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बॉलीवुड के रोमांटिक संगीतकार की जोड़ी, 'आशिकी' हमेशा श्रवण को "नजर के सामने- जिगर के पास" रखेगी

नदीम-श्रवण जोड़ी के प्रसिद्ध संगीतकार श्रवण राठौड़ का 22 अप्रैल को मुंबई में कोविड-19 महामारी के कारण...
बॉलीवुड के रोमांटिक संगीतकार की जोड़ी, 'आशिकी' हमेशा श्रवण को

नदीम-श्रवण जोड़ी के प्रसिद्ध संगीतकार श्रवण राठौड़ का 22 अप्रैल को मुंबई में कोविड-19 महामारी के कारण निधन हो गया। श्रवण को 90 के दशक के शुरुआती दौर में अपने साथी के साथ हिंदी फिल्मों को कई हिट संगीत देने के लिए हमेशा याद रखा जाऐंगा। जिसमें आशिकी (1990) बॉलीवुड के इतिहास में सबसे अधिक बिकने वाली फिल्म एल्बम रही।

महेश भट्ट द्वारा निर्देशित इस फिल्म में राहुल रॉय-अनु अग्रवाल ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया था। मुख्य रूप से इस फिल्म के गाने जैसे- बस इक सनम चाहिए, अब तेरे बिन जी लेंगे हम और नजर के सामने... गाने सबसे ज्यादा पॉपुलर हुए। बरसो के संघर्षों के बाद इन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया।

टी-सीरीज म्यूजिक बैनर तले गुलशन कुमार द्वारा निर्मित आशिकी की सफलता ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को नया मुकाम दिया, जो 1987 में सुप्रसिद्ध गायक किशोर कुमार के निधन के बाद आरडी बर्मन और कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकारों के जाने के बाद ढल गया था। इनकी जीवंत रचनाओं ने इस इंडस्ट्री को बढ़ावा दिया, जिसकी सख्त जरूरत थी। 1990 के दशक ने रोमांटिक म्यूजिक की वापसी के लिए एक मंच तैयार किया। जिसके बाद दो दशकों से अधिक समय तक ये  सूरीला दौर रहा।

विडंबना ये है कि आशिकी के गाने टी-सीरीज रिकॉर्डिंग स्टूडियो से कभी बाहर नहीं आए होते यदि निर्देशक महेश भट्ट ने गुलशन कुमार को फिल्म को बंद करने से रोकने के लिए टोका न होता।

जैसा कि बॉलीवुड प्रेमियो को पता है कि गुलशन को एक निजी एल्बम के लिए समीर और नदीम-श्रवण द्वारा लिखित और कंपोज कुछ गाने मिले थे जिसे वो रिलीज करने का प्लान कर रहे थे। बाद में उन्होंने इन गीतों के साथ स्क्रिप्ट पर संगीत निर्देशन के लिए महेश भट्ट से बात की। सब कुछ हो चुका था, लेकिन इससे पहले कि फिल्म पर्दे पर आती, गुलशन कुमार ने फिल्म को बंद करने का फैसला कर लिया था। कुछ लोगों ने उन्हें कहा कि इस फिल्म के गाने उस तरह से नहीं पहुंच पाएंगे और वो फिल्म पर लगाए अपने सारे पैसे गवां देंगे। जब महेश भट्ट को इसके बारे में पता चला, तो वो गुलशन के पास पहुंचे और उनसे कहा कि ये फिल्म के गाने पूरी म्यूजिक इंडस्ट्री को बदल देंगे। उन्होंने कहा कि वो इसे लिखित रूप में देने के लिए भी तैयार हैं। यहां तक कि अगर ऐसा नहीं होता तो वो इसे छोड़ देंगे। बाकी जैसा वो कहें।

कुछ ही समय में आशिकी के एल्बम की 2 करोड़ कॉपियां बिकने के बाद नदीम-श्रवण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हालांकि, सफलता उन्हें थाली में परोसी हुई नहीं मिली। उन्होंने 1970 के दशक के मध्य में एक भोजपुरी फिल्म दंगल में सुजीत कुमार के साथ अपनी शुरुआत की थी, लेकिन इस फिल्म में मन्ना डे का काशी हिले पटना हिले हिट हो गया। नदीम-श्रवण इस इंडस्ट्री में पैर नहीं जमा सके।

साल 1988 में आमिर खान की आई फिल्म कयामत से कयामत के म्यूजिक ने 1980 के दशक के अंत में चीजें बदलने लगीं थी। जिसमें एक और संगीतकार-जोड़ी, आनंद-मिलिंद के ताजगी भरे गाने थे। गुलशन कुमार द्वारा आशिकी के गीतों की रचना की पेशकश करने के बाद रोमांटिक संगीत को वापस लाने वाले नदीम-श्रवण ने इस अवसर को अपने नाम कर लिया। आशिकी, साजन (1992) और दीवाना (1993) के साथ लगातार तीन फिल्मफेयर पुरस्कारों के बाद उन्होंने साबित कर दिया कि कम समय में सफलता नसीब नहीं होती है। उन्होंने इसे राजा हिंदुस्तानी (1996) के लिए फिर जीता।

अनु मलिक और जतिन-ललित जैसे अन्य संगीतकारों ने भी 1990 के दशक में हिंदी संगीत उद्योग में धूम मचाई, लेकिन यह दशक वास्तव में दिल है की मानता नहीं (1990), फूल और कांटे ( 1991), सदाक (1991), दामिनी (1993), दिलवाले (1994), बरसात (1995), राजा (1995), परदेस (1997), धड़कन (2000), जैसे सभी सुपरहिट फिल्मों के गानों के साथ नदीम-श्रवण का था।

हालांकि, उनके गाने को ज्यादातर उदित नारायण, कुमार सानू और अलका याग्निक द्वारा गाए गए। 1990 के दशक में ये छाया रहा। ये वो दौर था जब इंडस्ट्री रोमांटिक संगीतकारों से थक चूका था। दर्शकों ने तब तक सत्या (1998) और दिल चाहता है (2001) जैसी नए जमाने की फिल्मों की ओर रुख कर लिया था।

इस बीच नदीम भी महत्वाकांक्षी हो गए थे। जिसके बाद उन्होंने टी-सीरीज  बैनर तले गायक के रूप में एक निजी एल्बम, हाय अजनबी लॉन्च किया। नदीम ने इस एल्बम से बहुत सारी उम्मीदें लगाई थीं, लेकिन ये 1997 में बुरी तरह से फ्लॉप हो गया। इसके बाद नदीम ने गुलशन पर अपने एल्बम का प्रचार नहीं करने का आरोप लगाया। लेकिन, उनका करियर उस वक्त डगमगाने लगा जब नदीम पर मुंबई पुलिस द्वारा गुलशन कुमार हत्याकांड में शामिल होने का आरोप लगा। बाद में वो लंदन चले गए और सफलतापूर्वक भारत द्वारा उनके प्रत्यर्पण के खिलाफ मुकदमा जीता। अभी वो दुबई में इत्र का कारोबार चला रहे हैं।

नदीम और श्रवण कुछ सालों तक साथ में म्यूजिक कंपोज करते रहे। आखिरकार वे 2005 में अलग हो गए। उन्होंने कुछ सालों बाद फिर से वापसी करने की कोशिश की, लेकिन वो पुराने संगीत जैसा जादू लोगों के दिलों में फिर नहीं बिखेर पाए।

प्रसिद्ध संगीतकार होने के बाद भी श्रवण की जोड़ी कम आकर्षित हो पड़ी। अपने साथी की अनुपस्थिति में वो सिंगल कंपोजर के रूप में विफल रहे। धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि कम होती गई, लेकिन ये उनकी गलती नहीं थी। डिजिटल युग में कुछ तकनिकी म्यूजिक निर्देशकों ने नदीम-श्रवण वाले ब्रांड को पीछे  छोड़ दिया।

नदीम-श्रवण बॉलीवुड के ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने हर चीज को एक राग में तब्दील कर दिया था।  उन्हें बॉलीवुड के महान संगीतकारों में गिना जाए या नहीं ये तो नहीं पता, लेकिन आशिकी का वो गाना 'नजर के सामने, जिगर के पास' हमेशा संगीत प्रेमियों के दिल के करीब रहेगा। 

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