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भारतीय ई-कॉमर्स बाजार पर होगा दो अमेरिकी कंपनियों का कब्जा! स्वदेशी को झटका

दुनिया की दिग्गज रिटेल कंपनी वालमार्ट भारतीय ई-कॉमर्स बाजार में धमाकेदार एंट्री करने जा रही है।...
भारतीय ई-कॉमर्स बाजार पर होगा दो अमेरिकी कंपनियों का कब्जा! स्वदेशी को झटका

दुनिया की दिग्गज रिटेल कंपनी वालमार्ट भारतीय ई-कॉमर्स बाजार में धमाकेदार एंट्री करने जा रही है। मल्टीब्रांड रिटेल के रास्ते भारत में अपने पांव जमाने में नाकाम रही वालमार्ट देश की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट में 77 फीसदी हिस्सेदारी खरीदेगी। दोनों कंपनियों ने आज इस सौदे का ऐलान करते हुए बताया कि फ्लिपकार्ट में करीब 77 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए वालमार्ट लगभग 16 अरब डॉलर (करीब एक लाख सात हजार करोड़ रुपये) का भुगतान करेगी।

भारत में किसी विदेशी कंपनी द्वारा अधिग्रहण या विलय का यह अब तक का दूसरा सबसे बड़ा सौदा है। ई-कॉमर्स क्षेत्र में तो यह दुनिया की सबसे बड़ी डील है। सिर्फ 11 साल में फ्लिपकार्ट की कीमत डेढ़ लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने और इस ऊंची कीमत पर कंपनी की हिस्सेदारी बेचने को फ्लिपकार्ट के प्रमोटर्स की कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन इससे न सिर्फ वालमार्ट जैसी विदेशी कंपनी के भारतीय ई-कॉमर्स बाजार में एंट्री का रास्ता खुल गया है, बल्कि इस बाजार के बड़े हिस्से पर पहले दिन से उसका कब्जा हो जाएगा। दूसरी अमेरिकी कंपनी ऐमजॉन पहले ही भारतीय बाजार में अपना दबदबा बना चुकी है। इन दोनों को चीन की अलीबाबा से टक्कर मिलेगी। यानी देश के ई-कॉमर्स बाजार में अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बोलबाला रहेगा। जाहिर है इस होड़ में बड़ी मछलियां छोटी मछलियों को निगलती जाएंगी। यही पूंजीवाद के उसूल है। लेकिन सवाल ये उठता है कि सारा खेल सिर्फ मुनाफे का है तो इन स्टार्ट-अप पर राष्ट्रवाद और भारतीयता का मुखौटा क्यों चढ़ाया जाता है? क्या कोई घरेलू कंपनी अपने बूते ग्लोबल ब्रांड नहीं बन सकती? 

यूपीए सरकार के समय वालमार्ट ने भारत के मल्टीब्रांड रिटेल बाजार में उतरने की नाकाम कोशिशें की थीं। तब घरेलू उद्योग-धंधों और छोटे कारोबारियों के हितों को बचाने के नाम पर उसका खूब विरोध हुआ। तब भारतीय जनता पार्टी भी खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेश निवेश (एफडीआई) और विदेशी कंपनियों के लिए रास्ता खोलने के खिलाफ थी। इस विरोध के चलते वालमर्ट भारती ग्रुप के साथ केवल होलसेल कारोबार में उतर पाई। लेकिन अब वालमार्ट ई-कॉमर्स के रास्ते भारतीय बाजार में धूम मचाने आ गई है। यह वालमार्ट के इतिहास का सबसे बड़ा सौदा है, जिससे वह ऐमजॉन को टक्कर देने की फिराक में है।

स्वदेश और मेक इन इंडिया को झटका!

देश में ई-कॉमर्स की सफलता की मिसाल बन चुकी फ्लिपकार्ट के वालमार्ट के हाथों में जाने से स्वदेशी और मेक इन इंडिया की मुहिम को झटका जरूर लगेगा। आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने इस सौदे का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इसे रुकवाने की मांग की है। संगठन का आरोप है कि अमेरिकी कंपनी रिटेल सेक्टर में एंट्री के लिए एफडीआई नियमों का उल्लंघन कर रही है। 

खुदरा कारोबारियों के संगठन कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने यह कहते हुए फ्लिपकार्ट-वालमार्ट सौदे का विरोध किया है कि इससे ई-कॉमर्स क्षेत्र में बाजार बिगाड़ने और मनमाने दाम तय करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा। रिटेल हो या फिर ई-कामर्स क्षेत्र, विदेशी कंपनियां भारत में घुसने का रास्ता ढूंढ रही हैं। वैसे, फ्लिपकार्ट के विदेशी हाथों में पहुंचने का सिलसिला 2009 में अमेरिकी समूह टाइगर ग्लोबल के निवेश के साथ ही शुरू हो गया था। भारत में टैक्स देनदारियों से बचने और सिंगापुर में लिस्ट होने को लेकर भी फ्लिपकार्ट पर सवाल उठ रहे हैं। 

पहले हुआ था वालमार्ट विरोध

दुनिया भर में वालमार्ट के कारोबारी तौर-तरीकों की तीखी आलोचनाएं होती रही हैं। खासतौर पर बाजार को कब्जाने और प्रतिद्वंद्वियों को निपटाने के मामले में वालमार्ट का अतीत घरेलू कंपनियों के लिए खतरे की घंटी है। मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई को लेकर जो शंकाएं और सवाल खड़े हुए थे, वो आज भी मौजूद है।

फर्क सिर्फ इतना है कि अब केंद्र में रिटेल में एफडीआई का विरोध करने वाली भाजपा की सरकार है और वालमार्ट को फ्लिपकार्ट खरीदने की मंजूरी मिलना तय माना जा रहा है। इस बार यह नौकरियां पैदा करने और छोटे कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के नाम पर होगा। इस सौदे को देश के खुदरा बाजार में पिछले दरवाजे से वालमार्ट की दस्तक के तौर पर भी देखा जा रहा है।     

भारतीय बाजार पर वालमार्ट का दांव 

फ्लिपकार्ट और वालमार्ट की डील पक्की होने के बाद इस सौदे को फिलहाल सरकारी मंजूरी का इंतजार है। इस डील के बारे में वालमार्ट के प्रेसिडेंट और सीईओ डग मैकमिलन का कहना है कि भारत दुनिया के सबसे आकर्षक खुदरा बाजारों में से एक है। यह निवेश देश के ई-कॉमर्स बाजार का कायाकल्प करने में अहम भूमिका निभाने वाले कंपनी के साथ साझेदारी का अवसर मुहैया कर रहा है। उनका दावा है कि इससे भारत को भी फायदा पहुंचेगा। यह निवेश उपभोक्ताओं को किफायती दाम पर अच्छी क्वालिटी, नई नौकरियां और किसानों, महिलाओं व छोटे सप्लायर्स को नए अवसर मुहैया कराएगा। 

फ्लिपकार्ट के सह-संस्थापक और ग्रुप सीइओ बिन्नी बंसल का कहना है कि भारत के लिए यह निवेश बहुत महत्वपूर्ण है और देश में रिटेल की एक नई लहर पैदा करने में मददगार साबित होगा। भारत के खुदरा बाजार में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी अभी भी कम है और अगले चरण की यात्रा में वालमार्ट से बेहतर कोई भागीदार नहीं हो सकता। 

जाहिर है अब ऑनलाइन रिटेल में वालमार्ट की एंट्री के खतरों पर पहले जितनी चर्चा नहीं होगी। बल्कि इसके फायदे ही गिनाए जाएंगे। 

किसको, कितना फायदा?

साल 2007 में शुरू हुई फ्लिपकार्ट को भारत में स्टार्ट-अप और ई-कॉमर्स क्रांति का प्रतीक माना जाता है। 10 साल के अंदर इस कंपनी ने 4.6 अरब डॉलर (करीब 30 हजार करोड़ रुपये) की सालाना बिक्री का आंकड़ा छू लिया। कंपनी रोजाना करीब 5 लाख वस्तुओं की डिलिवरी करती है और इसका नेटवर्क देश के 800 शहरों में फैला है। इस सौदे से फ्लिपकार्ट के प्रमोटर मालामाल हो जाएंगे। कंपनी के सह-संस्थापक सचिन बंसल को 5.5 फीसदी हिस्सेदारी के बदले करीब 8 हज़ार करोड़ रुपये मिलेंगे। 

उधर, वालमार्ट तमाम कोशिशों के बावजूद भारतीय बाजार पर अपनी पकड़ बनाने में नाकाम रही है। फिलहाल, वालमार्ट के देश के 19 शहरों में 21 बेस्ट प्राइस कैश एंड कैरी स्टोर हैं। इस साझेदारी के फ्लिपकार्ट को खुदरा बाजार में वालमार्ट के अनुभव, तकनीक, निवेश का लाभ मिलेगा। जबकि वालमार्ट के लिए यह भारतीय बाजार पर पकड़ बनाने का सुनहरा मौका है।

 

 

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