पायलट परियोजनाओं के सफल होने के बाद भारत ने समुद्री शैवाल या मैक्रोलेगा की 60 किस्मों की बड़े पैमाने पर खेती करने का फैसला किया है। इसमें दवा, उर्वरक, पशु चारा और भोजन के कई वाणिज्यिक अनुप्रयोग हैं, जो एमिनो एसिड और कई सूक्ष्म पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत है।
भारत की योजना 20,000 टन के मौजूदा स्तर से समुद्री शैवाल के उत्पादन को बढ़ाने की है। इसका बाजार मूल्य 2025 तक 50 करोड़ डॉलर यानी 50 करोड़ रुपए से 11.2 लाख टन होगा। उद्योग की जरूरतों को पूरा करने और आयात निर्भरता को कम करने के अलावा शुरू की गई नई परियोजना से कई तटीय राज्यों में 6 से 7 लाख लोगों को, विशेष तौर से महिलाओं को रोजगार मिलने की उम्मीद है।
गुरुवार यानी 28 जनवरी को आयोजित "समुद्री शैवाल बिजनेस बाय कोऑपरेटिव्स" के उद्यमिता विकास पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में प्रतिनिधियों को ये जानकारियां साझा की गई।
नेशनल को-ऑपरेटिव डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक संदीप नायक ने कहा कि केंद्र समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा देने के लिए बहुत गंभीर है। क्योंकि, इससे बड़े पैमाने पर व्यापारिक क्षमता बढ़ेगी। इसके अलावा इसमें देश के तटीय क्षेत्र के साथ खेती को बदलने और आजीविका में सुधार और रोजगार पैदा करने की बेहतर क्षमता है।
संदीप नायक ने आगे कहा कि विश्व स्तर पर समुद्री शैवाल का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है जो कि दवा और पोषक तत्वों सहित कई उद्योगों में अपना योगदान दे रहे हैं। इस वक्त ये 9 प्रतिशत वार्षिक विकास दर के साथ खाद्य उत्पादन का सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र बन गया है। नायक ने कहा कि वर्तमान में समुद्री शैवाल का उत्पादन लगभग 12 बिलियन डॉलर है और 2026 तक 26 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।