Home एग्रीकल्चर पालिसी कृषि उपज की खरीद पर नीतिगत फैसले, जानिये किसानों के लिए कितने फायदे
कृषि उपज की खरीद पर नीतिगत फैसले, जानिये किसानों के लिए कितने फायदे
कृषि उपज की खरीद पर नीतिगत फैसले, जानिये किसानों के लिए कितने फायदे

कृषि उपज की खरीद पर नीतिगत फैसले, जानिये किसानों के लिए कितने फायदे

केंद्र सरकार ने किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम दिलाने का मकसद बताते हुए दो नीतिगत कदम उठाए हैं। एक तो कैबिनेट ने आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) में संशोधन किया है और दूसरा, किसान कहीं भी अपनी उपज बेच सकें, इसके लिए अध्यादेश को मंजूरी दी है। लेकिन विशेषज्ञ इससे पूरी तरह सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि ईसीए में संशोधन से किसानों से कहीं ज्यादा प्रोसेसर्स और निवेशकों को लाभ होगा। जहां तक किसानों के उपज बेचने की बात है तो राज्य जब तक एपीएमसी कानून में बदलाव के लिए कदम नहीं उठाएंगे, तब तक किसी भी अध्यादेश से जमीन पर ज्यादा कुछ बदलने की उम्मीद नहीं है।

ये खाद्य वस्तुएं ईसीए से बाहर

सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) में संशोधन को स्वीकृति दी है, जिसके अनुसार अनाज, तेल, दलहन, आलू और प्याज इसके दायरे में नहीं रहेंगे। इन वस्तुओं पर स्टॉक लिमिट जैसी पाबंदियां न लगने से इनका व्यापार सुगम होगा। हालांकि असामान्य महंगाई, आपात स्थिति, प्राकृतिक आपदा जैसी स्थितियों में इन वस्तुओं पर भी यह कानून लागू करने का प्रावधान रखा गया है।

पाबंदियां हटने से निवेशकों और प्रोसेसर्स को सहूलियत

स्टॉक लिमिट जैसी पाबंदियां किसानों पर नहीं बल्कि व्यापारियों और प्रोसेसर्स वगैरह पर लागू होती हैं। ऐसे में ईसीए में बदलाव से व्यापारियों, निवेशकों, प्रोसेसर्स को ही ज्यादा फायदा मिलेगा। स्टॉक लिमिट न होने से मूल्य में स्थिरता का अप्रत्यक्ष रूप से लाभ किसानों को भी मिलेगा। कोटा मंडी के व्यापारी रवींद्र शर्मा ने कहा कि ईसीए की पाबंदियां होती हैं तो कीमतों पर आने वाले असर से किसान ही ज्यादा प्रभावित होते हैं। हालांकि पाबंदियां हटने से व्यापारियों की दिक्कतें कम होंगी और कारोबार आसान होगा।

स्टोरेज, प्रोसेसिंग में निवेश बढ़ने की उम्मीद

कर्वी कॉमट्रेड के एनालिस्ट वीरेश हिरेमिथ का कहना है कि प्रोसेसिंग, स्टोरेज, ट्रांसपोर्टेशन में निवेशकों और बड़े कारोबारियों के लिए ये पाबंदियां बड़ी बाधाएं रही हैं। इनके हटने से निवेशकों के लिए कारोबार की योजना बनाना और इसके रिटर्न का अनुमान लगाना आसान होगा। स्टोरेज और प्रोसेसिंग में निवेश बढ़ेगा तो किसानों को ज्यादा स्थिर बाजार मिल सकेगा।

वैसे, जिन वस्तुओं को ईसीए से निकाला गया है, उन पर भी गौर करने की जरूरत है। गेहूं और चावल जैसे प्रमुख अनाजों का सरकार के पास विशाल भंडार होने से इनकी कीमतों में ज्यादा उथल-पुथल नहीं होती है। आलू और प्याज में भारी उतार-चढ़ाव से किसानों को समय-समय पर नुकसान होता है और उपभोक्ताओं को भी कीमत बढ़ने पर दिक्कतें आती हैं। इन वस्तुओं के मामले में सरकार को स्टॉक लिमिट जैसी पाबंदियों से बचने के लिए बफर स्टॉक स्थायी रूप से रखना होगा। खाद्य तेल और दलहन में ईसीए की पाबंदियां हटने से प्रोसेसर्स और व्यापारियों को सबसे ज्यादा सहूलियत मिलने वाली है।

हेजिंग में उद्योगों को आसानी होगी

ईसीए में संशोधन से कमोडिटी फ्यूचर्स और हाजिर बाजार के बीच तालमेल के सवाल पर विश्लेषकों का कहना है कि चना और तिलहन जैसी कुछ उपजों का ही वायदा व्यापार होता है। पाबंदियां खत्म होने से वायदा और हाजिर बाजार के बीच बेहतर समन्वय होगा। वीरेश हिरेमिथ के अनुसार समय-समय पर प्रतिबंधों के चलते हाजिर बाजार में कीमतों में असामान्य उथल-पुथल आता है। ईसीए के संशोधन से व्यापारियों और उद्योगों के लिए कृषि उपज की हेजिंग करना आसान होगा।

अध्यादेश से मंडियों के बाहर उपज बेचने का अधिकार

सरकार ने एक अध्यादेश भी जारी किया है। फार्मिंग प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसेलिटेशन) ऑर्डिनेंस के बारे में सरकार का कहना है कि किसान कहीं भी अपनी उपज बेचने के लिए स्वतंत्र होगे। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसकी घोषणा करते हुए कहा था कि कृषि उपज और विपणन राज्य सरकारों के अधीन आते हैं। हमने इनके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की है। कैबिनेट के फैसले के बाद एक अधिकारी ने कहा कि एपीएमसी के तहत चिन्हित मंडियों के बाहर किसानों को कहीं भी अपनी उपज बेचने का अधिकार होगा।

किसान पहले से ही कहीं भी बेचने को आजाद

लेकिन केंद्र सरकार के इन तर्कों के बावजूद अध्यादेश से यह मामला और ज्यादा पेचीदा हो गया है। व्यापारियों का कहना है कि किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने पर पहले ही कोई प्रतिबंध नहीं था। वे दूसरे राज्यों की मंडियों में जाकर अपनी फसल बेचते थे। असली मुद्दा खरीदार के स्तर का है। क्या व्यापारियों को मंडियों के बाहर खरीदने की अनुमति मिलेगी। अभी व्यापारी और कंपनियां किसानों से निर्धारित मंडियों के बाहर उपज की खरीद नहीं कर सकती हैं। राज्य सरकारें किसानों से उपज खरीदने के लिए व्यापारियों और कंपनियों को लाइसेंस जारी करती हैं। लाइसेंस शर्तों के अनुसार मंडी में ही उन्हें खरीद करनी होती है।

कमोडिटी एनालिस्ट वीरेश हिरेमिथ कहते हैं कि छोटे किसानों वाले भारत में इन मंडियों से ही किसानों का भुगतान सुनिश्चित होता है। मंडियों के बाहर व्यापारी खरीदेंगे तो उन पर नियंत्रण रखना सरकार के लिए मुश्किल हो जाएगा। उनका कहना है कि कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने व्यापारियों को किसानों के खेतों से उपज खरीदने की अनुमति दी है। लेकिन इसके लिए सरकारी अधिकारी निगरानी करते हैं और किसानों के हितों का ख्याल करते हैं। उनका कहना है कि अध्यादेश से यह मामला और पेचीदा हो जाएगा। मंडी व्यापारियों का भी कहना है कि उन्हें जब अनुमति मिलेगी, तभी वे मंडी से बाहर खरीद कर पाएंगे। किसान अपने संगठन बनाकर अपनी उपज को निर्यात कर सकते हैं लेकिन आम किसानों के लिए इसकी प्रक्रिया पूरी करना और निर्यात की खेप भेजना आसान नहीं होगा।

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