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इस वजह से बिहार में तेजी से अटैक कर रहा है इंसेफेलाइटिस, लाचार है सिस्टम

बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस...
इस वजह से बिहार में तेजी से अटैक कर रहा है इंसेफेलाइटिस, लाचार है सिस्टम

बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस बीमारी से अब तक 126 बच्चों की मौत हो चुकी है। सोमवार शाम तक एन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के 350 नए मामले सामने आए और इससे मरने वाले बच्चों का आंकड़ा 103 बताया गया जो आज 126 पहुंच गया है। इनमें से अधिकांश मौतों के लिए हाइपोग्लाइसेमिया को जिम्मेदार ठहराया गया है जिसका मतलब है लो ब्लड शुगर लेवल। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि हाइपोग्लासेमिया एईएस के रोगियों में आमतौर पर देखा जाने वाला संकेत है, जो वर्षों से शोध का विषय रहा है।

सामान्य तौर पर हाइपोग्लाइसेमिया के लक्षण दिमागी बुखार के मरीजों में दिखते हैं। सालों तक किए गए शोध के बाद दोनों के बीच ये संबंध स्थापित किए गए।

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम को लेकर जानें क्या कहते हैं डॉक्टर 

आउटलुक से बातचीत में दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल बंसल ने बताया कि बुखार आने, हाथ-पैरों में कमजोरी महसूस होने, गर्दन और कमर में खिचाव होने पर इसका असर दिमाग तक पहुंच जाता है। कुपोषित बच्चे इस बुखार के ज्यादा शिकार होते हैं क्योंकि उनमें प्रतिरोध क्षमता कम होती है। इसके इलाज में लोग देरी कर देते हैं क्योंकि वह पहले अपने आस-पास के ऐसे डॉक्टरों के पास जाते हैं जो इसके इलाज में सक्षम नहीं होते। इसकी वजह से मरीज के इलाज में देरी होती है और सही समय पर उसे इलाज नहीं मिल पाता। 

वहीं, उन्होंने बताया कि इस बुखार के दौरान हाइपोग्लासेमिया हो जाता है जिसका मतलब है लो ब्लड शुगर लेवल। इसमें शुगर लेवल 70 से नीचे चला जाता है। दिमाग को काम करने के लिए मिनिमम शुगर जरूरी होती है। डायबिटीज के मरीज को हाइपोग्लाइकेमिया होने पर तुरंत इलाज न करवाने पर उसकी मौत हो सकती है।

किस वजह से होती है एईएस बीमारी

दरअसल दिमागी बुखार का दायरा बहुत विस्तृत है जिसमें अनेक संक्रमण शामिल होते हैं और यह बच्चों को प्रभावित करता है। यह सिंड्रोम वायरस, बैक्टीरिया या फंगी के कारण हो सकता है। भारत में सबसे सामान्य तौर पर जो वायरस पाया जाता है उससे जापानी इंसेफेलाइटिस (जापानी बुखार) होता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुमान के अनुसार दिमागी बुखार के 5-35 फीसदी मामले जापानी बुखार वायरस के कारण होते हैं।

बिहार में डायरेक्टरेट ऑफ हेल्थ सर्विसेस (डीएचएस) का दावा है कि इस साल जापानी बुखार वायरस कारण दिमागी बुखार के केवल दो मामले सामने आए। इसके साथ ही यह सिंड्रोम टाइफस, डेंगी, मम्प्स, मिजल्स, निपाह और जीका वायरस के कारण भी होता है। हालांकि, मुजफ्फरपुर में अधिकतर बच्चों के मामले में बीमारी का कारण क्लिनिकली तौर पर पता लगाना बाकी है। मुजफ्फरपुर, वियतनाम और बांग्लादेश में दिमागी बुखार के साथ हाइपोग्लाइसेमिया का संबंध अनोखा है। बिहार में डीएचएस के पूर्व निदेशक कविंदर सिन्हा ने कहा, ‘हाइपोग्लाइसेमिया कोई लक्षण नहीं बल्कि दिमागी बुखार का संकेत है। बिहार में बच्चों को हुए दिमागी बुखार का संबंध हाइपोग्लाइसेमिया के साथ पाया गया है। यह हाइपोग्लाइसेमिया कुपोषण और पौष्टिक आहार की कमी के कारण होता है।'

एईएस से बिहार में हर साल मरने वालों की संख्या

साल

मरने वालों की संख्या

2014

355

2015

11

2016

4

2017

11

2018

7

2019

126

 

 


किस तरह हाइपोग्लाइसेमिया एईएस से जुड़ा हुआ है
?

डॉक्टर मौतों का कारण बताते हुए कहते हैं कि बिहार में दिमागी बुखार के 98 फीसदी मरीज हाइपोग्लाइकसेमिया से पीड़ित हैं। 2014 में मुजफ्फरपुर में किए गए एक अध्ययन में डॉ अरुण शाह और टी जैकब जॉन ने सुझाव दिया था कि हाइपोग्लाइकसेमिया के इलाज से ही दिमागी बुखार को खत्म किया जा सकता है।

साल 2014 में एक रिसर्च पेपर ‘एपिडेमियोलॉजी ऑफ एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम इन इंडिया: चेंजिंग पैराडिग्म एंड इम्प्लिकेशन फॉर कंट्रोल’ में बिहार के मुजफ्फरपुर और वियतनाम के बाक गियांग प्रांत के मामलों में समानता दिखाई गई थी। दोनों ही जगहों पर पड़ोस में ही लिची के बाग थे।

अध्ययन में कहा गया था, इस बीमारी का लिची या पर्यावरण में मौजूद किसी जहर के साथ संभावित संबंध को दर्ज किया जाना चाहिए। पशुओं पर किए गए परीक्षण में हाइपोग्लाइसेमिया होने का कारण लिची में मौजूद मेथिलीन साइक्लोप्रोपिल ग्लिसिन को पाया गया था।

डॉ सिन्हा ने कहा कि जब मई में लिची तोड़ने का काम शुरू होता है तब अनेक मजदूर खेतों में समय बिताते हैं। उन्होंने कहा, यह बहुत ही सामान्य है कि बच्चे जमीन पर गिरी हुई लिचियों को खाते होंगे और फिर बिना खाना खाए सो जाते होंगे। इसके बाद रात के समय लिची में मौजूद विषाक्त पदार्थ उनका ब्लड सुगर लेवल कम कर देता है और ये बच्चे सुबह के समय बेहोश हो जाते हैं।

हालांकि, बिहार स्टेट सर्विलांस अधिकारी डॉ रागिनी मिश्रा कहती हैं, अगर लिची में मौजूद विषाक्त पदार्थ के कारण हाइपोग्लाइसेमिया होता है तो ये मामले हर साल इतनी ही मात्रा में सामने आए चाहिए और हर तरह की सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले बच्चों को प्रभावित करने चाहिए। इस साल मौत के सभी मामले निम्न आय वर्ग वाले के सामने आए हैं।

उन्होंने कहा कि जहां दिमागी बुखार के कारण पर अभी भी शोध किया जा रहा है तो वहीं हाइपोग्लाइसेमिक दिमागी बुखार कारण कुपोषण, गर्मी, बारिश की कमी और अंतड़ियों से संबंधित संक्रमण हो सकते हैं।

मुजफ्फरपुर में एईएस का इतिहास क्या है?

मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार का पहला मामला 1995 में सामने आया था। वहीं , पूर्वी यूपी में भी ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। इस बीमारी के फैलने का कोई खास पैमाना तो नहीं है लेकिन अत्यधिक गर्मी और बारिश की कमी के कारण अक्सर ऐसे मामले में बढ़ोतरी देखी गई है।

डॉ मिश्रा ने कहा, पिछले साल मुजफ्फरपुर में बहुत कम मामले सामने आए थे। पिछले साल बहुत कम दिन ही तापमान अधिक था और बारिश भी ठीक हुई थी। इस साल, गर्मी बहुत ज्यादा है और बारिश नहीं हो रही है।

वहीं, उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों ही राज्यों में कुपोषण बहुत ही अधिक है और कुपोषित बच्चे इसके अधिक शिकार होते हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देशभर में केवल उत्तर प्रदेश और बिहार से ही 35 फीसदी बच्चों की मौतें होती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों के अनुसार, साल 2015-16 में पांच साल से कम उम्र के 48 फीसदी बच्चे बिहार में मौत का शिकार बन गए थे, जो कि भारत में सर्वाधिक था।

एईएस से कैसे निपट रही है सरकार

बिहार सरकार ने सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ्त टीके लगाए। वर्तमान कवरेज 70% है। केंद्र और राज्य सरकारों ने फरवरी से जागरूकता अभियान चलाया है ताकि लोग अपने बच्चों को धूप में न निकलने दें, उन्हें उचित आहार सुनिश्चित करें और बच्चों के लिए तरल पदार्थ का सेवन बढ़ाएं। इन सबको लेकर डीएचएस के निदेशक डॉ. आर डी रंजन का कहना है कि सबसे पहले अस्पताल में रेफरल और मानक उपचार के साथ तेज बुखार और उल्टी से जीवन को बचाया जा सकता है।

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