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रील और रियल का फासला हुआ धुंधला, दिवंगत सुशांत की जिंदगी पर फिल्म बना बॉलीवुड ने निकाला बीच का रास्ता!

हाल में दिल्ली हाइकोर्ट ने दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के पिता कृष्ण किशोर सिंह की याचिका की...
रील और रियल का फासला हुआ धुंधला, दिवंगत सुशांत की जिंदगी पर फिल्म बना बॉलीवुड ने निकाला बीच का रास्ता!

हाल में दिल्ली हाइकोर्ट ने दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के पिता कृष्ण किशोर सिंह की याचिका की सुनवाई के बाद आने वाली फिल्म न्याय: द जस्टिस के प्रदर्शन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता की दलील थी कि यह फिल्म उनके पुत्र की जिंदगी पर आधारित है। फिल्म से जुड़े लोगों ने इस बात से इनकार करते हुए कहा कि यह फिल्म सुशांत की बॉयोपिक नहीं, बल्कि उन्हें श्रद्धांजलि है। पिछले वर्ष 14 जून को 34-वर्षीय सुशांत मुंबई में बांद्रा स्थित अपने फ्लैट में मृत पाए गए थे। उनकी मौत के बाद ‘हत्या-या-आत्महत्या’ जैसे सवालों के बीच उभरे विवाद के कारण कुछ निर्माताओं ने ऐसी फिल्में बनाने की घोषणा की, जिन्हें सुशांत की जिंदगी से प्रेरित बताया गया। न्याय: द जस्टिस के अलावा दो ऐसी फिल्मों के टाइटल थे सुसाइड ऑर मर्डर: अ स्टार वाज लॉस्ट और शशांक। जाहिर है, इन फिल्मों के निर्माण की घोषणा सुशांत की दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति में मृत्यु से संबंधित मामलों में आम लोगों की दिलचस्पी को बॉक्स ऑफिस पर भुनाने के लिए की गई होगी। यह भी स्पष्ट है कि इन फिल्मों में कई ऐसे दृश्य फिल्माए जाएंगे, जो सुशांत के जिंदगी की घटनाओं की हूबहू नकल भले ही न हों, वे दर्शकों को उनकी याद जरूर दिलाएंगे। ऐसी फिल्मों को कानूनी अड़चनों और अन्य पचड़ों के कारण बॉयोपिक नहीं बताया जा सकता, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि मानो बॉलीवुड ने बीच का रास्ता निकाल लिया है। आज निजी जिंदगियों से ‘प्रेरित’ ‘काल्पनिक’ कहानियों पर कई फिल्में बन रही हैं। भले ही वे किसी जीवित या मृत व्यक्ति या वास्तविक घटनाओं पर आधारित या उनसे प्रेरित हों, उनके निर्माता फिल्म की शुरुआत में यह ‘डिस्क्लेमर’ नहीं देना भूलते कि उनकी कहानी और उससे जुड़े सारे किरदार काल्पनिक हैं और असल जिंदगी में अगर वे किसी से मिलते-जुलते प्रतीत होते हैं तो यह महज संयोग है। यानी चित भी मेरी, पट भी मेरी।

यह बॉलीवुड और ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म पर दिखाए जाने वाले वेब सीरीज की सफलता का नया फॉर्मूला है। इसके दो फायदे हैं। पहला यह कि फिल्म की स्क्रिप्ट को टिकट खिड़की की मांग के अनुसार बदला जा सकता है। दूसरा, फिल्म को प्रचारकों द्वारा ‘सच्ची घटनाओं से प्रेरित कहानी’ बताकर प्रदर्शन के पूर्व दर्शकों के बीच कौतूहल पैदा किया जा सकता है। हाल के दिनों में विभिन्न माध्यमों पर कई ऐसी फिल्में या वेब सीरीज आईं जिनके सच्ची घटनाओं पर आधारित होने के बावजूद काल्पनिक बताकर दोहरा मुनाफा कमाया गया। 

पिछले दिनों आई बहुचर्चित वेब शृंखला महारानी इसका नायाब उदाहरण है। क्या यह राबड़ी देवी की बॉयोपिक है? इसका जवाब हां और ना दोनों हो सकता है। हां, क्योंकि हुमा कुरैशी अभिनीत रानी भारती नामक किरदार निस्संदेह बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री पर आधारित है। और ना, क्योंकि इस वेब सीरीज में वर्णित घटनाओं को इतना बदल दिया गया कि इसे काल्पनिक बताया जा सके। दरअसल, इस वेब सीरीज में ‘रियल’ और ‘रील’ का फासला इतना धुंधला है कि दर्शकों को आश्चर्य होता है कि यह जीवन का अनुसरण करने वाली कला का उदाहरण है या कला की नकल करने वाले जीवन का।

असली जिंदगी की घटनाओं को चुराकर काल्पनिक कहानी में कैसे पिरोया जा सकता है, सुभाष कपूर की महारानी वेब शृंखला इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें दिखाई गई घटनाओं को सिनेमाई लाइसेंस के नाम पर बदला गया है और फिल्मी मसालों की छौंक के साथ ऐसे पेश किया गया है कि यह पूरी तरह से कपोल-कल्पित लगे। यह बात और है कि फिल्म के प्रचारकों ने इसके प्रदर्शन के पूर्व ऐसी खबरें फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि यह राबड़ी देवी और लालू यादव की ही कहानी है।

भले ही इसके मुख्य कलाकार (देखें इंटरव्यू) दावा करें कि यह काल्पनिक कहानी है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि महारानी में दिखाए गए दृश्यों का लालू और राबड़ी के 15 साल के शासनकाल के दौरान बिहार की स्थिति से बहुत कुछ लेना-देना है। इस फिल्म में पशुपालन घोटाला से लेकर रणवीर सेना के लक्ष्मणपुर-बाथे नरसंहार का जिक्र है, जिसके प्रमुख बरमेश्वर मुखिया थे। हालांकि सिनेमाई लाइसेंस के कारण चारा घोटाला को दाना घोटला, लक्ष्मणपुर-बाथे को लक्ष्मणपुर और रणवीर सेना को वीर सेना, और बरमेश्वर मुखिया को रामेश्वर मुखिया के रूप में दर्शाया गया है। पूरी वेब सीरीज में बिहार में 1990 से 2005 के बीच हुई घटनाओं के कई संदर्भ हैं। हुमा कुरैशी, अभिनेता सोहम शाह द्वारा निभाए गए अपने स्क्रीन पति के किरदार को साहब कहती हैं - वैसे ही जैसा राबड़ी वास्तविक जीवन में लालू को संबोधित करती रही हैं।

जैसे सुशांत के पिता ने अपने मृत पुत्र के जीवन पर बनने वाली फिल्मों पर ऐतराज किया, वैसे ही लालू की बेटी रोहिणी आचार्य ने भी महारानी में अपनी मां राबड़ी देवी के अनपढ़ मुख्यमंत्री होने के रूप में चित्रण के लिए निर्माताओं पर निशाना साधा। उनका कहना था कि उनके पिता ने अपने शासनकाल में बिहार के लोगों को लोककथाओं में वर्णित स्वर्ग भले ही न दिया हो, लेकिन उन्होंने उन लोगों को आवाज दी, जिन्हें तब तक गरिमापूर्ण जीवन जीने का कोई अधिकार नहीं था। राबड़ी के छोटे भाई, पूर्व सांसद साधु यादव ने भी अपनी बहन के बचाव में कहा कि वे अनपढ़ महिला नहीं हैं, जैसा कि वेब शृंखला में दिखाया गया है।

राबड़ी को इस सीरीज में बिहार की अनिच्छुक मुख्यमंत्री के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपनी इच्छा के विरुद्ध राज्य सरकार की मुखिया चुने जाने के पहले तक गोपालगंज में अपने गांव में अपने बच्चों की परवरिश और गायों की देखभाल करने में ही खुश थीं। वेब शृंखला में, वे अपने मुख्यमंत्री-पति पर हुए हत्या के असफल प्रयास के बाद सरकार की बागडोर संभालती है।

असल जिंदगी में राबड़ी को तब चुना गया था जब लालू को चारा घोटाले में चार्जशीट होने के कारण जेल जाना पड़ा था। यह भी दिखाया गया कि राबड़ी ने ही मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभालने के बाद चारा घोटाले का खुलासा किया था। इसके अलावा, वे एक मजबूत मुख्यमंत्री के रूप में उभरती हैं, जो अपने पति की मुखालफत कर उन्हें दाना घोटाले में मिलीभगत के कारण जेल भिजवाती हैं। यह सत्य से बिलकुल परे है। लेकिन इसमें दो मत नहीं कि सीरीज के निर्माताओं ने सार्वजनिक क्षेत्र में राबड़ी और लालू से जुड़ी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध सामग्री को काल्पनिक कर पेश किया। 

हाल में प्रदर्शित एक अन्य लोकप्रिय वेब सीरीज, द फैमिली मैन को भी काल्पनिक कहानी के रूप में पेश किया गया है लेकिन इसमें दिखाए गए एक किरदार भास्करन स्पष्ट रूप से एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरण से प्रेरित दिखता है, जिसके खिलाफ तमिलनाडु में विरोध भी हुआ। एक अन्य सीरीज अवरोध उरी सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित है जिसमें नीरज कबी का किरदार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से प्रेरित है, ठीक वैसे ही जैसा विकी कौशल की सुपरहिट फिल्म उरी (2018) में परेश रावल का था, लेकिन उसे भी काल्पनिक नाम दिया गया।

इसी तरह हाल में प्रदर्शित फिल्म, द बिग बुल में अभिषेक बच्चन का किरदार विवादस्पद स्टॉक ब्रोकर हर्षद मेहता पर आधारित है, लेकिन उन्हें फिल्म में हेमंत शाह के रूप में पेश किया गया। 2017 में प्रदर्शित मधुर भंडारकर की फिल्म इंदु सरकार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से प्रेरित थी और अजय देवगन की फिल्म बादशाहो (2017) आपातकाल के समय की एक सच्ची घटना से, लेकिन दोनों को काल्पनिक बताया गया।

ऐसी फिल्मों और सीरीज की कमी नहीं है। महारानी और द फॅमिली मैन की अपार सफलता के बाद ऐसी और फिल्में और वेब सीरीज बनने के आसार हैं जिन्हें सच्ची घटनाओं पर आधारित होने के बावजूद काल्पनिक कहानियों के रूप में पेश किया जाएगा। रील और रियल का फासला अब मिटता जा रहा है।

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