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आश्रम, मदरसा, गुरूद्वारा, चर्च और सामाजिक संगठनों के भवनों को बनाया जाए कोविड केयर सेंटर, SC में दाखिल की जनहित याचिका

टैक्सपेयर्स एसोसिएशन ऑफ भारत ने आश्रम, मदरसा, गुरूद्वारा और चर्च सरीखे धार्मिक व सामाजिक संगठनों के...
आश्रम, मदरसा, गुरूद्वारा, चर्च और सामाजिक संगठनों के भवनों को बनाया जाए कोविड केयर सेंटर, SC में दाखिल की जनहित याचिका

टैक्सपेयर्स एसोसिएशन ऑफ भारत ने आश्रम, मदरसा, गुरूद्वारा और चर्च सरीखे धार्मिक व सामाजिक संगठनों के भवनों को कोविड केयर सेंटर में तब्दील करने की मांग की है। एसोसिएशन ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल  की है। साथ ही कहा है कि सांसदों और विधायकों को भी स्थानीय प्रशासन के साथ उनके चुनाव क्षेत्र में कोविड व्यवस्थाओं के लिए जवाबदेह बनाया जाए। एसोसिएशन के अध्यक्ष मनु गौड़ का कहना है कि याचिका में कुछ बेहद जरूरी राहतों की मांग की गई है जो ईमानदारी से टैक्स भरने वालों के लिए इस आपदा में वरदान हो सकती हैं।

याचिका में कहा गया है कि देश भर में कोविड मरीजों का जिलावार डाटा जुटाया जाए जिसमें उनकी आक्सीजन, दवा, हास्पिटलाइजेश आदि की डिमांड का ब्योरा हो। इसे डैशबोर्ड/वेबपोर्टल के जरिए विकसित किया जाए और इसकी जानकारी साझा की जाए। इसके जरिए कोविड के मरीज खुद को रजिस्टर कर सकते हैं और बेड की उपलब्धता पता कर सकते हैं। इस काम के लिए जिलेवार नोडल अफसरों की नियुक्ति की जाए।

मनु गौड़ ने कहा है कि आश्रम, मदरसा, गुरूद्वारा और चर्च सरीखे धार्मिक व सामाजिक संगठनों के भवनों को कोविड केयर सेंटर में तब्दील किया जाए। उनके पास मौजूद धन का इस्तेमाल कोविड राहत में किया जाना चाहिए क्योंकि यह धन सामाजिक और धार्मिक कार्यों के लिए जनता द्वारा ही दिया गया है और आज के समय में कोरोना से लोगों की जान बचाने से बड़ा सामाजिक कार्य और धर्म कोई नही है। साथ ही देश के सभी आयुर्वेदिक, होइपैथिक, यूनानी और नेचुरोपैथी के सभी अस्पतालों को भी कोविड केयर सेंटर बनाया जाये। इस कोविड काल में कोविड के ईलाज के लिए जरूरी दवाओं के इस्तेमाल को सुलभ बनाया जाए और उन पर लगने वाले जीएसटी को कोरोना काल के लिए समाप्त किया जाए। आम जनता की जान बचाने की खातिर दूसरी कंपनियों को भी इन दवाओं के उत्पादन के अभियान में हिस्सेदार बनाया जाना चाहिए।

याचिका में यह भी मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार, स्वास्थ्य मंत्रालय, नर्सिंग/मेडिकल काउंसिल और दूसरी संस्थाओं को निर्देश दे कि वे डाक्टरी की पढ़ाई कर रहे डाक्टरों/नर्सों को उनकी डिग्री पूरी करने के लिए कोविड मरीजों की सेवा को प्राथमिकता दें। साथ ही जो डॉक्टर/नर्स अपनी आगे के कोर्स के प्रवेश परीक्षा की तैयारी में जुटे हैं, उन्हें कोविड मरीजों की सेवा करने पर प्रवेश परीक्षा में प्राथमिकता दिए जाने हेतु मापदंड तैयार किए जायेँ, जिससे स्वास्थ कर्मियों की कमी को दूर किया जा सके। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हाउसों को भी इस बात के निर्देश दिए जाएं कि वे फेफड़ों से जुड़ी एक्सरसाईज का हर घंटे कम से कम 4 मिनट तक अनिवार्य प्रसारण करें।

एसोसिएशन का कहना है कि घर पर होमडिलेवरी करने वाले स्टाफ, पब्लिक ट्रांसपोर्ट आदि का शत प्रतिशत टीकाकरण जरूरी हो। साथ ही ऐसे व्यापारिक संस्थान/उद्योग आदि जो अपने सभी कर्मियों का पूर्ण टीकाकरण करा लें, उन्हें अपने संस्थान के पूर्ण संचालन की छूट दी जाये। जिनके दोनों टीके लग चुके हों उनके टीकाकरण के प्रमाण पत्र को लॉकडॉन में पास की तरह मान्यता दी जाये। इस प्रकार टीकाकरण हेतु प्रोत्साहन भी मिलेगा और संक्रमण की गति भी धीमी होगी। हर जिले में पुलिस कंट्रोल रूम की तरह से एक कोविड कंट्रोल रूम बनाया जाए, जो नागरिकों के लिए जरूरी इंतजाम कर सके। कोविड से हुई मौतों में नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के प्रावधानों के अनुसार परिवार जनों को उचित मुआवजा दिया जाये क्योंकि देश भर से ऐसी खबरें आ रही हैं की कोरोना टेस्टिंग के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है और राज्य अपने यहां कोरोना पीड़ितों के आंकड़ों को कम दिखाने के लिए टेस्ट कम कर रहे हैं और टेस्ट करने के लिए मना भी कर रहें हैं। इसलिए जो लोग टेस्टिंग करने के लिए मना करें उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाये और गत वर्ष से अभी तक के कोविड और गैर कोविड मृत्यु के आंकड़ों को सार्वजनिक किया जाये।

याचिका में सांसदों और विधायकों को भी स्थानीय प्रशासन के साथ उनके चुनाव क्षेत्र में कोविड व्यवस्थाओं के लिए जवाबदेह बनाने की बात कही गई है क्योंकि सांसद और विधायकों को भी वेतन, भत्ते और पेंशन टैक्सपेयर्स के पैसों से ही दिये जाते हैं इसलिए किसी भी तरह के कुप्रबंधन के लिए वे उत्तरदायी हों। कोविड के मरीजों के लिए एक उपयुक्त गाइडलाइन भी बनाई जाए ताकि ये स्पष्ट हो सके कि किसे अस्पताल की जरूरत है, किसे कोविड केयर सेंटर की जरूरत है और किसे होम आइसोलेशन की। ताकि गंभीर रोगियों को अस्पतालों में बेड उपलब्ध हो सकें।

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