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“पढ़ाई पटरी पर लाने के दिशानिर्देश जल्द”: रमेश पोखरियाल निशंक का एक्सक्लुसिव इंटरव्यू

अचानक आई कोविड महामारी ने स्कूल-कॉलेज से लेकर सरकार तक, किसी को संभलने का मौका नहीं दिया। जिस समय संकट...
“पढ़ाई पटरी पर लाने के दिशानिर्देश जल्द”: रमेश पोखरियाल निशंक का एक्सक्लुसिव इंटरव्यू

अचानक आई कोविड महामारी ने स्कूल-कॉलेज से लेकर सरकार तक, किसी को संभलने का मौका नहीं दिया। जिस समय संकट आया, उसी वक्त स्कूलों और कॉलेजों की परीक्षाओं के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों की प्रवेश परीक्षाएं होती हैं। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि छात्रों की पढ़ाई और साल बर्बाद न हो। छात्रों की परेशानियां दूर करने के लिए केंद्र सरकार क्या कदम उठा रही है, राज्यों के साथ उसका तालमेल अब तक कैसा रहा, इन सब विषयों पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से बात की संपादक हरवीर सिंह ने। मुख्य अंशः

 

कोविड-19 महामारी से देश में 25 मार्च से लॉकडाउन है। इसके पहले से ही स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और दूसरे शिक्षण संस्थान बंद हैं। क्या महामारी का सबसे प्रतिकूल असर छात्रों पर पड़ा है?

 

कोविड-19 महामारी से न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के तमाम देश प्रभावित हैं। इसका प्रतिकूल असर विविध क्षेत्रों में दिख रहा है। शिक्षा क्षेत्र पर भी इसका प्रभाव है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता और उनके सतत प्रयासों से हमने महामारी के प्रतिकूल प्रभावों को कम किया है। हमारा प्रयास है कि हमारे 33 करोड़ छात्र किसी प्रकार की कठिनाइयों का सामना न करें और अपनी शिक्षा को जारी रख सकें। इसके लिए ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफॉर्म जैसे दीक्षा, स्वयं, स्वयंप्रभा, ई-पाठशाला, दूरदर्शन के शैक्षणिक टीवी चैनल आदि को मजबूत करने के प्रयास किए जा रहे हैं। अकेले दीक्षा प्लेटफॉर्म पर विद्यार्थियों के लिए 80,000 से अधिक पाठ्य सामग्री उपलब्ध है। जिन छात्रों तक इंटरनेट की पहुंच नहीं है उनके लिए स्वयंप्रभा के 32 चैनलों के माध्यम से शिक्षा पहुंचाई जा रही है। मुझे खुशी है कि विद्यार्थी इस मुश्किल समय में इन प्लेटफॉर्म के माध्यम से पढ़ाई जारी रखे हुए हैं। सभी 1,902 स्वयं पाठ्यक्रमों और 60,000 स्वंयप्रभा वीडियो का दस क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद कराने का फैसला किया गया है ताकि ज्यादा से ज्यादा छात्रों को इसका लाभ मिल सके। ‘स्वयं’ पर 1,902 पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। अब तक 1.56 करोड़ छात्रों के लिए इसे उपलब्ध कराया जा चुका है। अभी 26 लाख से अधिक छात्र इसके जरिए 574 पाठ्यक्रम का लाभ ले रहे हैं। ‘स्वयं-दो’ के तहत ऑनलाइन डिग्री पाठ्यक्रम भी उपलब्ध कराया जाएगा।

 

लॉकडाउन को करीब 50 दिन हो गए हैं। केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के आधार पर राज्य सरकारें लॉकडाउन में ढील देने की शुरुआत कर चुकी हैं। शिक्षण संस्थानों के मामले में अभी और देरी होगी, तो इस दौरान हुए नुकसान की भरपाई कैसे होगी?

 

छात्रों को हो रहे नुकसान का सीबीएसई ने संज्ञान लिया है और जरूरत पड़ने पर अगले वर्ष के लिए पाठ्यक्रम को कम किया जा सकता है। अभी इस बारे में अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की कोशिश है कि छात्रों की पढ़ाई का नुकसान न हो, इसलिए मैंने एनसीईआरटी द्वारा तैयार वैकल्पिक शैक्षणिक कैलेंडर जारी किया है। कैलेंडर में शिक्षकों को दिशानिर्देश दिए गए हैं कि वे किस प्रकार विभिन्न प्रोद्योगिकीय और सोशल मीडिया उपकरणों का उपयोग कर, घर पर ही बच्चों को उनके अभिभावकों की मदद से शिक्षा दे सकते हैं।

 

क्या केंद्र ने राज्यों के साथ तालमेल किया है? छात्रों का शैक्षणिक सत्र बचाने के लिए किस तरह के निर्देश दिए गए हैं।

 

शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है, इसलिए हम शुरू से राज्यों के साथ संपर्क में हैं। हम सब मिलकर इस मुश्किल घड़ी में बच्चों की शैक्षणिक गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रयासरत हैं। मैं हर सप्ताह सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के शिक्षा मंत्रियों और शिक्षा सचिवों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से या टेलीफोन पर बात करता हूं। हमने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए स्कूलों में ग्रीष्मकालीन छुट्टियों के दौरान मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने के लिए मंजूरी प्रदान की। इस पर लगभग 1,600 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च आएगा। इसके अलावा ‘मिड डे मील’ योजना के अंतर्गत पहली तिमाही के लिए 2,500 करोड़ रुपये का तदर्थ अनुदान भी जारी किया जा रहा है। मिड डे मील योजना के अंतर्गत खाना पकाने की लागत में वार्षिक केंद्रीय आवंटन को 7,300 करोड़ रुपये से 11 फीसदी बढ़ाकर 8,100 करोड़ रुपये किया गया है। समग्र शिक्षा अभियान के अंतर्गत मानकों में ढील देते हुए भारत सरकार ने राज्यों को पिछले वर्ष की शेष राशि खर्च करने की अनुमति प्रदान की है, जो लगभग 6,200 करोड़ रुपये है। पहली तिमाही के लिए 4,450 करोड़ रुपये का तदर्थ अनुदान भी जारी किया जा रहा है।

 

राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के साथ बैठक में मैंने सभी राज्यों से यह आग्रह भी किया कि वे बोर्ड परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन की प्रक्रिया शुरू करें और सीबीएसई को उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन की सुविधा प्रदान करें।

 

सरकारी और निजी संस्थानों ने ई-लर्निंग, इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों और इंटरनेट के जरिए उपलपब्ध विकल्पों का उपयोग कर छात्रों को पढ़ाने की प्रक्रिया जारी रखी है। लेकिन बड़ी सच्चाई यह है कि हमारे शिक्षक इस तरह की शिक्षा व्यवस्था में दक्ष नहीं हैं। इंटरनेट की कनेक्टिविटी बढ़ने के बावजूद देश की बड़ी आबादी अभी इससे वंचित है।

 

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षकों के लिए पंडित मदनमोहन मालवीय राष्ट्रीय मिशन ऑन टीचर्स ऐंड टीचिंग और निष्ठा योजनाओं के तहत ई-लर्निंग संसाधन के उपयोग के लिए प्रशिक्षण का आयोजन किया है। जिन छात्रों तक इंटरनेट की पंहुच नहीं है उनके लिए स्वयंप्रभा के 32 चैनलों के माध्यम से शिक्षा पहुंचाई जा रही है। एनसीईआरटी द्वारा तैयार वैकल्पिक शैक्षणिक कैलेंडर में भी इस बात का ध्यान रखा गया है।

 

अभिभावकों की शिकायतें आई हैं कि सत्र शुरू हुए बिना स्कूलों ने नई एडमिशन फीस मांगनी शुरू कर दी है। इस पर आपने राज्यों को क्या निर्देश दिए हैं? इसके अलावा, बजट स्कूलों को बचाने के लिए क्या कोई अलग रणनीति अपनाई जाएगी, क्योंकि इन स्कूलों में निम्न आय वर्ग के करीब चार करोड़ बच्चे पढ़ते हैं?

 

जैसा मैंने पहले कहा, शिक्षा समवर्ती सूची में है इसलिए फीस वृद्धि का विषय राज्य सरकारों से संबंधित है, लेकिन मैंने सभी राज्यों और निजी विद्यालयों के संचालकों से अनुरोध किया है कि इस मुश्किल घड़ी में मानवीय मूल्यों के आधार पर ही कोई निर्णय लिया जाना चाहिए, ताकि किसी भी अभिभावक पर अनावश्यक बोझ न पड़े। मैंने यह अनुरोध भी किया है कि एक साथ तीन महीने की फीस लेने के बजाय एक महीने की ही फीस ली जाए। मुझे खुशी है कि कई राज्यों और स्कूलों ने इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए हैं। आइआइटी, आइआइआइटी और एनआइटी ने भी फीस नहीं बढ़ाने का निर्णय लिया है। जहां तक बजट स्कूलों की बात है, कुछ समय पहले ही मैंने आंध्र प्रदेश के स्कूलों के प्रबंधकों के साथ वार्ता की थी। उन्होंने भी यही प्रश्न किया था। जैसा मैंने पहले भी कहा, फीस रेगुलेट करने का विषय राज्य सरकारों का है। मैं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इसका समाधान जल्द से जल्द निकालने का अनुरोध करता हूं। समाधान ऐसा होना चाहिए जिसका लाभ अभिभावकों और स्कूल दोनों को मिले। इसे मैं वित्त मंत्री के संज्ञान में भी लाऊंगा।

 

उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के मामले में अप्रैल-मई का समय काफी अहम होता है। इस दौरान प्रवेश परीक्षाएं होती हैं और उच्च शिक्षण संस्थानों की परीक्षाएं भी होती हैं। यह सब अटक गया है, शैक्षणिक सत्र भी अधूरे हैं। इस नुकसान की भरपाई कैसे होगी? सत्र आगे किए जा रहे हैं, इससे शैक्षणिक गुणवत्ता तो प्रभावित नहीं होगी?

 

उच्च शिक्षा से जुड़े छात्रों की पढ़ाई का नुकसान न हो, इसके लिए मैंने 29 अप्रैल को यूजीसी के दिशानिर्देश भी जारी किए। यूजीसी के दिशानिर्देशों के अनुसार, इंटरमीडिएट सेमेस्टर के विद्यार्थियों को वर्तमान और पिछले सेमेस्टर के आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर ग्रेड प्रदान किए जाएंगे। जिन राज्यों में कोविड-19 की स्थिति सामान्य हुई है, वहां जुलाई में परीक्षा होगी। टर्मिनल सेमेस्टर के छात्रों के लिए भी जुलाई में परीक्षा होगी। विश्वविद्यालय कम समय में परीक्षाएं पूरी करने के लिए वैकल्पिक और सरलीकृत तरीके अपना सकते हैं। शैक्षणिक सत्र 2020-21 के पुराने छात्रों के लिए 1 अगस्त 2020 से और नए छात्रों के लिए 1 सितंबर 2020 से आरंभ किया जा सकता है। हमने बच्चों की अनिश्चितता दूर करते हुए नीट, जेईई मेन और एडवांस्ड परीक्षाओं की तिथियों की घोषणा की है। नीट परीक्षा 26 जुलाई को, जेईई मेन 18 से 23 जुलाई तक और जेईई एडवांस्ड 23 अगस्त को होगी।

 

दसवीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं भी अटकी हुई हैं। कुछ राज्यों ने सुझाव दिया था कि बच्चों को साल की परफॉर्मेंस के आधार पर अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया जाना चाहिए। क्या यह व्यावहारिक है, क्योंकि 12वीं के नतीजों के आधार पर उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए मेरिट बनती है।

 

मैंने स्पष्ट कहा है कि 10वीं की बची हुई परीक्षाएं पूरे देश में नहीं बल्कि सिर्फ उत्तर-पूर्वी दिल्ली क्षेत्र में आयोजित होंगी। जहां तक कक्षा 12 की परीक्षाओं का सवाल है, तो हमने निर्णय लिया है कि सभी विषयों की नहीं बल्कि कुछ मुख्य विषयों की परीक्षाएं ही आयोजित करेंगे। देश भर में केवल 29 मुख्य विषयों की ही परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी, जिनमें उत्तर पूर्वी दिल्ली क्षेत्र में होने वाली 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं भी शामिल हैं। ये परीक्षाएं 1 से 15 जुलाई, 2020 तक होंगी। कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों को बिना परीक्षाओं के ही अगली कक्षा में प्रोन्नत किया जा रहा है। जिन विद्यालयों में कक्षा 9 और 11 की परीक्षाएं नहीं हुई हैं वहां भी यह सलाह दी गई है कि वे अब तक किए गए प्रोजेक्ट वर्क, पीरियोडिक टेस्ट, टर्म एग्जाम जैसे स्कूल आधारित मूल्यांकन के आधार पर 9वीं और 11वीं ग्रेड के विद्यार्थियों को अगली कक्षा में प्रमोट करें। हमारा पूरा प्रयास है कि छात्रों को उच्च शिक्षा में प्रवेश में किसी प्रकार की बाधा का सामना न करना पड़े।

 

कुछ लोगों की राय है कि इस साल कोर्स सिलेबस छोटे कर दिए जाएं तो कुछ लोगों ने पूरे सत्र को ही स्थगित करने का भी सुझाव दिया है। इस पर आपका क्या कहना है?

 

विश्वविद्यालयों के लिए परीक्षा और अकादमिक कैलेंडर पर यूजीसी के दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। इसमें स्पष्ट किया गया है कि वर्तमान परिदृश्य और भविष्य की अनिश्चितताओं को देखते हुए विश्वविद्यालय छात्रों, शैक्षणिक संस्थानों तथा समस्त शिक्षा प्रणाली के सर्वोच्च हित में विशिष्ट स्थिति से निपटने के लिए बदलाव, परिवर्धन, संशोधन या रूपांतरण के जरिए पारदर्शी तरीके से इन दिशानिर्देशों को अपना सकते हैं। अगर कानूनी रूप से मान्य हो तो विश्वविद्यालय नामांकन प्रक्रिया के वैकल्पिक तरीकों को अपना सकते हैं। इसके अलावा, सीबीएसई बोर्ड परीक्षा 2021 के लिए पाठ्यक्रम में आनुपातिक कमी के लिए समय के नुकसान का आकलन कर रहा है।

 

हर साल लाखों छात्र पढ़ाई के लिए विदेश जाते हैं। लेकिन इस बार महामारी के चलते हो सकता है लोग अपने बच्चों को भेजना न चाहें। दूसरे देशों में भी कोविड के चलते सख्ती है, जिससे वीसा में दिक्कत आ सकती है। इन छात्रों के लिए क्या करेंगे?

 

हम भविष्य में यह सुनिश्चित करेंगे कि बच्चों को पढ़ाई के लिए बाहर जाने की जरूरत न पड़े। अभी तक इसकी होड़ लगी रहती थी। अभी जो परिस्थितियां हैं उसमें कोई जल्दी जाएगा भी नहीं। हम उन बच्चों को यहीं पर अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करेंगे। हमारे शिक्षण संस्थानों से निकले छात्र दुनिया की बड़ी कंपनियों के शीर्ष पदों पर हैं। इसका मतलब यह है कि हमारी शिक्षा पद्धति उन्नत है।

 

बच्चों के लिए खुद की क्षमता विकसित करने और देश के लिए काम करने में अनुसंधान बहुत महत्वपूर्ण है। इस पर फोकस बढ़ाने के लिए किस तरह के कदम उठा रहे हैं?

 

अनुसंधान की दिशा में स्पार्क कार्यक्रम के तहत दुनिया के 127 विश्वविद्यालयों के साथ हमारा समझौता हुआ है। इसके अलावा रिसर्च पार्क और स्टार्स समेत कई योजाएं हैं। आसियान देशों के 1,000 छात्र हमारी आइआइटी में अनुसंधान करने के लिए आएंगे। ज्ञान कार्यक्रम के तहत बाहर की फैकल्टी यहां आती है, अब हमारी फैकल्टी भी बाहर जाएंगी।

 

इन दिनों में प्लेसमेट की प्रक्रिया भी चलती है। घरेलू और वैश्विक अर्थव्यवस्था कोविड महामारी के चलते संकट में है। प्लेसमेट पर इसका क्या असर पड़ेगा?

 

महामारी आने से पहले जो लोग नियुक्तियों की प्रतीक्षा कर रहे थे, उन्हें बिलकुल घबराने की जरूरत नहीं है। जो भी नियुक्तियां होनी थीं, वे जरूर होंगी। महामारी की वजह से थोड़ा विलंब जरूर हो गया है। जैसे ही देश महामारी से निपट लेगा, हम इस दिशा में उचित कदम उठाएंगे। अब भी मंत्रालय में इस दिशा में काफी चर्चाएं हो रही हैं और संबंधित कार्रवाई की जा रही है। सभी संबंधित अधिकारी इस पर काम कर रहे हैं। हम लोगों को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि किसी को भी घबराने की जरूरत नहीं है। सरकार इस दिशा में बहुत जल्द जरूरी दिशानिर्देश जारी करेगी। अभी पूरे देश की प्राथमिकता कोरोना महामारी से निजात पाने की है, क्योंकि जैसा कि प्रधानमंत्री जी ने कहा है, जान है तो जहान है।

 

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सीबीएसई 2021 की बोर्ड परीक्षा के लिए पाठ्यक्रम में आनुपातिक कमी के लिए समय के नुकसान का आकलन कर रहा है, अभी अंतिम फैसला नहीं

 

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