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टेलीकॉम नेटवर्क का हो स्वदेशीकरण, चीन की कंपनियों पर लगे रोकः स्वदेशी जागरण मंच

  देश की शीर्ष टेलीकॉम और साइबर सिक्योरिटी कंपनियों के साथ विस्तृत विचार विमर्श करने के बाद स्वदेशी...
टेलीकॉम नेटवर्क का हो स्वदेशीकरण, चीन की कंपनियों पर लगे रोकः स्वदेशी जागरण मंच

देश की शीर्ष टेलीकॉम और साइबर सिक्योरिटी कंपनियों के साथ विस्तृत विचार विमर्श करने के बाद स्वदेशी जागरण मंच ने कहा है कि भारतीय टेलीकॉम और साइबर कंपनियां दुनिया भर के बाजारों में चीन समेत सभी विदेशी कंपनियों को पछाड़ रही हैं लेकिन वे अपने घरेलू बाजार में ही पिछड़ रही हैं क्योंकि वे बिडिंग में ही हिस्सा नहीं ले पा रही हैं। एसजेएम ने सरकार के मांग की है कि भारतीय टेलीकॉम मार्केट में चीन की कंपनियों को मिल रही वरीयता न सिर्फ खत्म की जानी चाहिए बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर टेलीकॉम नेटवर्क और उपकरण सिर्फ घरेलू कंपनियों से खरीदने का नियम बनाया जाना चाहिए।

घरेलू साइबर सिक्योरिटी और टेलीकॉम कंपनियों से परामर्श

स्वदेशी जागरण मंच ने राष्ट्रीय और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने को विचार विमर्श के लिए वर्ल्ड क्लास, हाई-टेक स्वदेशी साइबर सिक्योरिटी एसएमई और टेलीकॉम कंपनियों को आमंत्रित किया और समूचे मुद्दे पर गहन परामर्श किया। भारतीय टेलीकॉम सेक्टर समस्याओं के दौर से गुजर रहा है। भारतीय टेलीकॉम नेटवर्क पर चीन की कंपनियों का नियंत्रण बना हुआ है जबकि चीन की सैन्य रणनीतिक में सूचना प्रौद्योगिकी अत्यंत अहम है। इस वजह से सुरक्षा को खतरा पैदा रहा है जो कतई स्वीकार्य नहीं है।

चीन की कंपनियों को मिल रहा अनुचित फायदा

स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डा. अश्वनी महाजन के बयान के अनुसार चीन की कंपनियों को उनकी सरकार की ओर से काफी वित्तीय सहायता मिलती है, इसी वजह से वे टेलीकॉम इन्फ्रास्ट्रक्चर अत्यधिक कम बोली लगाकर भारतीय कंपनियों को पीछे छोड़ देती हैं और नीलामी जीतने में सफल हो जाती हैं। यही नहीं, चीन की कंपनियां कस्टम ड्यूटी की चोरी भी करती हैं। जबकि भारतीय कंपनियों को दूरसंचार विभाग से देय भुगतान भी नहीं मिल पाता है। भारतीय कंपनियों को उन मानकों का भी पालन करने के लिए बाध्य किया जाता है जिनकी आवश्यकता ही नहीं हैं। ये मानक पूरे करने में सिर्फ बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी सक्षम होती हैं।

भारतीय कंपनियों के साथ देश में ही भेदभाव

इस तरह भारतीय कंपनियों के साथ घरेलू बाजार में ही भेदभाव होता है। उन्हें सरकार की ओर से कोई समर्थन भी नहीं मिलता है, जबकि दूसरे देशों में सरकारों की ओर से कंपनियों को पूरा समर्थन मिलता है। चीन ने भारतीय कंपनियों पर तरह-तरह की पाबंदियां लगा रखी हैं। देश में चल रहे स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत सिर्फ विदेशी कंपनियां टेंडर जीत रही हैं। जबकि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट भारत के विकास के लिए शुरू किया गया है। एसजेएम ने भारतीय कंपनियों की वर्ल्ड क्लास स्वदेशी क्षमताओं के बारे में जानकारी प्राप्त की। विदेश में चीन कंपनियो के भी खिलाफ टेंडर जीतने के बावजूद वे घरेलू बाजार में विफल हो जाती हैं क्योंकि सरकारी संगठन घरेलू कंपनियों को नजरंदाज करके आकर्षक अनुबंध चीन की कंपनियों को देते हैं।

टेलीकॉम नेटवर्क घरेलू कंपनियों के लिए आरक्षित हो

एसजेएम का मानना है कि इस समस्या का समाधान है कि भारत का टेलीकॉम नेटवर्क का पूरी तरह स्वदेशीकरण किया जाए और सुरक्षा के आधार पर इसे भारतीय कंपनियों के लिए आरक्षित किया जाए। इससे विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में सरकार के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकेगी। एसजेएम टेलीकॉम नेटवर्क के स्वदेशीकरण का पूरी तरह समर्थन करती है क्योंकि भारतीय कंपनियों के पास स्वदेशीकरण की पूरी क्षमता है। एसजेएम ने मांग की है कि भारतीय इन्फोर्मेशन एंड कम्युनिकेशन नेटवर्क में विदशी खासकर चीन के उपकरणों से राष्ट्रीय और आर्थिक सुरक्षा के बारे में सरकार को समझना चाहिए। देश की सुरक्षा के लिहाज से टेलीकॉम को महत्वपूर्ण और रणनीतिक ढांचा घोषित किया जाना चाहिए ताकि डब्ल्यूटीओ में इसे चुनौती न दी जा सके।

नई खरीद गाइडलाइन का कड़ाई से पालन हो

टेलीकॉम नेटवर्क के लिए सिर्फ स्वदेशी उपकरणों की खरीद होनी चाहिए। डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआइआइटी) की हाल में जारी खरीद गाइडलाइन का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। शुरुआत के तौर पर सभी सरकारी संगठनों और सार्वजनिक उपकरणों को सिर्फ स्वदेशी निर्माताओं से खरीद करनी चाहिए। सार्वजनिक उपकरणों से जो ऑर्डर लेकर प्राइवेट कंपनियों को दिए गए हैं, उन्हें वापस पीएसयू को दिए जाने चाहिए और उन पर शर्त लगाई जानी चाहिए कि वे सिर्फ घरेलू कंपनियों से ही खरीद करेंगी।

चीन के आयात पर लगे प्रतिबंध

मेक इन इंडिया के तहत डीपीआइआइटी पॉलिसी के क्लॉज 10डी के तहत चीन के आयात पर सरकार प्रतिबंध लगा सकती है। टेंडर प्रक्रिया देखने वाले सरकारी संगठनों में नियुक्तियों में हितों के टकराव की जांच की जानी चाहिए। इसी वजह से अनुचित शर्तें लगाकर घरेलू कंपिनयों को टेंडर प्रक्रिया से बाहर कर दिया जाता है। अगर टेंडर प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी मिलती है तो शिकायत दर्ज की जानी चाहिए और टेंडर रद्द किए जाने चाहिए।

भारतीय संसद कानून बनाए

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की तरह भारतीय संसद को भी बाय इंडियन एक्ट और टेलीकॉम सिक्योरिटी एक्ट अपनाना चाहिए। स्वदेशी कंपनियों को समय पर भुगतान किया जाना चाहिए ताकि वे आरएंडडी में निवेश जारी रख सकें।

स्वदेशी होनी चाहिए 5जी तकनीक

5जी तकनीक पूरी तरह स्वदेशी होनी चाहिए। 5जी कोर के क्लाउड कंपोनेंट (क्लाउड में एप, इन्फ्रा और डाटा) भारत में ही स्थापित होने चाहिए। देश में ही बने 5जी उपकरणों के लिए सरकार को रॉयल्टी का भुगतान करना होगा, इसलिए अनिवार्य लाइसेंसिंग शुरू की जानी चाहिए। 5जी स्पेक्ट्रम की बिक्री एक फंड बनाकर की जानी चाहिए ताकि इस फंड का इस्तेमाल प्राइवेट सेक्टर में 5जी और 6जी तकनीक के स्वदेशी आरएंडडी गतिविधियों में हो। यूनिवर्सल सोशल ऑब्लिगेशन (यूएसओ) फंड का भी इस्तेमाल प्राइवेट सेक्टर में नेक्स्ट-जेन तकनीक के विकास के लिए होना चाहिए। स्टैंडर्ड एसेंशियल पेटेंट के लिए राष्ट्रीय नीति लागू की जानी चाहिए।

भारत बन सकता है एक्सपोर्ट और मैन्यूफैक्चरिंग हब

एसजेएम का कहना है कि अगर ये उपाय किए जाते हैं तो चीन के विकल्प के तौर पर भारत पूरी दुनिया के लिए एक्सपोर्ट और मैन्यूफैक्चरिंग का हब बन सकता है। चीन के मुकाबले भारतीय उपकरण विदेशों में ज्यादा भरोसेमंद होंगे। चीन अफ्रीकन यूनियन मुख्यालय में जासूसी करता पकड़ा गया। हुवेई अफ्रीका की तानाशाह सरकारों को अपने ही नागरिकों की जासूसी करने में मदद कर रही। इस वजह से चीन के उपकरणों को शक की नजर से देखा जाता है जबकि भारतीय उपकरण हमेशा भरोसेमंद रहे हैं। घरेलू खरीद से भारतीय कंपनियों को राहत मिलने से देश की अर्थव्यवस्था को काफी बढ़ावा मिलेगा और स्थिरता के दौर से बाहर निकल आएगा। आयात और मौजूदा असेट के अधिग्रहण के जरिये आने वाले विदेशी प्रत्यक्ष निवेश ने विकास को कोई खास प्रोत्साहन नहीं मिला। रोजगार पैदा करने और घरेलू स्तर पर वैल्यू एडीशन में कोई सहायता नहीं मिली।

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