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मेरे लिए तो आदर्श पुरुष रहे हैं डा. कलाम

डा. एपीजे अब्दुल कलाम जिस दिन राष्ट्रपति पद की शपथ ले रहे थे उस समय मेरी डयूटी राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा में थी। दिल्ली पुलिस की नौकरी करते हुए मैं बहुत से लोगों की सुरक्षा में रहा लेकिन उस दिन पता नहीं क्यों‍ मुझे लग रहा था कि आज जो आदर्श पुरूष देश के पहले नागरिक रूप में शपथ ले रहे हैं वह लोगों से बिल्कुल अलग हटकर हैं। मेरी अंर्तआत्मा से आवाज आई और कुछ शब्द‍ कविता के रूप मैंने महामहिम डा. एपीजे अब्दु‍ल कलाम के बारे में लिखा।
मेरे लिए तो आदर्श पुरुष रहे हैं डा. कलाम

बार-बार मेरे मन में एक ख्या‍ल आ रहा था कि जो कुछ मैंने लिखा है उसे उन तक कैसे पहुंचाया जाए। बड़ी हिम्म‍त करके मैंने उनके निजी सचिव को वह कविता दी। हिंदी में लिखी मेरी कविता डा. कलाम तक पहुंंची, फिर उसका अंग्रेजी अनुवाद हुआ। राष्ट्रपति  बने डा. कलाम को अभी एक सप्ताह भी नहीं हुआ था कि अचानक मेरे पास दिल्ली पुलिस के शीर्ष अधिकारियों का फोन आया आपको राष्ट्रपति  भवन बुलाया गया है। उस दिन मेरी ड्यूटी रात की थी और मैं सुबह आठ बजे ड्यूटी खत्म करके घर जा रहा था। सुरक्षा से जुड़े शीर्ष अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए थे कि आखिर कहीं कोई गलती तो नहीं हो गई।

मुझे रास्ते में पता चला और मैं तुरत राष्ट्रपति  भवन पहुंचा। मुझे बताया गया कि मुगल गार्डेन में डा. कलाम आपका इंतजार कर रहे हैं। मैं वहां पहुंचा तो मेरे कंधे पर हाथ रखकर उन्होंने कहा, बहुत अच्छा लिखते हो। फिर अपने सचिव से कहा कि शाम को चार बजे मिलने के लिए बुलाया जाए। उस दिन पहली बार मैं डा. कलाम से मिला था और मिलने के बाद मेरा रोम-रोम ऐसा उत्साहित हो गया कि उसे शब्दो में बयां नहीं किया जा सकता। डा. कलाम के व्यक्तित्व की पहली झलक मैंने उस दिन देखी जब वह पुरानी चप्पल पहनकर मुगल गार्डेन में टहल रहे थे।

मैं अंदर ही अंदर उत्साहित था कि शाम को मिलना है। ठीक चार बजे मैं मिलने पहुंचा। मेरा हाल-चाल जाना, फिर पूछा कहां के रहने वाले हो, मैंने कहा कि उत्तराखंड का। फिर उन्होने कहा कि कविताएं बहुत अच्छी लिखते हो। उत्तराखंड नया-नया राज्य बना था। वहां की सामाजिक स्थितियों के बारे में पूछते रहे। फिर पूछा कि कभी गंगा पर कुछ लिखा है मेरा जवाब था नहीं। डा. कलाम की एक-एक शब्द‍ इतना रोमांचित कर रहा था कि मिलने के बाद मेरे मन में ख्याल आया कि कुछ भी हो उनके व्यक्तित्व के बारे में मुझे लिखना चाहिए। फिर मैं कुछ दिनों के बाद छुट्टी लेकर रामेश्वरम गया। वहां उनके परिजनों से मिला। पुराने लोगों से उनके व्यक्तित्व के बारे में जाना। फिर 'आधार से शिखर तक’ किताब की रचना हो गई।

कविता के रूप में डा. कलाम की पहली जीवनी सामने आई।  मैं सरकारी नौकरी में था और देश के महामहिम को लेकर मैंने किताब लिख डाली थी। किताब छपने से पहले मैंने डा. कलाम को इसके बारे में बताया तो वह आश्चर्यचकित रह गए। फिर पूरी किताब उन्होने पढ़ी। उस पर लोगों से चर्चा की फिर उन्होंने कहा कि अब किताब प्रकाशित हो सकती है। तब मैंने कहा कि विभाग से मुझे स्वीकृति लेनी होगी। उन्होंने कहा, इसके लिए मैं बात करता हूं। मुझे जल्दी ही विभाग से स्वीकृति मिल गई। पुलिस महकमा देश के राष्ट्रपति  की सोच से खुश हो गया। पूरे राष्ट्र को उन पर गर्व है।

मेरी किताब छपकर आ गई। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत ने उस पुस्तक का विमोचन किया।
आज मैं गदगद हूं और डा. कलाम ने जो मुझे रास्ता दिखाया उसी पर चलने की कोशिश कर रहा हूं। ऐसे व्यक्तित्व को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके बारे में जितना भी लिखा जाए कम हैं। अंत में इतना ही कहना चाहूंगा-
'जीवन रहा सदा समर्पित, दिया देश को महाविज्ञान।
लटके हुए केशों में सजे हुए, आदर्श व्यक्तित्व हैं एक महान॥
आदर्श व्यक्तित्व हैं एक महान, आप शिखर पर पहुंचे हैं।
विकसित हो यह देश हमारा, यह ऐलान शपथ ले करते हैं॥’

(लेखक दिल्ली पुलिस से सेवानिवृत हैं और जब डा. कलाम राष्ट्रपति बने उस समय राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा में तैनात थे)

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