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इटावा में आर्काइव्स डे का आयोजन आज, यहां आकार ले रहा एक जन-संग्रहालय

   बीहड़, बागियों और बंदूक की राजनीति के लिए कुख्यात चंबल में स्वाधीनता आंदोलन की भी एक लंबी और...
इटावा में आर्काइव्स डे का आयोजन आज, यहां आकार ले रहा एक जन-संग्रहालय

 बीहड़, बागियों और बंदूक की राजनीति के लिए कुख्यात चंबल में स्वाधीनता आंदोलन की भी एक लंबी और निर्णायक लड़ाई लड़ी गई है। उसके संघर्षों का भी अपना एक स्वर्णिम इतिहास रहा है। वजह चाहे जो रही हो लेकिन अभी तक यह  इतिहास सचेत और सार्थक नजरों से दूर ही रहा है। हालांकि, पिछले कुछ दशक से खासकर सूबे की राजनीति और शासन में सीधी दखल रखने वाले एक परिवार के नाते इटावा सुर्खियों में रहा है और लायन सफारी जैसी ‘बड़ी’ योजना में उसकी भूमिका है लेकिन हम यहां पांच-छह दशकों से आकार लेते जिस संग्रहालय की बात करने जा रहे हैं उस पर उनकी नजर-ए-इनायत या रुचि दिखाना तो क्या उड़ती नजर भी नहीं पड़ी, जबकि परिवार के एक पूर्व लोकनिर्माण मंत्री का निवास यहां से चंद कदम की दूरी पर है। पर सचेत सोच और संकल्प के धनी किसी के मोहताज नहीं होते और वह अपनी लगन से लक्ष्य को पाकर ही रहते हैं। ऐसे ही कुछ लोग अब चंबल की छवि बदलने पर न केवल आमादा हैं, बल्कि काफी हद तक बदल डाली है। ये लोग अब खुद ही अपने शहीदों-सुधारकों और नायकों की अमूल्य धरोहरों और उनकी स्मृतियों तथा उनसे जुड़ी तमाम लिखित-अलिखित सामग्री को सहेजने के लिए कमर कस चुके हैं। ये आज नौ जून यानी अंतरराष्ट्रीय आर्काइव्स डे पर एक कार्यक्रम आयोजित कर इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम, उसमें जुटे-डटे रहे जाने-अनजाने रणबांकुरों की स्मृतियों में रुचि रखने वालों को इकट्ठा भी कर रहे हैं। जानकारी के मुता‌िबबिक, जयपुर, आगरा, ‌दिल्‍ली आदि ऐ‌तिहासिक-सांस्‍कृतिक शहरों-कस्बों से इ‌तिहास व आर्काइव्स प्रेमी बुद्धिजीवी इसमें हिस्‍सा ले रहे हैं।

खैर, अब सीधी बात उस संग्रहालय के बारे में, जिसके लिए इसके प्रबंधकर्ताओं का विश्वास है कि यह (संग्रहालय) न केवल चंबल की नई छवि गढ़ेगा, बल्कि दुनिया भर के शोधार्थियों, इतिहास/आर्काइव प्रेमियों को आकर्षित करेगा।

करीब दो दशक से ज्यादा समय से बीहडों में विलीन-बिखरे इतिहास की खोज, ‘अवाम का सिनेमा’ के बैनर तले सांप्रदायिकता विरोधी और जन-संस्कृ‌‌ति समर्थक सिनेमा आम लोगों तक पह़ुंचाने में लगे एक्टिविस्ट शाह आलम ने आउटलुक को बताया कि चंबल का ज़िक्र होता है तो डकैतों की तस्वीर ज़ेहन में उमड़ती है. चंबल के प्रति ये नकारात्मकता भी लाता है, लेकिन चंबल हमेशा डकैतों के लिए क्यों जाना जाए, इसी सवाल को लेकर चंबल संग्रहालय की नींव रखी गई है। उन्होंने देश के सबसे बड़े गुप्त क्रांतिकारी दल ‘मातृवेदी’ के शताब्दी वर्ष के दौरान करीब 2,700 किमी की चंबल संवाद यात्रा साइकिल से की थी. इसी शोध यात्रा के दौरान चंबल संग्रहालय का ख्वाब बुना गया था। फिर मार्च, 2018 में चंबल संग्रहालय की यात्रा आरंभ हुई।  

संग्रहालय में अब तक करीब 14 हजार पुस्तकें, सैकड़ों दुर्लभ दस्तावेज, विभिन्न रियासतों के डाक टिकट, विदेशों के डाक टिकट, राजा भोज के दौर से लेकर सैकड़ो प्राचीन सिक्के, दस्तावेजी फिल्में आदि संग्रहीत हैं। आलम ने करीब पांच दशक पूर्व मां की धार्मिक पुस्तकों के संग्रह से प्रेरित हो संग्रहालय की परिकल्पना और उस ओर कदम बढ़ाने वाले कृष्‍ण पोरवाल को जोड़ते हुए बताया कि संग्रहालय में लवकुश कांड समेत रामायण से लेकर रानी एलिजाबेथ के दरबारी कवि की 1862 में प्रकाशित वह किताब भी मौजूद है, जिसके हर पन्ने पर सोने का वर्क है। यहां दुनिया के दुर्लभ पुराने स्टांप के साथ ही ब्रिटिश काल से लेकर दुनिया भर के करीब चालीस हजार डाक टिकट मौजूद हैं। करीब तीन हजार प्राचीन सिक्कों का कलेक्शन भी किया जा चुका है।  

ब्रिटेन की रानी एलिजाबेथ के दरबारी कवि की स्वर्णपत्र वाली किताब

 यहां लव-कुश कांड युक्त रामायण, प्राचीन गीता, संस्कृत और उर्दू में साथ-साथ लिखी दुर्लभ मनुस्मृति तो हैं ही, रानी एलिजावेथ के दरबारी कवि की 1862 में प्रकाशित वह किताब भी है जिसके हर पन्ने पर सोना है। 1913 में छपी एओ ह्यूम की डायरी, प्रभा पत्रिका के सभी अंक, चांद का जब्तशुदा फांसी अंक और झंडा अंक, गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा अनूदित ‘बलिदान’ और आयरलैण्ड का इतिहास पुस्तक, जिसे पढ़कर नौजवान क्रांतिकारी बनने का ककहरा सीखते थे, की मूल प्रति, तमाम गजेटियर, क्रांतिकारियों के मुकदमें से जुड़ी फाइलों के अलावा देश और विदेश की 18वी और 19वी शताब्दी के हर मुद्दों की दुर्लभ किताबों का बहुमूल्य जखीरा यहां है।

दुर्लभ पत्र-पत्रिकाएं 

सरस्वती, माधुरी, विश्वमित्र, चांद, प्रभा, सुकवि-सुधा, कन्या, मनोरंजन, नवजीवन विशाल भारत, हंस, सारिका, धर्मयुग, दिनमान, साप्ताहिक हिन्दुस्तान सहित देश-विदेश की सात हजार दुर्लभ पत्रिकाओं के साथ प्रमुख साहित्यकारों और आजादी आंदोलन के दौरान की दुर्लभ कृतियां अध्येताओं शोधकर्ताओं के लिए विशेष आकर्षण हैं। अनेक विलुप्तप्राय पत्र-प्रत्रिकाओं के प्रवेशांक और आजादीपूर्व की  पत्रिकाओं से जुड़े टिकट लगे लिफाफे भी संरक्षित किए गए हैं।

दुनिया भर के पुराने स्टांप, डाक टिकट और सिक्के

चंबल संग्रहालय में राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा स्टेट का स्टांप रखा है, जिसे दुनिया का सबसे पुराना स्टांप माना जाता है। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी स्टांप का संग्रह, तथागत बुद्ध की 2,550वीं जयंती पर जारी स्टांप, आजादी की 25वीं वर्षगांठ पर भारत और सोवियत संघ द्वारा जारी स्टांप, जंग-ए-आजादी 1857 की 150वीं वर्षगांठ पर रानी लक्ष्मीबाई पर जारी स्टांप प्रमुख हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. आर. वेंकटरमन को विदेशी दौरों के दौरान तोहफे में मिले अनोखे डाक टिकटों का संग्रह भी यहां है। ब्रिटिश काल से लेकर दुनिया भर के करीब चालीस हजार डाक टिकट मौजूद हैं। हजारों लिखित-अलिखित पत्र, लिफाफों के अलावा संग्रहालय में करीब तीन हजार प्राचीन सिक्कों का कलेक्शन भी मौजूद है।

संग्रहालय को बेतहर बनाने के लिए ऐसे सुधी जनों से संपर्क किया जा रहा है  जिनके पास दुर्लभ दस्तावेज, लेटर, गजेटियर, हाथ से लिखा कोई पुर्जा, डाक टिकट, सिक्के, स्मृतिचिन्ह, समाचारपत्र, पत्रिका, पुस्तकें, तस्वीरें, पुरस्कार, सामग्री-निशानी, अभिनंदनग्रंथ, पांडुलिपि आदि हैँ। और ऐसे हमख्याल लोग संपर्क भी कर रहे हैं, जिनमें मशहूर लेखक असगर वजाहत और भरत प्रसाद जैसे कई शामिल हैं।

 व्यवस्‍था और विकास के मद्देनजर आलम ने बताया कि पहले चरण में संदर्भ सामग्री के संरक्षण के लिए डिजिटलाइजेशन, लेमिनेशन आदि पर बीते तीन महीने से शिद्दत से काम चल रहा है। कृष्‍ण पोरवाल द्वारा समर्पित तीन औसत कमरों और एक बड़े हाल में स्‍थापित वर्तमान संग्रहालय का परिसर है। यह इटावा रेलवे स्टेशन से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर म.न. 40 मोहल्ला चौगुर्जी में स्थित है। वैसे कालांतर में विशाल संग्रहालय की स्‍थापना के लिए पांच नदियों के संगम स्‍थल पंचनद घाटी पर फोकस किया गया है।   

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