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नौकरियों में मनमोहन से पीछे रहे मोदी, रोजगार की दर 8 साल में सबसे कम

तीन साल पूरे होने का जश्न मना रही मोदी सरकार के रिपोर्ट कार्ड पर बेरोजगारी ने बड़ा दाग लगा दिया है। देश में नए रोजगार पैदा होने की दर आठ साल के न्यूनतम स्तर पर आ गई है। आठ प्रमुख औद्याेेगिक क्षेत्रों में नौकरियों का बुरा हाल है, जिनमें पिछले साल केवल 1.1 फीसदी नौकरियां बढ़ी हैैं।
नौकरियों में मनमोहन से पीछे रहे मोदी, रोजगार की दर 8 साल में सबसे कम

खुद केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में नए रोजगार पैदा होने की दर काफी कम रही है। जबकि चुनावी वादे को पूरा करने के लिए मोदी सरकार के सामने हर साल दो करोड़ रोजगार पैदा करने का लक्ष्य है।

लेबर ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में 8 प्रमुख औद्याेेेगिक क्षेत्रों में सिर्फ 1.55 लाख और 2016 में 2.31 लाख नए रोजगार पैदा हुए थे। जबकि 2009 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के दौरान इन क्षेत्रों में 10.6 लाख नई नौकरियां आई थीं। फिलहाल पिछले एक दशक में नौकरियों की यह सबसे धीमी ग्रोथ है।  

विकास दर में तेजी लेकिन नौकरियां गायब 

चालू वित्त वर्ष में मोदी सरकार जीडीपी की विकास दर 7.5 फीसदी से ऊपर रहने का दावा कर रही है, जबकि आठ प्रमुख गैर-कृषि क्षेत्रों में नौकरियां बढ़ने की दर एक फीसदी के आसपास है। आर्थिक विकास में तेजी के दावों के बावजूद देश में नौकरियों का यह अकाल चिंताजनक है। इसके पीछे कंपनियों और उद्योग धंधों में ऑटोमेशन, आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस, रोबोटिक्स जैसे तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल को वजह माना जा रहा है।

नौकरी के आंकड़ों का फार्मूला भी बदला

जीडीपी और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) का फार्मूला बदल चुकी मोदी सरकार ने 8 प्रमुख क्षेत्रों में नौकरियों के आंकड़े निकालने का तरीका भी बदल दिया है। इन आठ क्षेत्रों में अब अधिक सेेवा क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जिससे नौकरियों का आंकड़ा कुछ सुधर जाएगा। लेकिन असल जरूरत जमीन स्तर पर हालात सुधारने की है।इन आठ क्षेत्रों में मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड, ट्रांसपोर्ट, होटल्स एंड रेस्त्रां, एजुकेशन और हेल्थ शामिल हैं। 

आईटी सेक्टर में छंटनी का दौर, कंस्ट्रक्शन पर भी मार

देश की प्रमुख आईटी कंपनियां 56 हजार इंजीनियरों को नौकरी से निकाल रही हैं। मानव संसाधन क्षेत्र से जुड़ी कंपनी हेड हंटर्स इंडिया के सीएमडी के. लक्ष्मीकांत का कहना है कि अगले तीन साल तक आईटी सेक्टर में हर साल दो लाख इंजीनियरों की छंटनी हो सकती है। लेबर ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, अप्रेल से दिसंबर 2016 के दौरान कंस्ट्रक्शन सेक्टर में पिछले साल के मुकाबले 25 हजार नौकरियां घटी हैं। 

जॉब मार्केट में हर साल 8-10 लाख इंजीनियर

एक अनुमान के मुताबिक, देश में हर साल 8-10 लाख इंजीनियर तैयार होते हैं। आईटी कंपनियों में छंटनी का यह दौर नौजवानों की मुश्किलें बढ़ा रहा है। हर साल देश में 50-60 लाख नए नौकरी की कतार में जुड़ जाते हैं। बड़ी संख्या में लोग कृषि जैसे असंगठित क्षेत्रों के बजाय रोजगार के लिए सर्विस, मैन्युफक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर का रुख कर रहे हैं। इससे समस्या और भी विकराल हो गई है।

सिर्फ 61 फीसदी लोगों के पास साल भर काम

देश में बेरोजगारी की समस्या का एक पहलू यह भी है कि आधे से ज्यादा लोगों के पास पूरे साल काम नहीं है। बेरोजगारी पर लेबर ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 61 फीसदी के पास साल भर रोजगार होता है। जबकि 68 फीसदी परिवारों की मासिक आय 10 हजार रुपये से भी कम है। देश में करीब 16 करोड़ लोग अर्ध-बेरोजगारी का शिकार हैं।

 

 

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