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टेलीकॉम कंपनियों के रिकॉर्ड घाटे से बैंकों और म्यूचुअल फंडों का बढ़ा संकट

वोडाफोन-आइडिया और भारती एयरटेल को जुलाई-सितंबर 2019 की तिमाही में करीब 74,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है।...
टेलीकॉम कंपनियों के रिकॉर्ड घाटे से बैंकों और म्यूचुअल फंडों का बढ़ा संकट

वोडाफोन-आइडिया और भारती एयरटेल को जुलाई-सितंबर 2019 की तिमाही में करीब 74,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। हालांकि यह घाटा अभी नोशनल है। यानी अगर दोनों कंपनियों ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक यह रकम सरकार को दी तभी उन्हें वास्तव में इतना घाटा होगा। इस घाटे के बाद दो बातें उठ रही हैं। पहली समस्या यह है कि इन कंपनियों को कर्ज देने वाले बैंकों और म्यूचुअल फंडों के सामने डिफॉल्ट का खतरा हो गया है। टेलीकॉम सेक्टर की कंपनियों पर करीब सात लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। डिफॉल्ट से बैंकों का एनपीए बढ़ने का खतरा होगा। दूसरी समस्या टेलीकॉम ग्राहकों से जुड़ी है। अगर इन कंपनियों की स्थिति खराब हुई तो बाजार में रिलायंस जियो की एकाधिकार की स्थिति बन सकती है। किसी भी बाजार में एकाधिकार ग्राहकों के हित में नहीं होता।

म्यूचुअल फंडों पर बढ़ सकता है रिडेंप्शन का दबाव

रेटिंग एजेंसियों ने अभी तक वोडाफोन-आइडिया के डेट पेपर को इन्वेस्टमेंट ग्रेड में रखा है। लेकिन अगर उन्होंने इनकी रेटिंग घटाई तो म्यूचुअल फंडों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। तब इन फंडों में रिडेंप्शन का दबाव बढ़ सकता है। यानी फंडों में निवेश करने वाले अपना पैसा निकाल सकते हैं। पिछले साल आईआईएफएल के डिफॉल्ट के बाद भी ऐसी ही स्थिति बन गई थी। तब म्यूचुअल फंडों ने कई स्कीमों को पैसे निकालने पर रोक लगानी पड़ी थी। वोडाफोन-आइडिया के डेट पेपर में करीब 35 म्यूचुअल फंड स्कीमों ने पैसे लगा रखे हैं। इनमें यूटीआई क्रेडिट रिस्क, यूटीआई बॉन्ड फंड, यूटीआई रेगुलर सेविंग्स भी शामिल हैं। अगर वोडाफोन-आइडिया के दोनों प्रमोटरों ने पैसा नहीं लगाया तो कंपनी का बंद होना तय है। तब फंडों द्वारा किए गए निवेश का पैसा फंस सकता है।

एकाधिकार जैसी स्थिति बनना ग्राहकों के लिए उचित नहीं

वोडाफोन-आइडिया यूरोप के वोडाफोन और भारत के आदित्य बिरला ग्रुप की आइडिया की साझा कंपनी है। करीब एक साल पहले ही दोनों का विलय हुआ है। वोडाफोन और आइडिया के शीर्ष अधिकारी कह चुके हैं कि अगर स्पेक्ट्रम चार्ज और लाइसेंस फीस के भुगतान में सरकार की तरफ से राहत नहीं मिली, तो वे कंपनी में नया निवेश नहीं करेंगे। इसका सीधा मतलब है कि वोडाफोन-आइडिया के बंद होने की नौबत आ सकती है। तब देश में टेलीकॉम ऑपरेटरों की संख्या सिर्फ दो रह जाएगी- रिलायंस जियो और भारती एयरटेल। पहले से ही भारी भरकम कर्ज से जूझ रही भारती एयरटेल पर भी तत्काल भुगतान का दबाव बना तो इसके सामने भी संकट आ सकता है। किसी भी सेक्टर में एक या दो कंपनी होने का मतलब है एकाधिकार जैसी स्थिति। यह आगे चलकर ग्राहकों के खिलाफ जा सकती है।

एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया का घाटा अभी नोशनल

वोडाफोन-आइडिया ने 50,921.90 करोड़ और एयरटेल ने 23,045 करोड़ रुपये घाटे की जानकारी दी है। यह घाटा अभी नोशनल है। दोनों कंपनियों ने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अपने खातों में सरकार को संभावित भुगतान की प्रोविजनिंग की है। वोडाफोन-आइडिया ने 25,680 करोड़ और भारती एयरटेल ने 34,260 करोड़ रुपये की प्रोविजनिंग की है। यानी अगर दोनों कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक यह रकम सरकार को दी तभी उन्हें वास्तव में इतना घाटा होगा। अगर कंपनियों ने यह प्रोविजनिंग नहीं की होती, तब भी दोनों का कुल घाटा करीब 20,000 करोड़ रुपये रहता।

एयरटेल, वोडाफोन-आइडिया पर पहले ही एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज

सितंबर तिमाही में एयरटेल का रेवेन्यू 21,171 करोड़ और वोडाफोन-आइडिया का 10,844 करोड़ रुपये था। सुप्रीम कोर्टे के फैसले के मुताबिक अगर एजीआर जोड़ा जाए तो भारती एयरटेल पर 41,507 करोड़ और वोडाफोन-आइडिया पर 39,313 करोड़ रुपये बनती है। एयरटेल पर पहले ही 1.18 लाख करोड़ और वोडाफोन-आइडिया पर 1.02 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। हाल की तिमाहियों ने इनका प्रति यूजर रेवेन्यू (आरपू) भी गिरा है। पिछली तिमाही में रिलायंस जियो का आरपू 120 रुपये, एयरटेल का 128 रुपये और वोडाफोन-आइडिया का 107 रुपये था।

सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर में नॉन-कोर बिजनेस को भी शामिल किया था

सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर 2019 को अपने फैसले में कहा था कि एजीआर में नॉन-कोर ऑपरेशन से मिलने वाला रेवेन्यू भी शामिल होगा। इस मामले में कोर्ट ने दूरसंचार विभाग (डॉट) की मांग को सही ठहराया था। कंपनियों का तर्क था कि एजीआर में सिर्फ कोर बिजनेस को शामिल किया जाना चाहिए।

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