मध्य प्रदेश के बासमती चावल को बासमती की मान्यता दिलाने के लिए शिवराज सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। राज्य सरकार का दावा है कि मध्य प्रदेश के कई इलाकों में परंपरागत तरीके से बासमती धान की खेती होती है। इसी आधार पर भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) के लिए आवेदन किया था।
शुरुआती दौर में मध्य प्रदेश के पक्ष में फैसला आया था जिसे लेकर कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इसमें राज्य के पक्ष को खारिज कर दिया गया था। इसके खिलाफ मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
सीहोर, रायसेन, विदिशा, होशंगाबाद सहित अन्य जिलों में होती है बासमती धान की खेती
राज्य में परंपरागत तौर पर सीहोर, रायसेन, विदिशा, होशंगाबाद सहित अन्य जिलों में बासमती धान की खेती होती है। इसे प्रोत्साहित करने के लिए रराज्य सरकार ने किसानों को बीज उपलब्ध कराकर खेती भी कराई लेकिन विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में मध्य प्रदेश का नाम नहीं होने से इसे मान्यता नहीं मिली। इस कारण यहां के बासमती धान को वह कीमत नहीं मिल पाती है जो मिलनी चाहिए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पिछले कार्यकाल में भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) पंजीयन हासिल करने के लिए आवेदन कराया था।
मद्रास उच्च न्यायायल ने 27 फरवरी को बासमती चावल की जीआई टैग सूची से मध्य प्रदेश को किया था बाहर
यही नहीं, तत्कालीन शिवराज सरकार ने इसके लिए बरसों पुराने प्रमाणित दस्तावेज भी जुटाकर दिए थे लेकिन एपीडा के विरोध के कारण मान्यता नहीं मिल सकी। कृषि मंत्री कमल पटेल ने बताया कि कमलनाथ सरकार को जिस दमदारी से इस मामले को लड़ना चाहिए था, वैसा नहीं लड़ा गया। मद्रास उच्च न्यायायल ने 27 फरवरी को बासमती चावल की जीआई टैग सूची से मध्य प्रदेश को बाहर किए जाने के फैसले को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने के लिए 27 मई को अधिवक्ता जे. साई कौशल को नियुक्त किया गया। अब सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर याचिका दायर कर दी गई है।
एजेंसी इनपुट