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वेस्टइंडीज: जब गुलामी को आंख दिखा क्रिकेट पर फतह पाई

वेस्टइंडीज को अंदाजा है कि उनका विजयरथ चालू है...ओवर की चौथी गेंद ...ओह गेंद सीधी मुंह पर.....काफी दर्दनाक.....बहुत ही दर्दनाक..... मुझे अक्सर ताज्जुब होता है कि बल्लेबाज ने सुरक्षा के सारे साजो-सामान क्यों नहीं पहने थे। प्यार और जंग में सब जायज है।
वेस्टइंडीज: जब गुलामी को आंख दिखा क्रिकेट पर फतह पाई

ये कमेंटेटर के वो शब्द हैं जो इस फाइनल मैच में वेस्टइंडीज के घातक गेंदबाजों की शान में 23 जून,1979 को कहे गये।  ये मैच वेस्टइंडीज के लिये एक जंग ही था और इस जंग में उन्होंने जीत हासिल की। जिस खेल को अंग्रेज 19वीं शताब्दी में कैरेबियन द्वीपों पर लेकर आए थे उसी खेल में वेस्टइंडीज ने इंग्लैंड को 92 रन के विशाल अंतर से शिकस्त देकर दूसरी बार विश्व चैम्पियन बना। 60 ओवर के इस मैच में वेस्टइंडीज ने सर विवियन रिचर्ड्स (नाबाद 138) और कोलिस किंग (86) की शानदार विस्फोटक पारियों की मदद से निर्धारित ओवरों में नौ विकेट पर 286 रन का विशाल स्कोर खड़ा किया।

इसके जवाब में इंग्लैंड की टीम विंडीज के तूफानी गेंदबाज जोएल गार्नर, सर एंडी रॉबट्र्स, माइकल होल्डिंग और कॉलिन क्रॉफ्ट के सामने कही भी नहीं टिक पाए। जोएल गार्नर और कॉलिन क्रॉफ्ट के तूफान में इंग्लैंड की पूरी टीम 51 ओवर में केवल 194 रन पर ढेर हो गई। मैच में शतकीय पारी खेलने वाले सर विवियन रिचर्ड्स को मैन ऑफ द मैच चुना गया।

 क्लाइव लॉयड की कप्तानी में हासिल की गई इस जीत से वेस्टइंडीज ने उस गुलामी और जिल्लत का भी बदला लिया जो अग्रेंजो की वजह से पिछले कई दशकों से वे सहते आ रहे थे। लगातार दूसरी बार विश्वविजेता बनने के बाद वेस्टइंडीज की शान में कसीदे पढ़े जाने लगे. जिन अंग्रेजी अखबारों में वेस्टइंडीज को एक असभ्य और मनमौजी टीम बताया जाता था अब वही अखबार वेस्टइंडीज को एक दिल दहलाने वाली बॉलिंग टीम की दर्जा दे रहे थे। वेस्टइंडीज की टीम अपने इलाके की नुमाइंदगी ही नहीं कर रही थी बल्कि वे अपने लोगों में गर्व का अहसास करा रही थी। ये जीत वेस्टइंडीज की आने वाली पीढ़ियों के लिए उचाईयां तय कर रही थी। 

 

सूरज की रोशनी में नहाये हुए कैरैबियन आइलैंड जन्नत जैसे लगते हैं। लेकिन सबकुछ हमेशा ऐसे शांत नहीं था। दबाने और नकारने वाली औपनौवेशिक ताकतों के खिलाफ कैरैबियन आइलैंड के संघर्ष का लंबा और दर्दनाक इतिहास रहा है। साठ और 70 के दशक में पूरे कैरेबियन में इंकलाब का वक्त था। काले लोगों का बराबरी का दर्जा नहीं था। इसके बाद अमेरिका की तरह इस इलाके में भी अश्वेत शक्तियां उभरने लगीं थी जो बहुत हद तक बदलाव का हिस्सा थी। ये शक्तियां वेस्टइंडियन लोगों में ताकत और आत्मसम्मान का बोध करा रही थी। ये वो जमाना था जब माहौल गरम था और वक्त था भेदभाव के खिलाफ अवाज उठाने का। कैरेबियन में जो लोग आज रहते हैं वे अफ्रीका महाद्वीप से उपनिवेशवाद के जरिए गुलाम बनाकर लाये गए थे। इन लोगों को कोड़ो से पीट-पीट कर काम कराया जाता था और जानवरों जैसा सलूक किया जाता था।

शुरुआत में क्रिकेट भी एक हाई सोसायटी का गेम था और लोगों को गुलाम बनाने का एक जरिया था। इसे गुलामों को सही रगं-ढंग सिखाने और अनुशासित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। 60 और 70 का दशक आते-आते कैरिबयन द्वीप में अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ आवाज तेज हो गई। 1962 में जमैका, गुयाना, त्रिनिडाड और 1966 में बारबडोस को आजादी मिल गई। गुलामी से बाहर निकलकर खुद को सबित करने के लिए क्रिकेट एक जरिया बना जिसने छोटे-छोटे द्वीपो के टुकड़ों को एकजुट किया। वेस्टइंडीज कई द्वीपो को मिलाकर बना है। सबकी सरकारे अलग है। बोलचाल अलग है खान-पान अलग है। ये सारे द्वीप एक साथ आते हैं, वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम के झंडे तले।

शुरुआत में वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम को इंग्लैड या ऑस्ट्रेलिया के उलट गंभीरता से नहीं लेता था। इसे मस्तमौला टीम माना जाता था। एक वक्त ऐसा था कि वेस्टइंडीज को लगातार 21 टेस्ट में एक भी जीत हासिल नहीं हुई। वेस्टइंडीज टीम मनोरंजक थी लेकिन विजेता नहीं। इस टीम में सभी खिलाड़ी अलग-अलग माहौल से आते थे जिन्हें एक सांचे में ढालना आसान नहीं था। कोई ऐसा चाहिये था जो इन खिलाड़ियो को एक धागे में पिरो सके और उनको एक दिशा में ले जाये। ये काम किया शांत स्वभाव के क्लाइव लॉयड ने। क्लाइव टीम के लिये एक पिता समान थे। उन्होंने टीम के खिलाड़ियों को विश्वास दिलाया कि हम भी विश्वविजेता बन सकते हैं। 

वेस्टइंडीज टीम पर फौजी हमला!

साल 1975 वेस्टइंडीज क्रिकेट अपने सफर की शरुआत पर थी। टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थी। उस जमाने में कंगारु गेंदबाज डेनिस लिली और जैफ थॉमसन दुनिया के सबसे तेज गेंदबाज थे जो 90 मील प्रति घंटे की रफ्तार से गेंदबाजी करते थे। वे आउट करने से ज्यादा सामने वाले खिलाड़ी को अपने बाउंसर से घायल करने में ज्यादा विश्वास करते थे। इस दौरे पर वेस्टइंडीज की टीम में नौजवान खिलाड़ियों थे जिन्हें आने वाले खतरे का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। पहला टेस्ट शुरु होते ही लिली और थॉमसन ने अपने इरादे जाहिर कर दिये और बॉउंसर की बरसात होने लगी। लिली और थॉमसन हर किसी को बाउंसर गेंद फेंक रहे थे। खिलाड़ी झुक रहे थे , गिर रहे थे, बच रहे थे। पूरा नजारा बेहद डरावना था। 

लिली 6 फीट से ज्यादा लंबे लेंस गिब्स तक को बाउंसर फेंक रहे थे। गिब्स ने लिली के पास जाकर बोला ये तुम क्या कर रहे हो यार मेरे बीवी बच्चे हैं थोड़ा ठीक से फेंको। अगली गेंद ऊपर उठी और गिब्स के जबड़े पर जाकर लगी। ये गंभीर चोट थी। आगे भी ऑस्ट्रेलियन गेंदबाजो द्वारा खिलाड़ियों को घायल करने का सिलसिला जारी रहा। ये वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम पर एक किस्म का फौजी हमला था। ये एक खतरनाक सीरीज थी जो मैदान के अंदर और बाहर दोनों जगह खेली गई। वेस्टइंडीज को इस सीरीज में 5-1 से हार झेलनी पड़ी। सीरीज के दौरान नस्लीय टिप्पणी तक का दंश भी वेस्टइंडीज को झेलना पड़ा। जेंटलमैन गेम शर्मसार हो गया था। टीम के कैरेबियन वापस लौटने पर खिलाड़ी हारा हुआ महसूस कर रहे थे।

फिर शुरू हुआ विजय रथ

इसके बाद क्लाइव ने ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाजों का जवाब देने के लिए कैरेबियन में तेज गेदबाजों की खोज शुरु कर दी। उन्होंने 17 साल के माइकल होल्डिंग को खोज निकाला, लोगों ने कहा कि तुम 17 साल के खिलाड़ी पर भरोसा कर बहुत बड़ी गल्ती कर रहे हो। लेकिन क्लाइव ने जैसे आने वाले वक्त को भांप लिया था।

ऑस्ट्रेलिया दौरे के ठीक बाद वेस्टइंडीज की टीम अपने घर में भारत से भिड़ने वाली थी। कड़वी यादों के भुलाने और तेज पेस अटैक के परखने के लिए कैरेबियन टीम बेकरार थी। सारा जमैका स्टेडियम में मौजूद था। पैर रखने तक की जगह नहीं थी। पूरा स्टेडियम आने वाले तूफान से अनजान था। मैच जैसे ही शुरु हुआ तेज गेंदबाजों की गेंद ने भारत की टीम के खिलाड़ियों को चूमना शुरु कर दिया। आस्ट्रेलिया का पूरा गुस्सा वेस्टइंडीज की टीम भारत पर निकाल रही था। पूरी भारतीय टीम टूट-फूट गई और उन्हे लगा कि वेस्टइंडीज जरुरत से ज्यादा तेज गेंदबाजी कर रही है। वेस्टइंडीज ने तेज गेंदबाजों की बदौलत 4 मैचों की सीरीज 2-1 से अपने नाम की। भारत को हराने के साथ ही वेस्टइंडीज टीम का विजयरथ ने उड़ान भरनी शुरु कर दी। इसके बाद 1976 में ही वेस्टइंडीज ने चिर प्रतिद्ंदी इंग्लैंड का उसके घर में जाकर 5-0 से सूपड़ा साफ कर दिया।

एक अविवादित सच है कि फरवरी-मार्च 1980 से फरवरी-मार्च 1995 तक वेस्टइंडीज ने एक भी टेस्ट सीरीज नहीं गंवाई। दुनिया के किसी भी खेल में किसी भी टीम ने ऐसा कारनाम आज तक नहीं किया। 

 

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