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झारखंड: चुनौतियों से जूझते हेमंत, लेकिन कामकाज और व्यवहार से चर्चा के केंद्र में

“मुख्यमंत्री को सियासी चुनौतियां कई मगर अपने कामकाज और व्यवहार से चर्चा के केंद्र में” झारखंड के...
झारखंड: चुनौतियों से जूझते हेमंत, लेकिन कामकाज और व्यवहार से चर्चा के केंद्र में

“मुख्यमंत्री को सियासी चुनौतियां कई मगर अपने कामकाज और व्यवहार से चर्चा के केंद्र में”

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दिल्ली के होटल ताज में जब देश के बड़े उद्यमियों के साथ विमर्श कर रहे थे तब उनके चेहरे से कोई नहीं भांप सकता था कि उनकी सरकार गिराने की साजिश का कोई जख्म उनके जेहन में ताजा है। इससे इतर वे निवेश के लिए व्यापार-उद्योग जगत के लोगों को आमंत्रित करने के लिए इनवेस्टर्स मीट में जुटे थे। उनका सपना करीब एक लाख करोड़ के निवेश के साथ पांच लाख लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का है। हालांकि 27-28 अगस्त को हुए समिट के अंतिम दिन लगभग दस हजार करोड़ रुपये के निवेश पर एमओयू साइन हुए। इससे लगभग दो लाख लोगों को रोजगार के अवसर पैदा होने का दावा है। झारखंड में बीते विधानसभा चुनाव के दौरान बेरोजगारी बड़ा मुद्दा था। सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने घोषणा पत्र में नौकरियों का वादा भी किया था लेकिन पौने दो साल बीत जाने के बाद भी नौकरियां न मिलने से युवाओं में असंतोष बढ़ रहा था।

वर्ष 2021 को हेमंत सरकार ने नियोजन वर्ष घोषित कर रखा है। पिछले महीने विभिन्न नियुक्ति नियमावलियों में संशोधन कर सरकारी नौकरियों का रास्ता निकाला गया है। हेमंत सरकार ने स्थानीय लोगों को नौकरी देने के मुद्दे में उलझने के बजाय नीति बनाई है कि झारखंड से मैट्रिक और इंटर पास कोई भी व्यक्ति नौकरियों के लिए आवेदन कर सकता है।

यह सब वे ऐसे समय में कर रहे हैं, जब विपक्ष कई मुद्दों पर हमलावर है। झारखंड में परीक्षाओं से हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत को बाहर किए जाने को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने असंवैधानिक कहते हुए अदालत में जाने का ऐलान कर दिया है। इतना ही नहीं, निजी तौर पर भी हेमंत कई मर्चों पर लड़ रहे हैं। महाराष्ट्र में एक युवती से कथित दुष्कर्म के एक विवादित पुराने मामले और सोरेन परिवार की आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति को लेकर विपक्ष लगातार उन पर हमले कर रहा है। सीबीआइ ने अपना काम पूरा कर लोकपाल को सौंप दिया है। जांच में कुछ निकला तो केंद्र को सोरेन परिवार को घेरने का हथियार मिल जाएगा। कॉरपोरेट लॉबिस्ट के रूप में ख्यात गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे दोनों मामलों को ज्यादा तूल देते रहे हैं।

मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही हेमंत सोरेन को केंद्र से चुनौतियां मिलती रही हैं। पिछले महीने ही उनकी सरकार गिराने की साजिश का भंडाफोड़ हो चुका है। तमाम चुनौतियों के बीच हेमंत सोरेन मजबूती से खड़े हैं। वे अपने सहयोगियों के साथ रिश्तों और अपने राजनैतिक कद के प्रति हमेशा जागरूक रहते हैं। इसी माह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की भाजपा विरोधी दलों की वर्चुअल बैठक में भी वे शामिल हुए थे और दमदार तरीके से अपनी बात रखी थी। अपने व्यवहार और राजनीतिक कुशलता से सोरेन ने विभिन्न दलों में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाई है।

हालांकि उन्हें अपने ही सहयोगी से चुनौती मिल रही है। कांग्रेस सरकार में शामिल सहयोगी पार्टी है। लेकिन सरकार बनने के थोड़े ही दिन बाद अधिकारियों के तबादले को लेकर मंत्रियों और विधायकों की ओर से दबाव बनने लगा। कांग्रेस के विधायकों पर मुकदमे को लेकर भी कांग्रेस विधायकों में असंतोष है। महिला विधायकों की नाराजगी ज्यादा है लेकिन सोरेन अपनी राजनीतिक कुशलता से किसी तरह संतुलन साध रहे हैं। बोर्ड, निगम, आयोगों के रिक्त पदों पर अभी तक समायोजन नहीं हो सका है। बीस सूत्री समितियों में भी कार्यकर्ताओं को जगह नहीं मिल पाई है। न्यूनतम साझा कार्यक्रम तक तय नहीं हो सका है। कैबिनेट में भी एक सीट खाली है जिसे लेकर कांग्रेस का दबाव बढ़ रहा है।

रामेश्वर उरांव कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के साथ हेमंत सरकार में कैबिनेट मंत्री भी थे। ऐसे में वे पार्टी फोरम से उठने वाली मांगों को लेकर मुख्यमंत्री पर बहुत दबाव बनाने में सहज नहीं दिख रहे थे। नाराज कांग्रेसी उन्हें बौना विकल्प कहते हैं। अब कांग्रेस ने युवा नेता, जो न कभी विधायक रहे न सांसद, राजेश ठाकुर को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप दी है। माना जा रहा है कि राजेश ठाकुर सरकार पर दबाव बनाने में थोड़े मजबूत दिखाई पड़ सकते हैं। वे खुद बीस सूत्री-निगरानी समितियों के गठन के लिए बनी समिति में हैं। ऐसे में खुद उन पर भी दबाव होगा। खुद ठाकुर दबाव बनाकर अपना असर दिखाना चाहेंगे। ऐसे में कई चुनौतियों के बीच हेमंत सोरेन के लिए कांग्रेस की चुनौती भी कुछ कम नहीं है।

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