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नेपाल में हिंदू राष्ट्र को लेकर बहस तेज: प्रचंड

हम नेपाल को हिंदू राष्ट्र नहीं बनाना चाहते। हमारी पूरी कोशिश है कि यह धर्मनिरपेक्ष देश बना रहे। हालांकि नेपाली कांग्रेस सहित कुछ अन्य पार्टियां हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए जोर लगाए हुए हैं।
नेपाल में हिंदू राष्ट्र को लेकर बहस तेज: प्रचंड

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री, प्रखर-प्रचंड माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड इन दिनों भारत में हैं। नेपाल की एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के मुखिया प्रचंड भारत सरकार से नेपाल के साथ रिश्तों, खासतौर से नेपाल के संविधान निर्माण में भारत के सहयोग संबंधी कई स्तरों की चर्चा करने के लिए आए हुए हैं। उन्‍होंने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अौर गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की है। इसके बाद वह गुजरात के भुज में भूकंप के बाद के पुनर्वास को देखने जाएंगे। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नेपाल गए थे, तो प्रचंड और मोदी ने जिस तरह से एक दूसरे की तारीफ की थी, उस पर गरमा-गरम चर्चा रही थी।

दिल्ली में 16 जुलाई को समकालीन तीसरी दुनिया द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में प्रचंड ने दोहराया कि उन्हें मोदी सरकार से बड़ी उम्मीदें है। नेपाल में क्रांति के भविष्य, प्रंचड के हस्तक्षेप, नेपाल के हिंदू राष्ट्र बनने जैसे तमाम ज्वलंत सवालों पर आउटलुक की ब्यूरो प्रमुख भाषा सिंह ने उनसे विस्तृत बात की। पेश हैं उसके अंश:

 

नेपाल में माओवादी आंदोलन की इतनी बड़ी जीत, जिसमें आपने वहां से राजसत्ता को उखाड़ फेंका, उसके बाद आपकी पार्टी को गहरा धक्का लगा। आप अपना जनाधार खो बैठे, विपक्ष में चले गए। अब आगे का क्या रास्ता सोच रहे हैं?

आपकी बात तो सच है। हमने गलतियां की और उसका परिणाम सामने हैं। अब चुनौती फिर से खड़े होने और नेपाल की जनता के सामने एक मजबूत विकल्प देने की है। इसके लिए हम तैयारी कर रहे हैं। हमारी रणनीति में परिवर्तन आया है। यह बेहद जरूरी था। नेपाल में बुर्जुआ लोकतांत्रिक क्रांति का दौर राजशाही की समाप्ति के बाद से खत्म हो गया है। अब हमें समाजवादी क्रांति की तैयारी करनी है। इसके लिए वामपंथ के तमाम धड़ों को साथ लेने की कोशिश करनी है। हम इसकी तैयारी कर रहे हैं। अलग-अलग धड़ों में बंटे वामपंथ की मारक शक्ति कमजोर होगी।

 

समाजवादी क्रांति को किस तरह से व्याख्यित करते हैं, प्रधान शत्रु कौन है?

अब नेपाल में न तो उस तरह की राजसत्ता है और न ही उस तरह का सामंतवाद। हमारी पार्टी के नेतृत्व में चले 10 साल लंबे जनयुद्ध में भूमि संबंधों में बहुत परिवर्तन आया। बहुत बड़े जमींदार पहले भी नेपाल में नहीं थे, जो थे भी, उनका खात्मा हो गया। नेपाल में पहाड़ी क्षेत्र में 3-4 हेक्टेयर जमीन और तराई में 10 बीघा से अधिक जमीन कोई नहीं रख सकता है। हम इसे संविधान में भी रख रहे हैं।

 

भारत नेपाल मैत्री समझौते को खत्म करने की मांग बहुत पुरानी है, इस बार भी क्या आप भारतीय पक्ष से इस बाबत बात करेंगे?

यह समझौता पूरी तरह से एकतरफा है। यह 1950 में राणा के काल में हुआ था। हम इसे खत्म करना चाहते है। पर भारत कहता है कि इसे हम अपनी तरफ से खत्म कर दें, यह सही नहीं है। दोनों पक्षों को मिलकर खत्म करना चाहिए। इस पर हमारी बात जारी है।

 

नेपाल पर हिंदू राष्ट्र बनने का खतरा कितना तगड़ा है ?

यह नेपाल का सबसे संवेदनशील मुद्दा है। इसे लेकर पूरे नेपाल में बड़ी बहस छिड़ी हुई है। प्रलोभन देकर, डरा-धमका कर लोगों का धर्म परिवर्तन कराने के हम भी खिलाफ हैं। इस बारे में हमने संविधान में प्रावधान भी रखा है कि इस तरह कराए जाने वाला धर्म-परिवर्तन अपराध घोषित होना चाहिए।

 

यानी आप हिंदू राष्ट्र के समर्थकों की प्रमुख मांग को स्वीकार करते हैं। वे तो संविधान में इस प्रावधान से बहुत खुश हैं?

देखिए, नेपाल में में हिंदू आबादी ज्यादा है। नेपाल में ईसाइयत का बढ़ना हमारे लिए खतरा है। हमारा एक पड़ोसी चीन है, तो दूसरा भारत। दोनों देश नेपाल की आबादी की संरचना बदलने से परेशान होंगे। चीन के लिए तो यह पश्चिमी शक्तियों का प्रभाव है। हमारे राष्ट्रीय हित में भी नहीं है। लेकिन साथ ही यह भी तय है कि हम नेपाल को हिंदू राष्ट्र नहीं बनाना चाहते। हमारी पूरी कोशिश है कि यह धर्मनिरपेक्ष देश बना रहे। हालांकि नेपाली कांग्रेस सहित कुछ अन्य पार्टियां हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए जोर लगाए हुए हैं।

 

नेपाल में संविधान निर्माण की प्रक्रिया बेहद लंबी और जटिल हो गई है। आप भी सत्ता से बाहर है, कैसे नेपाल का संविधान गरीब और हाशिये पर खड़े समुदाय का प्रतिनिधित्व करेगा?

हमने तय किया है कि हम सरकार में रहकर, सदन में रहकर, सड़क पर रह कर संघर्ष करेंगे। नेपाल हमारा है, हमने इसे बनाया है और आगे भी इसे बेहतर बनाएंगे। संविधान में बहुत अच्छे सकारात्मक प्रयोग हमने किए हैं। किसी भी तरह की राजशाही का निषेध किया है। समानुपातिक प्रतिनिधित्व की बात कही है। महिलाओं, दलितों, समुदायों की बराबर की हिस्सेदारी की बात कही है। हम संसदीय प्रणाली के खिलाफ है। इससे कभी अराजकता खत्म नहीं होगी।

 

क्या दोबारा सशस्त्र क्रांति की जरूरत महसूस होती है ?

अभी तो नहीं। अभी शांतिपूर्ण संघर्ष का दौर है। क्रांतिकारी आंदोलन में अलग-अलग चरण होता है रणनीति का। समाजवादी क्रांति के लिए जब स्थितियां परिपक्व होंगी तो बिना बल प्रयोग के सत्ता हस्तांतरण नहीं संभव।

 

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