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30 नवंबर को अमिताभ घोष के पाठको को मिलेगा हिंदी में नया तोहफा

अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक अमिताभ घोष का नया गन आइलैंड का हिंदी संस्करण उपन्यास 30 नवंबर को पाठको के हाथ...
30 नवंबर को अमिताभ घोष के पाठको को मिलेगा हिंदी में नया तोहफा

अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक अमिताभ घोष का नया गन आइलैंड का हिंदी संस्करण उपन्यास 30 नवंबर को पाठको के हाथ में होगा। घोष के प्रशंसक, लंबे समय से गन आइलैंड के हिंदी अनुवाद का इंतजार कर रहे थे। हिंदी में यह उपन्यास बंदूक द्वीप के नाम से आ रहा है। गन आइलैंड हिंदी के साथ मराठी और मलयालम में भी रीलीज हो रहा है। हिंदी में यह उपन्यास वेस्टलैंड के भाषाई प्रकाशन एका ने प्रकाशित किया है।

घोष इतिहास की गहराइयों से अपनी कहानियां लातें हैं और पाठक उन्हें चाव से पढ़ते हैं। विषय पर किए गए गहराई से शोध से वह अपनी किसी भी रचना को ऐसी बारीक रचना में बदल देते हैं, जो पढ़ने वालों चमत्कृत करता है। उनके उपन्यासों में समाज के विभिन्न परिवेश से लेकर, भाषा, पर्यावरण, राजनीति सभी का मिश्रण होता है। उनके द्वारा लिखा गया, सी ऑफ पॉपीज' इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। इस उपन्यास में वे बताते हैं कि कैसे भारत में अंग्रेजी साम्राज्यवाद ने यहां की खेती बरबाद की और आम की जगह खेतों को अफीम के पौधों से भर दिया था। अपने नए उपन्यास गन आइलैंड में भी वह पर्यावरण और इसकी परेशानियों पर एक बार फिर पाठको का ध्यान खींचते हैं। गन आइलैंड एक व्यक्ति की कहानी है, खुद को खोजने, सुंदरबन की लुप्त होती लोककथा और हमारे समय की सबसे घातक परेशानियों को बेजोड़ तरीके से साथ लाती है। गन आइलैंड सितंबर 2019 में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास पूरे उत्तर भारत के सामाजिक-आर्थिक तंत्र को झकझोर देने वाली कथा है।

1956 में कलकत्ता में जन्में अमिताभ घोष भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका में पले-बढ़े। दिल्ली, ऑक्सफोर्ड और एलेक्ज़ेन्ड्रिया में पढ़ाई करने वाले घोष की रचनाओं का तीस से भी ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। वह अंग्रेजी के पहले लेखक हैं, जिन्हें प्रतिष्ठित ज्ञापनीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उससे पहले किसी अंग्रेजी लेखक को यह पुरस्कार नहीं मिला था। घोष को 2018 में यह पुरस्कार दिया गया था।

एका, वेस्टलैंड की प्रकाशक मीनाक्षी ठाकुर, कहती हैं, “गन आइलैंड बहुत बारीकी से गढ़ी गई कहानी है, जिसका केंद्र आज के समय की वो दो सबसे भयावह चुनौतियां हैं, जिनसे हम जूझ रहे हैं- जलवायु परिवर्तन और शरणार्थी संकट। बंगाल की एक लुप्त होती लोककथा को वर्तमान परिस्थितियों से कुशलता से इस तरह जोड़ना, जिसकी गूंज सभी महाद्वीपों में महसूस की जा सकती और इसकी कहानी भी दिलचस्प बने यह अमिताभ घोष ही कर सकते हैं।

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