Advertisement

पुण्यतिथि: हम काले हैं तो क्या हुआ...

दे दे अल्लाह के नाम पे देदे! दिनार नहीं, तो डॉलर चलेगा.... शर्ट नहीं तो शर्ट का कॉलर चलेगा।
पुण्यतिथि: हम काले हैं तो क्या हुआ...

विशाल शुक्ला

...इस डॉयलाग के बाद गाना शुरू होता है- तुझको रक्खे राम, तुझको अल्लाह रक्खे। यह सीन है रामानंद सागर की फिल्म आंखे (1968) का। एक एक्टर है जो भिखारी के भेष में अपने साथी धर्मेन्द्र की तलाश में हैं।

जी हां, 300 से ज्यादा फिल्में, खाते में फ़िल्मफेयर अवार्ड और कामेडियन को एक स्वीकार्य दर्जा दिलाने का काम जिस कालजयी कलाकार ने किया, वो महमूद ही थे। आज हम महमूद को उनकी 13वीं पुण्यतिथि के मौके पर याद कर रहे हैं।

शुरुआती स्ट्रगल

महमूद का जन्म 29 सितंबर, 1932, मुम्बई में हुआ था। महमूद मशहूर नृतक मुमताज अली के बेटे और कैरेक्टर आर्टिस्ट मिन्नो मुमताज अली के भाई थे। महमूद ने फेमस एक्ट्रेस मीना कुमारी की बहन मधु से शादी की।

कॉमेडी या कहिए कि स्ट्रगल की शुरुआत उनके छुटपन से ही हो गई थी।

उनके बचपन का किस्सा है कि बॉम्बे टॉकीज की फिल्मों में काम करने वाले एक्टर जब-तब अपनी कार भेजकर महमूद को बुलवाते और हंसी-मजाक से अपना टाइम पास करते थे। महमूद ने कई बार घर से भागने की कोशिश भी की। एक बार पकड़े गए, तो मां ने नाराज होकर कहा, "ये जो कपड़े पहने हो, तुम्हारे अब्बा के हैं यहीं उतार कर जाओ।" और सचमुच में महमूद ने अपने बदन से सारे कपड़े उतार दिए और उसी हालत में घर छोड़ दिया।

घर छोड़ने के बाद महमूद ने कई छोटे-मोटे काम किए। अण्डे बेचे, मुर्गी के चूजे सप्लाय करे साथ ही मशहूर एक्ट्रेस मीना कुमारी को टेबल टेनिस खेलने की ट्रेनिंग भी दी।

शुरुआती करियर



महमूद को पहला ब्रेक फिल्म 'परवरिश' में मिला, जिसमें उन्होंने राज कपूर के भाई की भूमिका निभाई। ‘ससुराल' उनके कैरियर की अहम फिल्म थी, जिसके जरिए बतौर हास्य कलाकार स्थापित होने में उन्हें मदद मिली।

60 के दशक के हास्य कलाकारों की टीम की सफल शुरुआत के लिए भी ‘ससुराल’ को अहम माना जाता है, क्योंकि इस फिल्म में महमूद के साथ-साथ शुभा खोटे जैसी हास्य अभिनेत्री ने भी अपनी कला के जलवे दिखाए।

फिल्म 'जौहर महमूद इन गोवा'।में उन्हें कॉमेडियन के साथ-साथ प्रमुख भूमिका निभाने का भी मौका मिला। 'प्यार किए जा' और 'पड़ोसन' महमूद की दो  यादगार भूमिकाओं वाली फिल्में हैं। 'प्यार किए जा' में महमूद ने एक ऐसे नौजवान का किरदार निभाया, जो फिल्म डायरेक्टर बनना चाहता है और अपने बैनर 'वाह वाह प्रोडक्शन' के लिए वह अपने पिता से मदद की उम्मीद रखता है। वहीं 'पड़ोसन' में दक्षिण भारतीय गायक के किरदार में भी महमूद ने दर्शकों को खूब लुभाया।

सतरंगी पर्सनालिटी

अपनी बहुरंगी किरदारों से ऑडियंस को हंसाने और गंभीर भूमिका कर रूलाने वाले महमूद अभिनय के प्रति समर्पित थे। अपने बहुमुखी अभिनय और कला के प्रति डेडिकेशन ने उन्हें बुलंदियाँ दी और उनको फ़िल्मफ़ेयर सहित कई पुरस्कारों का सम्मान मिला। उन्होंने कई फ़िल्मों में गीत ही नहीं गाये बल्कि फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया। जिसमें 'छोटे नवाब', 'भूतबंगला', 'पड़ोसन','बांबे टू गोवा', 'दुश्मन दुनिया का', 'सबसे बड़ा रुपैया' आदि हैं। जबकि विकलांगों पर बनी फ़िल्म "कुंवारा बाप" में किया गया उनका अभिनय आज भी उनकी यादों को ताजा करता है।
महमूद के व्यक्तित्व में तमाम रंग थे। इनमें से एक था, नए लोगों को मौक़ा देना। उन्होंने 'छोटे नवाब' फ़िल्म में कालजयी आरडी बर्मन को पहली बार चांस देकर फ़िल्म उद्योग को एक बेहतरीन तोहफा दिया था। इसी प्रकार महमूद ने सुपर स्टार अमिताभ बच्चन की उस वक़्त मदद की थी, जब वह स्ट्रगलिंग एक्टर थे।

आज भी रिलेवेंट हैं फिल्में

उनकी 10वीं बरसी पर उनके भाई अनवर अली ने उनको श्रद्धांजलि देने के लिए बॉम्बे टू गोआ' को रिलीज किया था। जिसमें फ़िल्म से जुड़े कलाकार जैसे अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा और दूसरे कलाकार शामिल हुए थे। अमिताभ बच्चन इस समारोह के मुख्य अतिथि थे। महमूद ने कई यादगार फिल्में दीं थीं, भूत बंगला', 'प्यार किए जा', 'पड़ोसन' सहित महमूद की कॉमेडी आज भी उनके प्रशंसक याद करते हैं।

इस मौके पर अनवर अली ने कहा था, "फ़िल्म महमूद भाईजान के बेहद क़रीब थी। यह एक कॉमेडी फ़िल्म थी। कॉमेडी, सभी को पसंद आती है, इस फ़िल्म में आज के दर्शकों को पूरी तरह से 70 के दशक की छाप देखने को मिलेगी। वैसे भी यह फ़िल्म एक सफर के ज़रिए जिंदगी की कहानी बयां करती है इसलिए हमने इस फ़िल्म को री-रिलीज करने का फैसला किया।"

आखिरी सफर

महमूद के जीवन के आखिरी दिन अकेले और बीमारी से संघर्ष में बीते। लगातार ऑक्सीजन सिलेंडर लगने से फिल्मी दुनिया से दूर होते चले गए। आखिरी वक्त में भारत भी छूट गया। उन्होंने 24 जुलाई 2004 को पेननसिल्वेनिया (अमेरिका) के अस्पताल में आखिरी सांस ली।

महमूद ने अपने अंतिम दिनों में अपने दोस्त को जीवनी लिखवाई थी। उसमें वे कहते हैं, “मैं कभी टाइप्ड नहीं हुआ। मेरी अपनी निश्चित स्टाइल भी नहीं थी। मुझमें ऑब्जरवेशन की ताकत अद्भुत थी। मैं अच्छा नकलची था।इसने मुझे अच्छा कॉमेडियन बना दिया।”

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad