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कोविड के असर से मार्च तिमाही में 3.1% रह गई विकास दर, सालाना ग्रोथ भी 11 साल में सबसे कम

अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 महामारी का असर दिखने लगा है। मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन गतिविधियों में...
कोविड के असर से मार्च तिमाही में 3.1% रह गई विकास दर, सालाना ग्रोथ भी 11 साल में सबसे कम

अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 महामारी का असर दिखने लगा है। मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन गतिविधियों में गिरावट के चलते जनवरी-मार्च तिमाही में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर सिर्फ 3.1 फीसदी दर्ज हुई है। यह 2008-09 के आर्थिक संकट के बाद सबसे कम विकास दर है। गुरुवार को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की तरफ से ये आंकड़े जारी किए गए। एक साल पहले 2018-19 की चौथी तिमाही विकास दर 5.7 फीसदी दर्ज हुई थी। हालांकि लॉकडाउन के जलते अप्रैल-जून तिमाही में आंकड़े और खराब रहने का अंदेशा है। इस दौरान मैन्युफैक्चरिंग के साथ-साथ जीडीपी में करीब 55 फीसदी दिस्सेदारी रखने वाले सर्विस सेक्टर में ज्यादातर गतिविधियां ठप हैं।

पूरे वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी विकास दर घटकर 4.2 फीसदी रह गई, जो 11 साल में सबसे कम है। यह 2018-19 में 6.1 फीसदी थी। मौजूदा सीरीज में भी यह सबसे कम विकास दर है। मौजूदा मूल्यों के आधार पर देखें तो विकास दर 7.2 फीसदी दर्ज हुई है, जो 2018-19 में 11 फीसदी थी।

रिजर्व बैंक ने जताया था 5 फीसदी विकास का अनुमान

कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए पूरे देश में 25 मार्च से लॉकडाउन है। हालांकि इस महामारी के चलते अन्य देशों में आर्थिक गतिविधियां पहले ही कम होने लगी थीं, जिसका असर भारत की विकास दर पर पड़ा है। जनवरी-मार्च के दौरान चीन की विकास दर शून्य से 6.8 फीसदी कम रही थी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की तरफ से जनवरी और फरवरी में जारी पहले और दूसरे अनुमान के आधार पर रिजर्व बैंक ने 2019-20 में सालाना पांच फीसदी विकास का अनुमान जताया था।

पहली तीन तिमाही के आंकड़े भी संशोधित

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार मार्च तिमाही के आंकड़े आगे चलकर संशोधित किए जा सकते हैं। इसने 2019-20 की पहली तीन तिमाही के आंकड़ों को भी संशोधित किया है। संशोधन के मुताबिक पहली तिमाही की विकास दर 5.6 फीसदी के बजाय 5.2 फीसदी, दूसरी तिमाही की 5.1 फीसदी के बजाय 4.4 फीसदी और तीसरी तिमाही की विकास दर 4.7 फीसदी के बजाय 4.1 फीसदी रह गई है। मंत्रालय का कहना है कि कोविड-19 महामारी के चलते लॉकडाउन से आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया प्रभावित हुई है। कुछ संस्थानों में अभी काम शुरू नहीं हो सका है, इसके अलावा सरकार ने फाइनेंशियल रिटर्न की अंतिम तारीख भी बढ़ा दी है। इसलिए उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर ही अनुमान निकाले गए हैं, इनमें आगे संशोधन संभव है।

प्रति व्यक्ति आय 6.1% बढ़कर 1.34 लाख रुपये हुई

2011-12 के स्थिर मूल्यों पर 2019-20 में जीडीपी का आकार 145.66 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जो एक साल पहले 139.81 लाख करोड़ रुपये था। मौजूदा मूल्यों पर यह 203.40 लाख करोड़ रुपये है, 2018-19 में यह 189.71 लाख करोड़ रुपये था। इसी तरह, स्थिर मूल्यों पर प्रति व्यक्ति आय 2018-19 के 92,085 रुपये से 3.1 फीसदी बढ़कर 94,954 रुपये हो गई। मौजूदा मूल्यों पर इसमें 6.1 फीसदी वृद्धि हुई और 1,26,521 रुपये से 1,34,226 रुपये हो गई।

मार्च तिमाही में वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री 42 फीसदी घटी

2019-20 में कोयला, कच्चा तेल और सीमेंट उत्पादन और वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में गिरावट आई है। विमान से सामान ढुलाई और विमान यात्रियों की संख्या भी कम रही है। सिर्फ स्टील की खपत में मामूली वृद्धि दर्ज हुई। वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री तो 28.8 फीसदी घट गई। मार्च तिमाही में इसमें 42.1 फीसदी गिरावट आई। एयरपोर्ट पर कार्गो हैंडलिंग में सालाना 9 फीसदी और मार्च तिमाही में 13.6 फीसदी कमी आई, जिससे पता चलता है कि महामारी के चलते आयात-निर्यात प्रभावित हुआ है। वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात में 3.6 फीसदी और आयात में 6.8 फीसदी गिरावट आई है।

मार्च तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग में 5.7 फीसदी गिरावट

औद्योगिक उत्पादन के अलग-अलग सेगमेंट देखें तो खनन, बिजली और धातु वाले खनिजों के उत्पाद में वृद्धि हुई, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग 1.1 फीसदी घट गई। मार्च तिमाही में तो मैन्युफैक्चरिंग में 5.7 फीसदी गिरावट आई है। ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) देखें तो मैन्युफैक्चरिंग में लगातार तीसरी तिमाही गिरावट आई है और मार्च तिमाही में यह (-)1.4 फीसदी दर्ज हुई। कंस्ट्रक्शन में लगातार दूसरी तिमाही गिरावट आई और यह (-)2.2 फीसदी दर्ज हुई।

नए पूंजी निर्माण की वृद्धि दर -2.8 फीसदी

2019-20 में निजी खपत बढ़ने की दर घट गई। इसकी वृद्धि दर 2018-19 की 7.2 फीसदी की तुलना में बीते वर्ष 5.3 फीसदी दर्ज हुई। नए पूंजी निर्माण की वृद्धि दर 9.8 फीसदी से घटकर शून्य से नीचे, (-)2.8 फीसदी पर आ गई। सार्वजनिक खर्च की वृद्धि दर 10.1 फीसदी के मुकाबले 11.8 फीसदी रही। इसका मतलब है कि सालाना 4.2 फीसदी विकास दर में सरकारी खर्च का बड़ा योगदान है, वर्ना विकास दर और कम हो सकती थी।

जून तिमाही में 21 फीसदी गिर सकती है विकास दरः अर्थशास्त्री

एचडीएफसी बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता ने 2020-21 की पहली तिमाही में विकास दर 21 फीसदी गिरने और पूरे वित्त वर्ष में 4.8 फीसदी गिरावट की आशंका जताई है। उनकी राय में अभी जो इलाके रेड जोन में हैं, उनसे देश की 40 फीसदी जीडीपी आती है। इसके अलावा श्रमिकों की समस्या भी बनी रहने वाली है। आईसीआईसीआई सिक्युरिटीज के अर्थशास्त्री अनघा देवधर के अनुसार सरकारी खर्च से विकास को काफी समर्थन मिला है। कृषि विकास दर आठ तिमाही में सबसे अधिक रही है, लेकिन अन्य प्रमुख सेक्टर में विकास निराशाजनक है। रोजगार देने वाले मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन की ग्रोथ कई तिमाही के निचले स्तर पर पहुंच गई है। आईबीएम के अर्थशास्त्री शशांक मेंदीरत्ता के अनुसार हमें इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि लॉकडाउन के चलते डाटा संग्रह प्रभावित हुआ है। निजी खपत और निवेश में गिरावट उम्मीद के मुताबिक ही है। प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की दर घटने से निजी खपत की वृद्धि दर आगे भी घटने के आसार हैं। हालांकि निवेश मांग में लगातार तीसरी तिमाही गिरावट ज्यादा चिंताजनक है। कृषि और सार्वजनिक सेवाओं को छोड़ दें तो कोर जीवीए मार्च तिमाही में सिर्फ 1.1 फीसदी बढ़ा है।

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