Home एग्रीकल्चर एग्री बिजनेस ‘एमबीए सब्जीवाला’: पढ़ें हजारों किसानों को नई राह दिखाने वाले कौशलेंद्र की कहानी
‘एमबीए सब्जीवाला’: पढ़ें हजारों किसानों को नई राह दिखाने वाले कौशलेंद्र की कहानी
‘एमबीए सब्जीवाला’: पढ़ें हजारों किसानों को नई राह दिखाने वाले कौशलेंद्र की कहानी

‘एमबीए सब्जीवाला’: पढ़ें हजारों किसानों को नई राह दिखाने वाले कौशलेंद्र की कहानी

“एमबीए सिर्फ बड़ी कंपनी में नौकरी पाने का जरिया नहीं रह गया, अनेक लोगों ने इस पढ़ाई में मिली सीख से नए क्षेत्रों में करियर बनाया है”

कौशलेंद्र, किसान कोऑपरेटिव, बिहार

कौशलेंद्र के माता-पिता ने पांच लाख रुपये का एजुकेशन लोन लेकर प्रतिष्ठित आइआइएम अहमदाबाद से एमबीए करवाया था। तब उन्हें जरा भी इल्म नहीं था कि उनका बेटा कुछ अलग करने की सोच रहा है। आइआइएम से 2007 में लौटने के बाद कौशलेंद्र ने परिवार से कहा कि वे बिहार में ही सब्जियां बेचना चाहते हैं। उनके अनेक सहपाठी अलग-अलग बहुराष्ट्रीय कंपनियों में मोटे वेतन वाली नौकरी पा चुके थे।

14 साल पहले नालंदा जिले के अपने गांव एकंगरसराय लौटने वाले कौशलेंद्र कहते हैं, “मैंने वह फैसला किसी आवेग में नहीं लिया। आआइएम के दिनों में मैं शिक्षकों और छात्रों के एक समूह से जुड़ा था, जिसमें सब अलग-अलग क्षेत्रों में सामाजिक और आर्थिक विकास के विभिन्न तरीकों पर नियमित चर्चा करते थे। मैं जानता था कि बिहार में देश की ‘सब्जियों की राजधानी’ बनने की क्षमता है।”

कौशलेंद्र ने महसूस किया कि आदर्श जलवायु और मिट्टी होने के बावजूद स्थानीय किसानों ने सब्जियों की खेती बंद कर दी थी और दूसरी फसलों की ओर मुड़ गए थे। कारण यह था कि बड़े बाजारों तक उनकी पहुंच नहीं थी। तब कौशलेंद्र ने समृद्धि नाम से किसान कोऑपरेटिव खोलने का फैसला किया, जिसमें किसानों से ताजी और ऑर्गेनिक सब्जियां खरीदी जाती थीं। उनका कहना है, “किसानों को सिर्फ मार्केटिंग का एक रास्ता चाहिए था जो हमने उन्हें उपलब्ध कराया।”

सिर्फ पांच किलो सब्जियों से शुरुआत करने वाले इस कोऑपरेटिव का टर्नओवर तीन साल में ढाई करोड़ रुपये पहुंच गया। उसके बाद सैकड़ों किसान इससे जुड़े। कोऑपरेटिव ने शुरुआती दिनों में ही ऐसी ठेला गाड़ी का इंतजाम किया था जिन्हें बर्फ से ठंडा रखा जाता था। उनमें सब्जियां पांच-छह दिनों तक ताजी रहती थीं। जल्दी ही लोग कौशलेंद्र को ‘एमबीए सब्जीवाला’ कहने लगे।

उनके मुख्य खरीदार पढ़े-लिखे शहरी थे, लेकिन जब शहरों में मॉल आ गए तो वे खरीदार उनकी तरफ मुड़ गए। तब कौशलेंद्र ने दाल जैसी दूसरी फसलों की ओर जाने का निर्णय लिया। चंद छोटे केंद्रों को छोड़कर कोऑपरेटिव ने सब्जियों का रिटेल बिजनेस बंद कर दिया। उनके मॉडल पर आधारित सब्जियों का बिजनेस खड़ा करने के इच्छुक नए उद्यमियों की मदद करने लगा।

उनकी पहल के बाद बिहार के नवादा और पूर्वी चंपारण जिलों में 9000 से ज्यादा किसान दालों की खेती करने लगे। कौशलेंद्र कहते हैं, “मैंने किसानों को एक ही फसल पर निर्भर रहने के बजाय कई फसलें उगाने की सलाह दी। पहले वे सिर्फ धान और गेहूं की खेती करते थे। मैंने उन्हें समझाया कि आर्थिक फायदे के अलावा प्रोटीन युक्त दालें उनके परिवार को कुपोषण से लड़ने में भी मदद करेंगी।”

बीते पांच वर्षों से कौशलेंद्र का फोकस किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के साथ उन्हें पर्यावरण हितैषी खेती के लिए भी तैयार करना है। वे कहते हैं, “हम पंचायत स्तर पर कृषि उद्यमी बनाने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा ध्यान इस बात पर है कि ग्रामीण युवा कैसे जीविकोपार्जन करें।” कौशलेंद्र के अनुसार आइआइएम अहमदाबाद का अनुभव उनकी इस यात्रा में हर कदम पर मददगार रहा है। वे कहते हैं, “हम जीवन में जो कुछ भी करते हैं वह सबके लिए मैनेजमेंट का एक पाठ है।”