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राेशनी से बचता परदे के पीछे का बादशाह

हिंदी फिल्म उद्योग की कमान को जिन प्रमुख हाथों ने थामा रखा हैं उनमें से एक हैं आदित्य चोपड़ा। वे यशराज फिल्मस के एमडी ही नहीं बल्कि एक अच्छे लेखक-निर्देशक और सृजन में गहराइयों तक डूबे हुए एक ऐसे इंसान हैं जिन्हें चर्चाओं से परहेज है।
राेशनी से बचता परदे के पीछे का बादशाह

कल उनका जन्मदिन था, पर इसकी बहुत कम चर्चा हुई। शायद उनके पास बताने के लिए लोगों के पास ज्यादा कुछ नहीं है। उनकी वर्तमान की फुटेज चैनलों के पास उपलब्ध नहीं हैं। फिल्म की प्रेस कॉन्फ्रेंस में शरीक होना तो दूर उनकी अपनी निर्देशित फिल्मों की मेंकिंग में भी वे सिर्फ कैप लगाए उनकी पीठ ही नजर आती है।

लेकिन इससे इतर आदित्य चोपड़ा को उनके साथ काम करने वालों के चेहरे पर उनकी चर्चा करने के दौरान देखा जा सकता है। जब अभिनेता रनवीर सिंह उनके बारे में बता रहे हों या उनके प्रिय करण जौहर जो उनकी चर्चा चलने पर भावनाओं के ज्वार से उत्तेजित हो जाते हैं। अपनी आत्मकथा में करण जौहर ने उनके बारे में लिखा है कि आदित्य अव्वल दर्जे के सृजनात्मक इंसान तो हैं ही साथ में वे दूसरों की रचनात्मकता का भी बेहद सम्मान करते हैं। आदित्य चोपड़ा संभवत: किसी कॉपोरेट स्टूडियो के एकलौते प्रमुख होंगे जो अपने साथ काम कर रहे लेखकों से सबसे ज्यादा संपर्क में रहते हैं। वे खुद कहानियां लिखते हैं और खुद पूरी स्क्रिप्ट को पढकर ही किसी फिल्म को हरी झंडी दिखाते हैं।

दम लगाके हइसा के निर्देशक शरत कटारिया के मुताबिक, ”वे फिल्म की कहानी को लेकर एक अलहदा पैशन रखते हैं। जब मैंने मनीष शर्मा (निर्माता) को फिल्म की स्क्रिप्ट दी तो उनको अच्छी लगी और कुछ दिन बाद उनका फोन आया कि आज रात को आदि फिल्म की स्क्रिप्ट पढेंगे। उसी रात मेरे पास अचानक एक बजे मनीष का फोन आया कि आदि ने स्क्रिप्ट पढ़ ली है और फिल्म के लिए हंरी झंडी दे दी है। मैं अंचभित था कि इतने व्यस्त आदमी ने थोड़े समय में ही फिल्म की पूरी स्क्रिप्ट पढ़ ली।”

यारों के यार आदित्य चोपड़ा

आमिर इन दिनोंं किसी दूसरे बैनर के लिए बहुत काम करते हैं पर वे यशराज के लिए लगातार फिल्में कर रहे हैं। वजह आदित्य चोपड़ा और उनका याराना बेहद पुराना है। गौरतलब है कि आदित्य आमिर को कयामत से कयामत तक से ही पसंद करते थे और उनके आग्रह पर ही यशराज फिल्मस की परंपरा (1992) में आमिर की इंट्री हुई थी। बॉक्स आफिस पर कमजोर गई फिल्म परंपरा को हनी इरानी के साथ मिलकर आदित्य चोपड़ा ने ही लिखा था। परंपरा के बाद जब डर का निर्माण शुरू हुआ तब भी आदित्य की पसंद आमिर ही थे, लेकिन डर के प्री प्रोडक्शन के दौरान ही यश चोपड़ा और आमिर के परफैक्शन अंदाज में मिसमैच हो गया और बात बिगड़ी तो बिगड़ती ही चली गई।

खुद शाहरूख स्वीकारते हैं कि डर के लिए आदित्य चोपड़ा को शाहरूख पसंद नहीं थे, पर यश चोपड़ा ने राकेश रोशन की किंग अंकल को देख डर के लिए शाहरुख को फायनल कर लिया। सालों बाद में आदित्य चोपड़ा के रिश्तेेेेदार दोस्त निर्माता बॉबी बेदी की मध्यस्थता में फिर से आदि और आमिर का मिलाप हुआ और फना की निर्माण योजना बनी। सालों की खाइयों को पाटने के बाद आखिरकार आमिर को आदित्य अपने खेम में ले आए। माना जाता हैैं कि तब आमिर यशराज के लिए हाजिर रहते हैं।

आमिर के हवाले से आदित्य का सच

जब यशराज स्टूडयो में आयोजित धूम थ्री की प्रेस कॉफ्रेसं में पत्रकारों ने इस बात पर तंज कसा कि आदित्य स्टूडयो में मौजूद होने के बावजूद भी यहां क्यों नहीं आए तो कैटरीना बोल पड़ी कि शायद आदित्य पत्रकारों के सवालों के जवाब नहीं दे सकते इसलिए नहीं आएं होंगे। इस पर आमिर खान ने अपने मित्र के बारे में कहा कि ऐसा नहीं हैं वो बेहतर जवाब दे सकते हैं पर वे सिर्फ अपने काम के जरिए ही जनता के समक्ष आना चाहते हैं। उन्हें चर्चाओं से अपने अंदर छुपे सृजनात्मक इंसान के एकांत की परवाह है। हमें उनकी प्राइवेसी की कद्र करनी चाहिए।

शायद आदित्य चोपड़ा के सखा आमिर के जवाब में ही आदित्य चोपड़ा का जवाब निहित है। वे प्रेस-मीडिया, बॉलीवुड पार्टीबाजी से इसलिए दूर रहते हैं ताकि उनके अंदर छुपा सृजनात्मक इंसान शोबिज की दुनिया के दबाब में आकर दम ना तोड़ दे। चाहे ताज्जुब हो पर आजकल खुद के ज्यादा से ज्यादा प्रचार और आत्मप्रशंसा के चलन से आदित्य चोपड़ा बिल्कुल अलग है।

(जयपुर में कुछ साल पत्रकारिता करने के बाद लेखक फिलहाल मुंबई स्क्रीन राइटिंग में सक्रिय हैं।)

 

 

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