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सिद्धू का तिरस्कार कहीं कांग्रेस को भारी न पड़ जाए, इस्तीफे के बाद क्या होगी उनकी रणनीति

पूर्व क्रिकेटर और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब के मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके हैं। आज वह...
सिद्धू का तिरस्कार कहीं कांग्रेस को भारी न पड़ जाए, इस्तीफे के बाद क्या होगी उनकी रणनीति

पूर्व क्रिकेटर और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब के मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके हैं। आज वह दोराहे पर खड़े हैं। पंजाब की राजनीति में हाशिए पर पहुंचे सिद्धू की अगर पार्टी हाईकमान में भी सुनवाई नहीं हुई तो आगे वह क्या कदम उठाएंगे, आज यह सबसे बड़ा सवाल है।

पंजाब के मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद अहम मंत्रालय छीने जाने से खफा कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने मुख्यमंत्री कैप्टन अम‌रिंदर सिंह को भी अपना इस्तीफा आज उनके सरकारी आवास के पते पर भेज दिया है, जो जल्द ही उनको मिल जाएगा। सिद्धू ने गत दिवस पंजाब कैबिनेट से इस्तीफा देने की घोषणा की थी। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को 10 जून को भेजे अपने इस्तीफे की जानकारी रविवार को ट्विटर पर साझा की थी। आज उन्होंने एक अन्य ट्वीट करके मुख्यमंत्री को इस्तीफा भेजने की जानकारी दी।

कैप्टन ने हार के लिए सिद्धू को ठहराया था जिम्मेदार
बता दें कि लोकसभा चुनाव में हार के लिए मुख्यमंत्री कैप्टन अम‌रिंदर सिंह ने सिद्धू को जिम्मेदार ठहराया था। इसके बाद कैप्टन ने सिद्धू से स्थानीय निकाय विभाग छीनकर उन्हें ऊर्जा मंत्री बना दिया था लेकिन लंबे समय के बाद भी सिद्धू ने विभाग नहीं संभाला। 

एक माह बाद भी सिद्धू ने नया मंत्रालय नहीं संभाला
सिद्धू मंत्रालय बदले जाने से काफी नाराज थे। बीते 6 जून को मुख्यमंत्री ने सिद्धू से शहरी निकाय के साथ पर्यटन एवं सांस्कृतिक मामले विभाग वापस ले लिए थे और उन्हें ऊर्जा एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग का प्रभार सौंपा था। अम‌रिंदर ने पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया था। इसके बाद दोनों के बीच तनाव सार्वजनिक हो गया।

इस्तीफे से पंजाब में भूचाल

सिद्धू ने इस्तीफा देकर पंजाब की राजनीति में भूचाल ला दिया है। कैप्टन-सिद्धू में चल रहा शीत युद्ध लोकसभा चुनाव के बाद विकराल रूप धारण कर गया था। मुख्यमंत्री का कहना था कि सिद्धू के कारण ही पार्टी पंजाब में सभी 13 सीटों पर जीत हासिल नहीं कर सकी। 

बयान ने सिद्धू को हाशिए पर ला दिया
सिद्धू की ओर से बठिंडा में किए गए कटाक्ष कि पंजाब में अकालियों के साथ फ्रैंडली मैच चल रहा है, से वह हाशिए पर चले गए। अम‌रिंदर सिंह खेमा राजनीतिक रूप से अत्यंत शक्तिशाली है। इस धड़े ने इस प्रकार से राजनीतिक बिसात बिछायी कि सिद्धू किनारे हो गए। धीरे-धीरे उनके करीबी साथी भी उनसे दूरी बनाने लगे। 

प्रियंका चाहती हैं, सिद्धू कैबिनेट पद न छोड़ें 
सूत्रों के अनुसार सिद्धू पर दबाव था कि वे नए विभाग का काम संभालें, लेकिन वह अज्ञातवास में चले गए थे।  उनसे मोबाइल पर भी संपर्क मुश्किल हो गया। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी का भी सिद्धू पर दबाव था कि वह कैबिनेट पद न छोड़ें तथा मुख्य धारा में लौट आएं। 

सिद्धू ने हाईकमान की निर्णयहीनता की स्थिति को देखते हुए अंतत: खुद ही कदम उठाया, जो आने वाले समय में कैप्टन ग्रुप और प्रदेश कांग्रेस से उनकी दूरियां और बढ़ाएगा। अगर प्रियंका गांधी या कोई अन्य व्यक्ति कांग्रेस का अध्यक्ष बनता है तो सिद्धू की कुछ सुनवाई पार्टी हाईकमान में हो सकती है परन्तु आज की स्थिति में मुख्यमंत्री के सम्मुख सिद्धू के सितारे ‘गर्दिश’ में नजर आ रहे हैं। 

पंजाब की राजनीति में नए गठबंधन के आसार
यदि कैप्टन की तनातनी के बाद दिल्ली दरबार से भी कोई राहत न मिलने से आहत सिद्धू कांग्रेस पार्टी को भी छोड़ देते हैं तो पंजाब की राजनीति में एक नए गठबंधन का रास्ता खुलने के आसार दिखाई दे रहे हैं। सिद्धू के पिछले जुझारूपन को देखें तो उनके शांत और गुमनाम बैठने की संभावना नहीं है। कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी भी सिद्धू को समर्थन देगी। वहीं, बेंस बंधु, धर्मवीर गांधी, सुखपाल सिंह खैहरा, जगमीत सिंह बराड़, सुच्चा सिंह छोटेपुर और अकाली दल से अलग हुए टकसाली अकाली दल के नेता भी सिद्धू की ओर आकर्षित होंगे।

सिद्धू का जनाधार सुरक्षित
सिद्धू के पास पंजाब का जनाधार आज भी सुरक्षित है। इस कारण उनकी लोकप्रियता बराबर बढ़ती रही है। उनकी लोकप्रियता का आलम यह भी है कि किसी भी चुनाव में सिद्धू ने हार का मुंह नहीं देखा। सिद्धू से बार-बार संसदीय चुनावों में हार चुके कांग्रेस के उम्रदराज महारथी रघुनंदन लाल भाटिया भी सिद्धू को मुख्यमंत्री बनने का आशीर्वाद दे चुके हैं। कांग्रेसी नेता कुछ भी कहें लेकिन सिद्धू का तिरस्कार कांग्रेस के जनाधार को नुकसान भी पहुंचा सकता है।

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