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चीनी मिलों को राहत और किसानों की मुसीबत

केंद्र सरकार गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य बढ़ाने की बजाय चीनी मिलों को ब्या‍ज मुक्त‍ कर्ज, एक्स‍पोर्ट ड्यूटी में राहत और एथनॉल पर एक्सा‍इज ड्यूटी में छूट जैसी रियायतें देने वाली केंद्र सरकार ने अब चीनी मिलों को फायदा पहुुंचाने का नया रास्ता निकाला है। अब गन्ना किसानों को सरकार की ओर सीधे सब्सिडी दिए जाने की पहल की जा रही है जो गन्ना किसानों का ध्यान उनके बकाया भुगतान और पिछले कई साल से नहीं बढ़े दाम से हटाने की साजिश है।
चीनी मिलों को राहत और किसानों की मुसीबत

केंद्र सरकार गन्ना किसानों को प्रति क्विंटल 47.50 रूपये का प्रत्यक्ष भुगतान उनके खाते में करने की योजना बना रही है। लिहाजा चीनी मिल मालिकों को 230 रूपये प्रति क्विंटल के उचित एवं लाभकारी मूल्य में केवल 182.50 रूपये का भुगतान किसानों को करना होगा। इस तरह से सरकार द्वारा मिल मालिकों को सीधे तौर पर करीब 47 रूपये प्रति क्विंटल की राहत प्रदान करने की तैयारी है जो खुलेआम किसान विरोधी है। सवाल है कि सरकार मिल मालिकों का भार वहन करने को तैयार है लेकिन गन्ने का दाम बढ़ाकर किसानों को राहत प्रदान करने को तैयार नहीं है। सरकार की दोहरी नीति के कारण गन्ना किसान खेती करने को तैयार नहीं हो रहा है। एसोचैम की एक रिपोर्ट बताती है कि किसान बढ़ते कर्ज, चीन मिल मालिकों से लगभग 4700 करोड़ रूपये का पिछला भुगतान न होने और गन्ने का उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण दूसरी फसलों की ओर मुड़ रहे हैं।

केंद्र सरकार हो चाहे उत्तर प्रदेश की सरकार दोनों का रवैया एक जैसा है। दूसरी बात चीनी मिले कई बार देर से पेराई की शुरूआत करती है जिसके चलते किसानों को अपना गन्ना कोल्हू मालिकों को औने-पौने दामों पर बेचना पड़ता है। कोल्हू मालिक किसान को नगद पेमेंट करते हैं इसलिए मजबूरन किसान उन्हें सस्ते दाम पर गन्ना बेच रहे हैं। पिछले दो सालों से गन्ने का दाम सिर्फ 10-10 रूपये ही बढ़ाया जा रहा है लेकिन चीनी मिल मालिकों को एक मुश्त 47.50 रूपये का राहत दिया जा रहा है। यह कहां का न्याय है। सरकार की ऐसी नीतियों के कारण देश के अंदर कृषि संकट और ग्रामीण भारत का संकट निरंतर गहरा होता जा रहा है और सरकार की निरंतर उपेक्षा से किसान कर्ज में डूब रहा हैं और आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। ओले और सूखे की वजह से किसानों को हुई भीषण क्षति की भरपाई तो दूर रबी और खरीफ फसलों के उत्पादों के दाम भी न बढ़ाकर केंद्र सरकार ने किसानों को निराश ही किया है। देश के लगभग 320 जिले सूखे की चपेट में हैं। चुनावी घोषणा पत्र में भाजपा ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह किसानों को समर्थन मूल्य के अलावा 50 फीसदी का लाभकारी मूल्य भी देगी। लेकिन सरकार अपने वादे से मुकर चुकी है। सरकार का यह कदम विश्व व्यापार संगठन से प्रेरित है। इस सरकार द्वारा फसलों के दाम न बढ़ाया जाना, सब्सिडी समाप्त करना तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को 25 फीसदी तक सीमित रखने जैसे कदम भी विश्व व्यापार संगठन के दबाव में ही उठाए गए हैं।

(लेखक राज्यसभा सदस्य हैं )

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