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दिल्ली संकट पर चुप्पी तोड़ें राष्ट्रपति

देश के संवैधानिक प्रमुख की हैसियत से राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राजधानी दिल्ली में गहराते संवैधानिक संकट को देखते हुए अब और निष्क्रियता और चुप्पी की आरामतलबी गवारा नहीं कर सकते। केंद्रीय गृह मंत्रालय की अधिसूचना और आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार के उसके खिलाफ विधान सभा का सत्र बुलाने के निर्णय से केंद्र और दिल्ली सरकार का टकराव अब उस कगार पर पहुंच गया है कि बिना न्यायपालिका या राष्ट्रपति जैसी उच्च संवैधानिक संस्थाओं की पंचायती के किसी परिपक्व संवैधानिक हल की उम्मीद नहीं।
दिल्ली संकट पर चुप्पी तोड़ें राष्ट्रपति

अंतरिम मुख्यसचिव की नियुक्ति को लेकर पैदा टकराव भले ही उपराज्यपाल नजीब जंग और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच अहम के टकराव के रूप में मीडिया शीर्षकों मेँ प्रकट हुआ हो, केंद्र की अधिसूचना से साफ़ है कि जंग के पीछे भारतीय जनता पार्टी की केंद्रीय सरकार है। इसी तरह दिल्ली की विधान सभा की बैठक बुलाने से स्पष्ट है कि आम आदमी पार्टी एक सोची समझी राजनीतिक रणनीति के तहत यह टकराव मोल ले रही है। 
 
इसे केजरीवाल ने बखूबी व्यक्त भी किया: हमारी जंग उपराज्यपाल से नहीं, मोदी सरकार से है। 
 
इंदिरा गांधी के शासन में कांग्रेस विभाजन के वक़्त, फिर आपातकाल में परिणत होने वाले घटनाक्रम से हम अब अच्छी तरह जानते हैं कि राजनीति और विचारधाराओं की जंग संविधान और कानून की जमीन पर लड़ी जाती है। मैग्ना कार्टा, फ़्रांसीसी क्रांति, रूसी क्रांति, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आजादी, इमरजेंसी आदि देशी -विदेशी इतिहास की घटनाएं छोड़ें, ताजा राजनीतिक जंग भी संविधान और कानून की जमीन पर छेड़ी गई है। राजनीतिक सैद्धांतिक मसला है: दिल्ली में दिल्ली में दिल्ली की जनता का अपार बहुमत से प्रतिनिधित्व कर रही स्थानीय सरकार के हिसाब से प्रशासन चलेगा या देश के बहुमत से चुनी गई केंद्र सरकार के हिसाब से। इसके लिए दोनों पक्ष लोकतांत्रिक संविधान की भावना और प्रावधान तथा उनसे संबंधित कानून और नियम खंगाल रहे हैं। 
 
 
सारा अनिश्चय दिल्ली के पूर्ण राज्य न होने की वजह से है। पूर्ण राज्यों के मामले में केंद्र और के क्षेत्राधिकार संविधान की केंद्रीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची से तय होते हैं। दिल्ली संघ शासित होने के कारण केंद्र ने अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए क्षेत्राधिकार का अलग नियम बनाया। इसके तहत पुलिस, भूमि, सार्वजनिक व्यवस्था और सेवाओं पर उपराज्यपाल के जरिये केंद्र के अधिकार को ताजा अधिसूचना में भी रेखांकित किया गया है, गो यह राजनीतिक पॉइंट स्कोर करने के लिए पुराने नियम का दुहराव यानि नई बोतल में पुरानी शराब ही है। केजरीवाल सरकार दिल्ली-केंद्र संबंधों की नई शराब चाह रही है। दिल्ली में 15 साल और देश में 10 वर्ष विपक्ष में बैठे हुए भाजपा भी पूर्ण राज्य की नई शराब की मांग किया करती थी। इसलिए पुराने नियम के अनुरूप अपनी हांकने की कोशिश उसका पाखंड है। आप सरकार को राजीव धवन, के के वेणुगोपाल और इंदिरा जयसिंह जैसे बड़े-बड़े न्यायविदों से मिली राय वर्तमान नियम के अनुरूप ही अफसरों का पदस्थापन रोकने की उपराज्यपाल की कार्रवाई और केंद्रीय अधिसूचना के जरिये उन्हें इसका पूर्णाधिकार देने को कानून विरुद्ध और जनप्रतिनिधि शासन की संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ मानती है। 
 
 
इस राय के अनुसार उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के अफसरों के  पदस्थापन पर मतभेद की हालत में नियमानुसार उपराज्यपाल के लिए लाजिमी है कि मसला राष्ट्रपति के पास ले जाएं। जंग का यह न करके एकतरफा कदम उठाना ये विशेषज्ञ गैरकानूनी मानते हैं। राष्ट्रपति के पास जंग अपनी एकतरफा कार्रवाई और केजरी के उनके पास जाने के बाद गए। उपरोक्त विशेषज्ञ केंद्रीय अधिसूचना को इस आधार पर नियम विरुद्ध मानते हैं कि उसमें भी राष्ट्रपति की राय का कोई जिक्र नहीं है। हालांकि केंद्र भी इस विषय पर अपनी सरकार में बैठे अधिवक्ताओं और न्यायिक अधिकारियों की राय पर चल रहा है। वैसे जब से मोदी सरकार आई है वह सभी संवैधानिक व्यवस्थाओं को तान कर उनका लचीलापन परख रही है कि वे उसके वर्चस्व के अनुरूप कितना ढल सकती हैं। उदाहरण के लिए हम सुप्रीम कोर्ट और रिजर्व बैंक के साथ हाल में सरकार की खींचातानी देख सकते हैं। यह प्रवृत्ति संविधान और लोकतंत्र को 1975 की इमरजेंसी जैसा झटका भी दे सकती है।     
 
 
तो राजनीति के खेल में पिट रही शासन-प्रशासन, संवैधानिकता और लोकतंत्र गेंद राष्ट्रपति रूपी रेफ़री के फैसले का इंतजार कर रही है। खेल को संवैधानिक अंजाम तक पहुंचाइए और गेंद को राहत दीजिए राष्ट्रपतिजी। यदि न्यायिक दूध का दूध और पानी का पानी चाहिए तो भी सबसे प्रामाणिक संवैधानिक रास्ता यही होगा कि आप ही सुप्रीम कोर्ट के पास राष्ट्रपतीय प्रतिवेदन यानि प्रेसिडेंशियल रेफेरेंस भेजें। देश चाहता है कि अब आप चुप्पी तोड़ें।                                                                                                                                                  
 
 
 
 
 

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