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जन्मदिन पर जानिए कौन थे जयशंकर प्रसाद

हिंदी में एक तरफ खड़ी बोली पैर पसार रही थी तो दूसरी तरफ कामायनी जैसी रचना देने वाले जयशंकर प्रसाद किशोर...
जन्मदिन पर जानिए कौन थे जयशंकर प्रसाद

हिंदी में एक तरफ खड़ी बोली पैर पसार रही थी तो दूसरी तरफ कामायनी जैसी रचना देने वाले जयशंकर प्रसाद किशोर उम्र की दहलीज पर पहुंच रहे थे। ध्रुव स्वामिनी नाटक की रचना करने वाले जयशंकर प्रसाद का आज जन्मदिन है। 30 जनवरी 1889 को वाराणासी में जन्मे जयशंकर प्रसाद ने हिंदी साहित्य जगत को इतना समृद्ध किया कि आज भी हिंदी साहित्य संसार उनका ऋणी है।

जयशंकर प्रसाद के जीवन की खास बात यह थी कि वह धन और वैभव के बीच पले बढ़े। उनके पिता नसवार बनाने के कारण उस पूरे इलाके में सुंघनी साहू के नाम से मशहूर थे। लेकिन जयशंकर प्रसाद ने कभी अपने पिता के पैसों का घमंड नहीं किया और पढ़ाई को बहुत ही गंभीरता से लिया। शिव उपासक माता-पिता ने बालक जयशंकर प्रसाद की शिक्षा घर से ही शुरू की। संस्कृत, हिंदी, फारसी और उर्दू के लिए अलग-अलग शिक्षक थे। बाद में आठवीं तक उन्होंने क्वींस कॉलेज में भी पढ़ाई की।

लेकिन समय को कुछ और ही मंजूर था। अभी जयशंकर 12 साल के ही हुए थे कि उनके पिता दुनिया छोड़ गए। वैभव घटने लगा और चार साल बाद जब उनकी मां का निधन हुआ तो सारा वैभव जैसे विलीन ही हो गया। फिर उनके बड़े भाई का निधन हुआ और प्रसाद जिम्मेदारियों के बोझ से लद गए। लेकिन उन्होंने हर परिस्थिति में अपनी लेखनी को जिंदा रखा और मात्र 48 साल के जीवन में ही कविता, उपन्यास, नाटक और निबंध के क्षेत्र में अपनी धाक जमा ली। उनकी कहानियां कविता के मुकाबले कम हैं लेकिन आकाशदीप कहानी ने उस दौर में धूम मचा दी थी। उनके चरित्रों का चित्रण अनूठा होता था। फिर भले ही वह कविताओं में आएं या नाटकों में। अपने नाटकों में अभिनय की ज‌टिलता पर जोर देने के लिए जब उनकी आलोचना हुई तो उन्होंने कहा था, ‘‘रंगमंच को नाटक के अनुकूल होना चाहिए, नाटकों को रंगमंच के अनुकूल नहीं।’’  

बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयशंकर प्रसाद को छायावाद के संस्थापकों की त्रयी में से एक माना जाता है। माना जाता है कि जयशंकर प्रसाद ने नौ साल की उम्र में ही कलाधर उपनाम से ब्रजभाषा में एक सवैया लिखा था जिसे उनके गुरु रसमयसिद्ध ने बहुत सराहा था। शुरुआती दौर में उन्होंने ब्रजभाषा में लिखा। पर बाद में खड़ी बोली में ही उनकी रचनाएं आने लगीं।

उनकी कई रचनाएं प्रसिद्ध हुईं लेकिन कामायनी से वह आज भी जाने जाते हैं। कामायनी महाकाव्य ने उन्हें कालजयी बना दिया। उन्होंने चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, स्कंदगुप्त, जनमेजय का नागयज्ञ, एक घूंट जैसे नाटक लिखे। कुछ कहानियों के अलावा तितली और कंकाल नाम से उपन्यास भी लिखे। आंसू को आज भी श्रेष्ठ गीतिकाव्य माना जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में संतुलित भाषा, शैली और अलंकरणों का उपयोग कर अपनी रचनाओं को अलग कतार में ला दिया था।

अपनी रचनाओं और भाषा में नित नए प्रयोग करने वाले जयशंकर प्रसाद ने 15 नवंबर 1937 को देह छोड़ दी। लेकिन उनकी जीवंत रचनाएं आज भी जीवित हैं। हिंदी भाषा की समृद्धि के साथ-साथ उन्होंने साहित्य को भी समृद्ध किया जो आज तक पाठकों की थाती है। 

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