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दीवाली पर मथुरा के नंदगांव में जलाया जाता है पांच किलो गाय के घी से भरा दीपक

देश के कोने-कोने में दीपावली मनाने की लगभग एक सी परंपरा है, लेकिन मथुरा एक ऐसी नगरी है, जहां के  मंदिरों...
दीवाली पर मथुरा के नंदगांव में जलाया जाता है पांच किलो गाय के घी से भरा दीपक

देश के कोने-कोने में दीपावली मनाने की लगभग एक सी परंपरा है, लेकिन मथुरा एक ऐसी नगरी है, जहां के  मंदिरों में दीपावली का त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी में  दीपावली पर कहीं ठाकुर जी चौसर खेलते हैं, कहीं सकड़ी और निकरा के भोग लगते हैं। नंदगांव में नंद जी के आंगन में निराली दिवाली है को चरितार्थ करने के लिए पहले नंदबाबा मंदिर के शिखर पर अनूठा दीपक जलाया जाता है। यहां पांच किलो गाय के घी से दीपक जलाया जाता है। 

नंदबाबा मंदिर के सेवायत आचार्य लोकेश गोस्वामी के मुताबिक, दिवाली के दिन इस दीपक को जलाने के लिए एक ऐसा दीपक बनाया जाता है जिसमें पांच किलो शुद्ध गाय का घी आ सके। इसमें बिनौला आदि डालकर विशेष रूप से तैयार करते हैं, जिसे 200 फीट ऊंचे मंदिर के शिखर पर जलाया जाता है। इस दीपक के संबंध में मंदिर के एक अन्य सेवायत सुशील गोस्वामी ने बताया कि उनके बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि बहुत पहले मंदिर के शिखर पर इतना बड़ा दीपक जलाया जाता था कि उसकी लौ को भरतपुर में देखकर वहां के राजघराने में दीपावली मनाई जाती थी। इसी परंपरा का आज भी नन्दगांव में निर्वाह किया जा रहा है।

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान में तो छोटी दीपावली से ही मंदिरों में न केवल दीपावली की धूम मच जाती है बल्कि जन्मस्थान स्थित मंदिरों में दीपावली का पर्व सामूहिक दीपावली के रूप में मनाया जाता है। मंदिर में न सिर्फ इस तरह का अनोखा दीया जलाया जाता है, बल्कि मंदिर प्रांगण में बहुत बड़ी रंगोली बनाकर उसके चारों ओर 21 हजार दीपक जलाए जाते हैं। सबसे पहले केशव देव मंदिर में दीपक जलाया जाता है और फिर जन्मस्थान पर स्थित अन्य योगमाया, राधाकृष्ण आदि मंदिरों में दीपक जलाते हैं तथा सबसे अंत में रंगोली के चारो तरफ 21 हजार दीपक जलाते हैं। इसमें ब्रजवासियों के साथ-साथ तीर्थयात्रियों को भी शामिल किया जाता है क्योंकि ठाकुर जी सबसे अधिक सामूहिक आराधना में ही प्रसन्न होते हैं। 

राधाश्यामसुन्दर मंदिर वृन्दावन के आचार्यों का कहना है कि इस दिन ठाकुर जी कृष्णकाली वेश में दर्शन देते हैं। इस दिन मंदिर में आकाश दीप के साथ-साथ पूरे मंदिर परिसर में दीप जलाते हैं तथा अगले दिन अन्नकूट में 56 भोग 36 व्यंजन बनते हैं। गाय के गोबर से विशाल गिरिराज बनाकर पूजन होता है तथा शाम को भंडारे में व्रजवासी और तीर्थयात्री प्रसाद ग्रहण करते हैं।

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