफसरशाही को हावी नहीं होने दिया। आज यह कोई मुद्दा ही नहीं है।

पहले नारा था ‘घर-घर रघुवर’, लेकिन अब ‘झारखंड पुकारा, मोदी दोबारा’, बदलाव क्यों ?

‘घर-घर रघुवर’ नारा नहीं, एक अभियान था। भाजपा में व्यक्ति की नहीं, विचारधारा की पूजा होती है। हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जनता की सेवा कर रहे हैं और आगे भी करेंगे। इस चुनाव में हम 65 प्लस का लक्ष्य हासिल कर तमाम राजनीतिक पंडितों को गलत साबित करने जा रहे हैं।

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