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लॉकडाउन से भारत की जीडीपी को चार फीसदी का परमानेंट नुकसान, क्रिसिल ने बताए कई खतरे

कोरोना वायरस और इसके संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन से हर तरह की आर्थिक क्षति होने की आशंका है। रेटिंग...
लॉकडाउन से भारत की जीडीपी को चार फीसदी का परमानेंट नुकसान, क्रिसिल ने बताए कई खतरे

कोरोना वायरस और इसके संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन से हर तरह की आर्थिक क्षति होने की आशंका है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा है कि लॉकडाउन खत्म होने और प्रतिबंध धीरे-धीरे ही सही खत्म होने पर आर्थिक गतिविधियां शुरू हो जाएंगी लेकिन गतिविधियां पहले जैसी नहीं हो पाएंगी।

इसके कारण हमेशा के लिए जीडीपी में चार फीसदी का नुकसान होगा जिसकी अगले वर्षों में भी भरपाई मुश्किल होगी। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी. के. जोशी ने कहा कि जीडीपी में चार फीसदी स्थायी नुकसान का असर होगा कि बेरोजगारी की स्थिति बद से बदतर होगी।

लॉकडाउन और बढ़ा तो शून्य होगी विकास दर

क्रिसिल रिसर्च की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि मौजूदा 40 दिनों के लॉकडाउन से जीडीपी में तीन फीसदी का नुकसान हो सकता है। उसने आगाह किया है कि इन हालात में चालू वित्त वर्ष में आर्थिक विकास दर 1.89 फीसदी रह सकती है लेकिन लॉकडाउन बढ़ाया गया तो विकास दर शून्य पर टिक जाएगी। इस समय संकेत हैं कि सरकार लॉकडाउन धीरे-धीरे खत्म करेगी और आर्थिक गतिविधियां गति पकड़ेंगी।

इंडिया इंक के राजस्व और लाभ पर चोट

क्रिसिल के अनुसार चालू वित्त वर्ष इंडिया इंक को बुरी तरह डरा रहा है। अगर देश की विकास दर 1.8 फीसदी रहती है तो इंडिया इंक की राजस्व वृद्धि दर 8-10 फीसदी तक गिर जाएगी। अगर विकास दर शून्य फीसदी पर टिक जाती है तो कंपनियों के राजस्व में वृद्धि दर 10-12 फीसदी तक गिर जाएगी। अनुमान है कि कंपनियों के मुनाफे में भी कम से कम 15 फीसदी की गिरावट आएगी।

बैंकों का एनपीए दो फीसदी बढ़ेगा

रिपोर्ट के अनुसार, कर्जों की वापसी मुश्किल में पड़ेगी जिससे बैंकों का एनपीए दो फीसदी तक बढ़कर 11.5 फीसदी तक पहुंच सकता है। बैंक की क्रेडिट ग्रोथ में भी दो फीसदी की गिरावट आएगी। क्रिसिल के अनुसार बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ घटकर दो-तीन फीसदी रह सकती है। बैंकों के लिए पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण बने रिटेल सेगमेंट में भी ग्रोथ धीमी

होगी। इससे हाउसिंग, ऑटो और कॉमर्शियल व्हीकल की बिक्री प्रभावित होगी।

दोगुने पैकेज की दरकार

क्रिसिल की रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने संकट से निपटने के लिए 1.7 लाख करोड़ रुपये का जो पैकेज दिया है, वह पर्याप्त नहीं है। उसे उम्मीद है कि राहत पैकेज दोगुना यानी 3.5 लाख करोड़ रुपये किया जाएगा और दूसरे चरण में उद्योगों पर ध्यान दिया जाएगा। इसके अलावा सरकार को लोन गारंटी जैसे उपायों से खर्च बढ़ाने के लिए भी उपाय करने होंगे।

जोशी ने कहा कि जिन देशों के पास आर्थिक संसाधन पर्याप्त मात्रा में हैं, वे और लंबे समय तक लॉकडाउन जारी रख सकते हैं लेकिन भारत के पास इतने संसाधन नहीं है। इसलिए अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए लॉकडाउन खोलना होगा। संक्रमण रोकने के लिए उपाय जून तक खत्म किए जाने चाहिए।

कॉरपोरेट कर्ज में डिफॉल्ट बढ़ेगा

क्रिसिल रिसर्च के सीनियर डायरेक्टर प्रसाद कोपराकर ने कहा, ' ये अप्रत्याशित अनुमान ऐतिहासिक हैं, जिन्हें आप भूलना चाहेंगे।' क्रिसिल ने तमाम सेक्टरों की 800 कंपनियों का विश्लेषण करके चालू वित्त वर्ष 2020-21 के लिए ये अनुमान जारी किए हैं।

वर्तमान संकट के कारण क्रेडिट की स्थिति भी खराब होगी। देश में करीब 16 लाख करोड़ रुपये कॉरपोरेट कर्ज हैं जिनमें डिफॉल्ट की रफ्तार बढ़ने का खतरा है। कंपनियों के दबावग्रस्त कर्ज का अनुपात 32 फीसदी तक पहुंच सकता है जो पहले 22 फीसदी था।

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