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सर्जिकल स्ट्राइक की छाया में ब्रिक्स की बैठक

ब्रिक्स देशों यानी ब्राजील, रूस, भारत, दक्षिण अफ्रीका और चीन के शासनाध्यक्षों की बैठक 15 और 16 अक्टूबर को भारत के समुद्र तटीय राज्य गोवा में होने जा रही है और भारत इस बैठक की अध्यक्षता करेगा। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ब्राजील के राष्ट्रपति माइकल टेमर और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा ब्रिक्स शासनाध्यक्षों के इस आठवें सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।
सर्जिकल स्ट्राइक की छाया में ब्रिक्स की बैठक

खास बात यह है कि भारत ने सार्क सम्मेलन के स्‍थगित होने की भरपाई इस सम्मेलन के जरिये करने की कोशिश की है। पाकिस्तान के अलावा सार्क के अन्य सदस्य देशों के शासन प्रमुख को उसने इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया है। इसके लिए बिम्सटेक देशों, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और थाइलैंड के अलावा अफगानिस्तान और मालदीव को उसने अलग से बुलावा भेजा है। इन सभी देशों के शासन प्रमुख ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।

ब्रिक्स की यह बैठक पाकिस्तान सीमा में भारत के सर्जिकल स्ट्राइक, रूस-पाक सैन्य अभ्यास और पाकिस्तानी आतंकवादी मसूद अजहर के मुद्दे पर चीन के हालिया रवैये की छाया में हो रही है। इसे देखते हुए भारत के लिए यह जरूरी है कि वह रूस और चीन को लेकर एक सुनिश्चित रणनीति के तहत कदम उठाए। यह उचित ही है कि भारत ने रूस-पाक सैन्य अभ्यास को लेकर रूस के सामने अपनी नाराजगी जता दी है। हालांकि वह खुद भी चीन के साथ इस तरह का अभ्यास करता है मगर यह बात समझने की जरूरत है कि रूस के साथ भारत का संबंध हथियारों की खरीद-बिक्री से कहीं आगे का संबंध्‍ है। 1971 के बाद से दोनों देशों के संबंधों में हमेशा एक गर्माहट रही है जैसी किसी और देश के साथ नहीं रही। अब तो यह संबंध उच्च तकनीक की साझेदारी का रूप से ले चुकी है और दोनों देश मिलकर उच्च प्रौद्योगिकी वाली कई परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। भारत रूस से अपनी बात बिना किसी तरह की गलतफहमी पैदा हुए कह सकता है। यह सही है कि हाल में भारत के रिश्ते अमेरिका तथा पश्चिमी देशों के साथ प्रगाढ़ हुए हैं मगर रूस को भी यह समझना होगा कि ऐसा क्यों हुआ है। कई परियोजनाओं में रूस को जो तेजी दिखानी चाहिए थी वैसी उसने नहीं दिखाई। भारत के साथ साझेदारी में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने में भी अपेक्षित गति नहीं दिखाई दी। इसके बावजूद सच यही है कि उच्च संवेदी उपकरणों के मामले में दोनों देशों की साझेदारी उस स्तर पर है जहां भारत के और किसी देश से इस स्तर की साझेदारी न तो है और न ही निकट भविष्य में होने की संभावना है। वैसे भी भारत ने दूसरे देशों से अपने संबंधों को आगे बढ़ाने के दौरान भी हमेशा रूस की भावना को ध्यान में रखा है इसलिए अगर पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास को लेकर यदि वह रूस से नाराजगी जताता है तो यह पूरी तरह जायज है। ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के सामने भारत का पक्ष रखने में संकोच नहीं करना चाहिए।

दूसरी अहम बाद चीन के साथ भारत के संबंध हैं। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि अमेरिका समेत किसी भी दूसरे देश के साथ अपने रिश्ते प्रगाढ़ करने के दौरान हमने हमेशा चीन के हितों को भी ध्यान में रखा है और उससे हमने अपने रिश्ते कमोबेश ठीक ही रखे हैं। ऐसे में चीन को भी भारत के साथ उसी प्रकार का संबंध निभाना चाहिए। आतंकवाद के मुद्दे पर उसका रवैया निराश करने वाला है। उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि सुरक्षा परिषद का स्‍थाई सदस्य होने के नाते उसकी जिम्मेदारी भी बड़ी है। पाकिस्तान के साथ दोस्ती निभाने के कारण वह आतंक को प्रश्रय दे, ऐसा कोई कदम उसे नहीं उठाना चाहिए। भारत के सभी पड़ोसी देशों ने पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर अपना समर्थन दिया तो चीन को उसका विरोध क्यों करना चाहिए?

जहां तक ब्रिक्स सम्मेलन का सवाल है तो यह संगठन अब सिर्फ आर्थिक साझेदारी से कहीं आगे बढ़ चुका है। ब्रिक्स बैंक दुनिया में विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का एक सशक्त विकल्प बनने की क्षमता रखता है और इसमें चीन की बड़ी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। इस बार ब्रिक्स का नया अर्थ गढ़ा गया है और वह है बिल्डिंग रिस्पॉन्सिव, इन्‍क्लूसिव एंड कन्‍क्लूसिव सॉल्यूसंश। यानी ब्रिक्स के सदस्य देश मिलकर अब समस्याओं को रिस्पॉन्सिव, इन्‍क्लूसिव और कन्‍क्लूसिव समाधान निर्मित करेंगे। इसमें बिम्सटेक के सदस्य देशों के साथ अफगानिस्तान और मालदीव को भी हिस्सेदार बनाने की कोशिश होगी। कुल मिलाकर ब्रिक्स सम्मेलन से सकारात्मक परिणाम मिलने की ही उम्मीद है।

(लेखक देश के पूर्व विदेश सचिव हैं। यह आलेख सुमन कुमार से बातचीत पर आधारित है।)

 

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