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आरबीआइ ने लोन पर मोरेटोरियम तीन महीने बढ़ाया, अगस्त तक किस्त नहीं, रेपो रेट में भी राहत

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने मौजदा संकट को देखते हुए बैंकों के कर्जों की मासिक किस्त पर रोक यानी...
आरबीआइ ने लोन पर मोरेटोरियम तीन महीने बढ़ाया, अगस्त तक किस्त नहीं, रेपो रेट में भी राहत

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने मौजदा संकट को देखते हुए बैंकों के कर्जों की मासिक किस्त पर रोक यानी मोरेटोरियम तीन महीने और बढ़ाने का फैसला किया है। इसका अर्थ है कि कर्जदारों को 31 अगस्त कर्ज की किस्त नहीं भरनी होगी। हालांकि हर बैंक अपने कर्जदारों को राहत देने के बारे में अपने स्तर पर फैसला करेगा। आरबीआइ ने तय समय से पहले मौद्रिक नीत समिति (एमपीसी) की बैठक करके रेपो रेट में कटौती का भी फैसला किया।

रेपो रेट घटकर 4 फीसदी

मौद्रिक नीत समिति (एमपीसी) की बैठक जून में होने वाली थी लेकिन इस बैठक को जल्दी आयोजित करके मौद्रिक नीति के फैसले किए गए। एमपीसी के फैसले के अनुसार 40 बेसिस प्वाइंट की कटौती के बाद रेपो रेट 4.4 फीसदी से घटकर 4 फीसदी रह जाएगा। रिवर्स रेपो रेट पहले की तरह रहेगा। इसमें कोई बदलाव नहगीं किया गया। रेपो रेट में कटौती का फैसला पिछले तीन दिनों चली एमपीसी की बैठक में लिया गया। इससे कर्ज की किस्तों में आम लोगों को राहत मिल सकती है।

ब्याज का जल्दी लाभ मिलने लगा

आरबीआइ के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मुंबई में प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि पहले की तुलना में अब कर्जदारों को ब्याज कटौती का लाभ जल्दी और ज्यादा मिलने लगा है। आरबीआइ ने कोरोना संकट के बाद दूसरी बार घोषणा की हैं। इससे पहले आरबीआइ ने लोन पर तीन महीने की मोरेटोरियम के साथ कुछ और राहतों की घोषणा की थी।

निजी उपभोग में कटौती चिंताजनक

आरबीआइ ने कह कि इस साल कोरोना संकट के चलते वैश्विक कारोबार 13 से 32 फीसदी तक घट सकता है। आरबीआइ गवर्नर ने कहा कि शहर और गांवों दोनों जगह मांग गिर गई है। इसके कारण सरकारी राजस्व पर भी बुरा असर पड़ा है। इस संकट से निजी उपभोग पर सबसे बुरा असर पड़ा है। मार्च 2020 में कंज्यूमर ड्यूरेबल्स का उत्पादन 33 फीसदी गिर गया।

ग्रामीण अर्थव्यस्था और मानसून उम्मीद की किरण

कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की गतिविधियां उम्मीद जगाती हैं। इस साल मानसून सामान्य रहने की संभावना भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आशा जगाने वाली है। खाद्य महंगाई पर दबाव बढ़ रहा है। दास ने कहा कि जनवरी में खाद्य महंगाई कम हुई थी। लेकिन फरवरी से महंगाई की रफ्तार बढ़ गई। मार्च में भी महंगाई की दर ज्यादा रही। अप्रैल में यह बढ़कर 8.6 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। सब्जियों, तिलहन, दूध की कीमतों पर दबाव बना हुआ है।

खाद्य महंगाई बढ़ी, अगली छमाही में राहत

एमपीसी का मानना है कि महंगाई चालू वर्ष की पहली छमाही में परेशान करती रहेगी। हालांकि तीसरी और चौथी तिमाही में महंगाई की दर चार फीसदी के लक्ष्य के अंदर आ जाएगी। महंगाई का रुख आरबीआइ के अनुमान के अनुसार रहता है तो वह आने वाले समय में ग्रोथ को प्रोत्साहन देने के लिए कुछ कदम उठा सकता है।

आरबीआइ ने माना- जीडीपी घटने की आशंका

आरबीआइ के अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही यानी अक्टूबर के बाद आर्थिक गतिविधियों और मांग में सुधार होने लगेगा। हालांकि आर्थिक विकास दर निगेटिव जोन में रह सकती है। मतलब जीडीपी में गिरावट आने की आशंका बनी हुई है।

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