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इस बार अंतरिम बजट ही होगा पेश, वित्त मंत्रालय की सफाई

मोदी सरकार 1 फरवरी को अपने पहले कार्यकाल का अंतिम बजट पेश करेगी। पहले यह कयास लगाया जा रहा था कि सरकार...
इस बार अंतरिम बजट ही होगा पेश, वित्त मंत्रालय की सफाई

मोदी सरकार 1 फरवरी को अपने पहले कार्यकाल का अंतिम बजट पेश करेगी। पहले यह कयास लगाया जा रहा था कि सरकार पूर्ण बजट पेश करेगी, लेकिन आम चुनाव करीब होने की वजह से यह अंतरिम बजट होगा। वित्त मंत्रालय की तरफ से भी स्पष्ट किया गया है कि यह “अंतरमि बजट 2019-20” होगा।

क्या होता है अंतरिम बजट

अंतरिम बजट में सरकार किसी तरह का बजटीय प्रावधान नहीं कर सकती है, लेकिन बजट भाषण के दौरान आगे के इरादों को जाहिर कर सकती है। वह बता सकती है कि जब पूर्ण बजट पेश होगा, तो वह किन-किन योजनाओं को लेकर आएगी। हालांकि, इस दौरान वह किसी नई योजना की घोषणा भी नहीं कर सकती है। अंतरिम बजट की परंपरा रही है कि डायरेक्ट टैक्स वगैरह में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाता है। आमतौर पर अंतरिम बजट चुनावी साल में कुछ वक्त तक देश चलाने के लिए खर्चों का इंतजाम करने की औपचारिकता है।

सरकार इस बजट में ऐसे किसी तरह का नीतिगत फैसला नहीं लेती है, जिसके लिए संसद की मंजूरी लेनी पड़े या कानून में संशोधन करना पड़े। नई सरकार के गठन के बाद पूर्ण बजट पेश किया जाता है। हालांकि, संविधान में चुनावी साल में पूर्ण बजट पेश नहीं करने का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में सरकार चाहे तो पूर्ण बजट पेश कर सकती है।

पूर्ण बजट से कैसे अलग

पूर्ण बजट की ही तरह अंतरिम बजट के लिए संसद से मंजूरी ली जाती है। इसमें आमतौर पर सरकार किसी तरह का नीतिगत फैसले नहीं लेती है। चुनाव के बाद जो सरकार बनती है, वह अपनी नीतियों के हिसाब से फैसले लेती है और योजनाओं की घोषणा करती है।

हो रही थी आलोचना

इस तरह की खबरें आ रही थी कि सरकार पूर्ण बजट ला सकती है। अगर ऐसा होता तो मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल का यह छठा बजट होता। इसे लेकर कई हलकों में सरकार की आलोचना भी होने लगी थी। लेकिन वित्त मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि यह अंतरिम बजट 2019-20 होगा, न कि पूर्ण बजट।

होगा 15वां अंतरिम बजट

यह अभी तक का 15वां अंतरिम बजट होगा। इससे पहले पी. चिदंबरम और जसवंत सिंह भी अंतरिम बजट पेश कर चुके हैं। सबसे बड़ी बात कि अंतरिम बजट की परंपरा से अलग इन दोनों ने बड़ी घोषणाएं की थी। चिदंबरम ने 2014-15 में अंतरिम बजट के दौरान एक्साइज ड्यूटी में बड़ी कटौती की थी। जबकि जसवंत सिंह ने 2004-05 में प्रत्यक्ष कर में बदलाव की घोषणा की थी। हालांकि, उन्होंने फाइनेंस बिल में किसी तरह का बदलाव नहीं किया था।

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