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हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन निर्यात पर भारत की सराहना होनी चाहिए, आलोचना नहीं

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन नाम की दवा इन दिनों काफी चर्चा में है। मलेरिया और रूमेटाइड जैसी बीमारियों की...
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन निर्यात पर भारत की सराहना होनी चाहिए, आलोचना नहीं

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन नाम की दवा इन दिनों काफी चर्चा में है। मलेरिया और रूमेटाइड जैसी बीमारियों की यह दवा कोविड-19 महामारी के इलाज में भी कुछ हद तक कारगर मानी जा रही है। सरकार ने पहले इसके निर्यात पर पाबंदी लगाई फिर इसमें ढील देते हुए पड़ोसी देशों और संभवत: अमेरिका को निर्यात की अनुमति दे दी। ऐसे समय जब दुनिया में रोजाना हजारों की संख्या में लोग इस महामारी से मर रहे हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इसके निर्यात की अनुमति देने का फैसला सराहा जाना चाहिए, उसकी आलोचना नहीं होनी चाहिए।

विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर लोगों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की कि भारत में इस दवा की कमी होने जैसी कोई बात नहीं है। बयान में कहा गया है कि किसी भी जिम्मेदार सरकार की तरह हमारी पहली प्राथमिकता अपने लोगों की जरूरतों के लिए दवा का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध कराना है।

सरकार ने हाल तक अनेक जरूरी दवाओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा था। इस फैसले को वाजिब ठहराते हुए बयान में कहा गया है कि घरेलू बाजार में जरूरी दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कई फार्मा उत्पादों के निर्यात पर अस्थाई प्रतिबंध लगाया गया था। इस दौरान अलग-अलग परिस्थितियों में पड़ने वाली जरूरतों का आकलन किया गया। यह सुनिश्चित होने के बाद कि किसी भी परिस्थिति में भारत में दवा की पर्याप्त उपलब्धता बनी रहेगी निर्यात पर अंकुश खत्म करने का फैसला किया गया।

विदेश व्यापार महानिदेशालय ने सोमवार को 14 दवाओं के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने की अधिसूचना जारी की। विदेश मंत्रालय के अनुसार जहां तक पेरासिटामोल और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की बात है तो इन्हें लाइसेंस कैटेगरी में रखा जाएगा और इनकी मांग की स्थिति पर लगातार नजर रखी जाएगी। हालांकि स्टॉक की स्थिति के अनुसार कंपनियों को निर्यात प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की अनुमति होगी।

सूत्रों ने बताया कि दवा बनाने वाली कई निजी कंपनियों ने प्रतिबंध लगाए जाने से पहले हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन जैसी कई दवाओं का सौदा अमेरिका के साथ कर लिया था। प्रतिबंध हटाए जाने के बाद अब यह कंपनियां अपने सौदों को पूरा कर सकेंगी।

इस मुद्दे पर भारत के रुख को स्पष्ट करते हुए बयान में कहा गया है कि संकट के समय दूसरों की मदद करना भारत की नीति रही है। कोविड-19 महामारी की विशालता को देखते हुए भारत शुरू से कहता रहा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इससे लड़ने की एकजुटता दिखानी चाहिए। इस रुख के कारण ही भारत ने दूसरे देशों के फंसे नागरिकों को निकालने में मदद की। विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि महामारी के समय मानवीय पहलुओं को देखते हुए भारत अपने उन सभी पड़ोसी देशों को पेरासिटामोल और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन निर्यात करने का लाइसेंस देगा जो इन दवाओं के लिए भारत पर निर्भर हैं। भारत सिर्फ दक्षिण एशियाई देशों को निर्यात की अनुमति नहीं देगा बल्कि इस महामारी से जो देश बुरी तरह प्रभावित हैं उन्हें निर्यात की इजाजत के लिए भी लाइसेंस प्रदान करेगा।

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा को लेकर इतने विवाद के बावजूद रोचक तथ्य यह है कि अभी तक इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि इस दवा से कोविड-19 बीमारी ठीक हो जाएगी। फ्रांस में भी डॉक्टरों ने पाया कि अजिथ्रोमायसिन दवा से कोरोनावायरस से संक्रमित 40 लोगों के इलाज में मदद मिली। फिर भी फ्रांस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने चेतावनी जारी की है कि कोविड-19 के इलाज में इसका जब तक इस्तेमाल न किया जाए।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को गेमचेंजर दवा बताया है। हालांकि उनके डॉक्टरों की टीम अभी तक इसको लेकर आश्वस्त नहीं है। इसलिए ट्रंप की आलोचना भी हुई लेकिन ट्रंप ने अपनी बात का यह कहकर बचाव किया कि जब कोई व्यक्ति मृत्यु शैया पर पड़ा हो तब उस पर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल करने में कोई हर्ज नहीं है।

दोनों देशों के बीच पिछले दिनों हुई बातचीत के दौरान हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की सप्लाई पर बात हुई थी। लेकिन विवाद तब हुआ जब मीडिया कर्मियों के सामने ट्रंप ने ऐसा बयान दे दिया जिससे शत्रु और मित्र दोनों नाराज हो उठे। उन्होंने कहा, मैंने रविवार को प्रधानमंत्री मोदी से बात की। मैंने कहा कि अगर आप इस दवा के निर्यात की अनुमति दें तो अच्छा होगा। अगर वह निर्यात की अनुमति नहीं देते हैं तब भी कोई बात नहीं, लेकिन तब हमारी तरफ से बदले की कार्रवाई हो सकती है।

ऐसे समय जब सभी देशों के बीच समन्वय की जरूरत है भारत ने इस विवाद से अलग रहकर सूझबूझ का परिचय दिया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि हम इस विषय को राजनीतिक रंग देने या किसी भी अटकल को बढ़ावा नहीं देंगे। घरेलू जरूरतें पूरी करने के बाद दवा निर्यात की अनुमति देने से भारत की छवि निश्चित रूप से बेहतर होगी। यह दूसरे देशों के लिए भी एक नजीर बन सकता है कि बड़े संकट के समय उन्हें किस तरह का व्यवहार करना चाहिए। अगर भविष्य में भारत को भी जरूरत पड़ी तो उसे भी कई दोस्त मिल सकते हैं।

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