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पुस्तक मेले में कवयित्रियों की गूंजती आवाजें

राजधानी के प्रगति मैदान में 25 फरवरी से 5 मार्च तक चला विश्व पुस्तक मेला कई मायनों में महत्वपूर्ण...
पुस्तक मेले में कवयित्रियों की गूंजती आवाजें

राजधानी के प्रगति मैदान में 25 फरवरी से 5 मार्च तक चला विश्व पुस्तक मेला कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा।कोविड के बाद हुए इस मेले में लेखकों और पाठकों तथा प्रकाशकों में विशेष उत्साह था क्योंकि तीन साल के बाद यह मेला लगा लेकिन यह मेला इस मायने में भी अनोखा रहा कि इंसमे हिंदी की लेखिकाओं की आवाजें काफी गूंजी और बड़ी संख्या में उनकी पुस्तकों के लोकार्पण हुए और उन पर चर्चाएं हुई। हिंदी की कवयित्रियों ने तो इस मेले में विशेष छाप छोड़ी।

पिछले कुछ साल से विश्व पुस्तक मेले में लेखिकाओं विशेषकर युवा लेखिकाओ की उपस्थिति बढ़ती जा रही है और उनकी किताबों की चर्चा भी काफी होती जा रही है। लेकिन इस बार का विश्व पुस्तक मेला स्त्री रचना शीलता की दृष्टि से उल्लेखनीय रहा क्योंकि मेले के दौरान एक प्रकाशक के स्टॉल पर तो हिंदी की लेखिकाओं की 30 पुस्तकों का लोकार्पण हुआ जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इससे पता चलता है कि स्त्री लेखन कितनी तादाद में हो रहा है।21 वी सदी के आरंभिक दो दशक स्त्री लेखन के दशक रहे हैं।अब वे21 वीं सदी के तीसरे दशक में प्रवेश कर रही हैं। इसके अलावा राजकमल प्रकाशन वाणी प्रकाशन आधार प्रकाशन सेतु प्रकाशन लोक भारती प्रकाशन लोक भारती प्रकाशन संवाद प्रकाशन पुस्तक नामा सामयिक प्रकाशन रुख प्रकाशन , वनिका प्रकाशन हिंदी युग्म आदि ने स्टॉल पर हिंदी की अनेक लेखिकाओं की किताबों के लोकार्पण हुए और चर्चाएं हुई। इनमें हिंदी की वयोवृद्ध लेखिका मृदुला गर्ग ममता कालिया से लेकर नवोदित लेखिकाओ की किताबें भी शामिल है।

पुस्तक मेले में हिंदी की लेखिकाओं में सबसे ज्यादा आकर्षण कविता को लेकर रहा और इस बार में कवयित्रियों के कविता संग्रह और संपादित संग्रह भी सामने आए। समकालीन कवित्री यों में लीना मल्होत्रा बाबुषा कोहली विपिन चौधरी रश्मि भारद्वाज अनुराधा सिंह वाजदा खान,, संगीता गुंदेचा रूपम मिश्र की किताबें शामिल हैं। इन कवयित्रियों ने हिंदी कविता के परिदृश्य का विस्तार किया है।युवा कवयित्री विपिन चौधरी का चौथा संग्रह "संसार तुम्हारी परछाई " मेले में आया जबकि लीना मल्होत्रा ,बाबुषा कोहली रश्मि भारद्वाज ज्योति चावला के तीसरे संग्रह सामने आए ।2008 में विपिन का पहला संग्रह आया था और इस तरह 15 साल में उसके चार संग्रह आ गए यानी देखते देखते स्त्री कविता की यात्रा अब परवान चढ़ने लगी है। विपिन ने अपनी एक मुक्कमल पहचान बना ली है।
2009 में वाजदा खान का पहला संग्रह आया था।इसके बाद उनका एक और संग्रह आया।मेले में उनके दो काव्य संग्रह खड़िया और जमीन पर गिरी इबारतें आया है।
2012 में लीना मल्होत्रा का पहला संग्रह आया था ।दस वर्ष के भीतर उनका तीसरा संग्रह "धुरी से छूटी आह " सेतु प्रकाशन से आया है।

2015 में अपने पहले संग्रह "प्रेम दिल गिलहरी अखरोट" से सबका ध्यान खींचनेवाली बाबुषा का यह तीसरा कविता संग्रह "उस लड़की का नाम ब्रह्मलता है "मेले में आया है। बाबुषा की किताब का इंतज़ार काव्य प्रेमियों को रहता है। वह हर बार अपनी कविता से लोगों को विस्मित करती हैं।रश्मि भारद्वाज ने भी 2016 में एक अतिरिक्त अ नाम से समकालीन कविता में पहचान बनाई थी।7 साल के भीतर उनका तीसरा संग्रह" घो घो रानी कितना पानी " भी सेतु से सामने आया है जिसको लेकर लोगों के मन मे गहरी उत्सुकता है।
ज्योति मल्होत्रा की पहचान कहानीकार के रूप में भी रही है पर मूलतः वह कवयित्री है और उनके नए संग्रह "उनींदी रातों का समय से"भी इसकी पुष्टि होती है।
"ईश्वर नहीं नींद चाहिए" से हिंदी कविता में अपनी जगह बनानेवाली अनुराधा सिंह का दूसरा संग्रह" उत्सव का पुष्प नहीं हूं" वाणी से आया है।
रूपम मिश्र का पहला संग्रह "एक जीवन अलग से" लोकभारती से आया है।यह संग्रह कार्फ़ ताजगी लिए हुए है। उम्मीद है रूपम की भी जल्द ही विशिष्ट पहचान बनेगी।


प्रसिद्ध कवयित्री सविता सिंह के संपादन में हिंदी की बीस कवयित्रियों का एक संकलन "प्रतिरोध का स्त्री स्वर "नाम से आया।यह इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि अक्सर यह आरोप लगता है कि हिंदी की कवयित्रियाँ प्रतिरोध की कविताएं नहीं लिखती है।सविता ने यह संचयन निकालर इस मिथ्या अवधारणा का खंडन किया है और एक ऐसा दस्तावेज पेश किया है जिससे स्त्री कविता की शिनाख्त होगी।अब तक ऐसा कोई संकलन हिंदी में नहीं आया था।

हिंदी की वरिष्ठ कवयित्री गगन गिल और युवा आलोचक एवम कवयित्री सुजाता ने स्त्री विमर्श की परंपरा को रेखंकित करते हुए दो महत्वपूर्ण किताबें निकाली हैं।

गगन ने अक्का महादेवी की कविताओं का भाव अंतरण किया है।कुछ सालों से हिंदी प्रदेश में अक्का महादेवी की कविताओं के प्रति लोगों में दिलचस्पी जागी है।गगन गिल की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन भी मेले में साहित्य प्रेमियों के लिए आकर्षण रहा।

इस तरह समकालीन स्त्री कविता ने 21 वीं सदी में एक पड़ाव हासिल किया है और स्त्री कविता पर बातचीत के लिए आधार सामग्री पेश कर दी है।इन कविताओं के परिप्रेक्ष्य में अब स्त्री कविता पर गम्भीर बातचीतहोनी चाहिए।

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