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नेट के नए महारथी

इंटरनेट की सामग्री पर रचनात्मक और फूहड़ता दोनों हैं, नेटफ्लिक्स आने से क्या यह ट्रेंड बदलेगा
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यहां फिल्म देखने का कोई तयशुदा वक्त नहीं है। जब जिसे फुर्सत मिले अपनी सुविधा से फिल्म देख सकता है। यहां फिल्मी दुनिया के सिर्फ मंझे हुए लोग आएंगे यह भी जरूरी नहीं है। बड़े नामी कलाकारों के साथ हो सकता है किसी नौसिखिए की फिल्म भी वहीं कहीं दिखाई दे जाए। यहां ऐसे तमाम लोग हैं जिनकी हसरत बस एक बार फिल्म बनाने की थी। ऐसे लोगों ने भी फिल्में बनाईं और इस मंच के जरिए कई लोगों ने यह फिल्म देख ली। उनके संतोष के लिए बस इतना ही काफी है। यह यूट्यूब है जहां तमाम वीडियो के बीच शानदार फिल्में भी हैं जिन्हें खोज-खोज कर दर्शक देखते हैं। लेकिन भारत में नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम की दस्तक के बाद हो सकता है यह कंटेंट की परिभाषा को पूरी तरह बदल दें। अभी तो यूट्यूब की सफलता इसी से आंकी जा सकती है कि भारत का पारंपरिक फिल्म उद्योग भी इसमें रुचि ले रहा है। बड़े कलाकार या तो ऐसी फिल्मों के निर्माता बन रहे हैं या खुद इनमें काम कर रहे हैं। कई जगहों पर शॉर्ट फिल्म के भी उत्सव होते हैं और यह फिल्में अवॉर्ड जीतती हैं। भले ही यह सेरोगेसी एडवर्टाइजिंग का उदाहरण हो लेकिन शराब के एक प्रसिद्ध ब्रांड द्वारा शॉर्ट फिल्मों को एक मंच उपलब्ध कराने की गरज से लार्ज शॉर्ट फिल्म चैनल यूट्यूब है। लार्ज शॉर्ट डॉट कॉम पर हर हफ्ते शॉर्ट ऑफ द वीक की घोषणा होती है और लगभग सभी बेहतरीन शॉर्ट फिल्मों की यूट्यूब लिंक इस पर उपलब्ध हैं।

टॉकिंग बुक्स कंपनी से जुड़े दीपक नांगलिया कहते हैं, 'इंडिविजुअल के लिए यूट्यूब अच्छा साधन है। पर इससे आप रेवेन्यू जनरेट नहीं कर सकते हैं। मतलब इसे जनरेट करना इतना आसान नहीं होता है। पर बस यह संतुष्टि रहती है कि जो काम आपने किया उसे लोगों तक पहुंचा पाए और पैसा इसमें आड़े नहीं आया। क्योंकि फिल्म बनाने की लागत कम तो की जा सकती है, खत्म नहीं की जा सकती। यदि अच्छी फिल्म बनाना है तो कहानी, संगीत, संपादन के लिए अच्छे लोग चाहिए ही होते हैं।’ दरअसल अब भारत में डिजिटल क्रांति ने न सिर्फ पैर पसारे हैं बल्कि पैठ जमा ली है। अब फिल्म को 70 एमएम के परदे की दरकार नहीं है। वैसे ही जैसे कहानी कहने के लिए जरूरी नहीं है कि डीजी कैम से शूट किया जाए। यह बात मोबाइल कैमरे से भी शूट कर दिखाई जा सकती है। अब बेहतरीन आवाज के लिए डॉल्बी साउंड के बजाय बस बात समझाने लायक आवाज आ जाए यही बहुत है। लेकिन फिर भी यूट्यूब पर शानदार क्वालिटी वाली फिल्में बन रही हैं। सुजॉय घोष ने जब अहिल्या नाम से शॉर्ट फिल्म बनाई तो लगा कि कम संवाद और चंद मिनटों में ऐसी फिल्में भी बनाई जा सकती हैं। इस फिल्म में राधिका आप्टे ने अभिनय किया था। कई फिल्मों की पटकथा लिखने वाले और अब वेबसीरीज लिख रहे उपेंद्र सिधये कहते हैं, 'पहले शॉर्ट फिल्म का मतलब होता था, जिसको थोड़ा सा भी शौक है वह अपनी फिल्म बना ले। पर अब बड़े-बड़े सितारे इसके लिए काम कर रहे हैं। इंटीरियर कैफे में नसीरुद्दीन शाह ने काम किया है। आउच मनोज वाजपेयी के लिए जानी जाती है और चटनी को तो टिस्का चोपड़ा ने प्रोड्यूस भी किया और काम भी किया। बड़े स्टार लेने से यूट्यूब पर ज्यादा शेयर होते हैं, लाइक्स मिलते हैं।’ हालांकि अभी तक यूट्यूब कमाई के लिहाज से वैसा प्लेटफॉर्म नहीं बना है, जैसा प्रसिद्धि के मामले में बन गया है। कुछ पैसा आता जरूर है लेकिन वह फिल्म की लागत के मुकाबले कम होता है। अब जब नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार जैसे माध्यम भी मोबाइल पर 'देखने-सुनने’ यानी फिल्म या किसी और तरह का कंटेंट उपलब्ध करा रहे हैं तो यूट्यूब को अपने कंटेंट की धार और तेज करने की जरूरत है। 'डीआईवाय’ डू इट योरसेल्फ ने फिल्म और इससे जुड़े कई माध्यम के दरवाजे सभी के लिए खोल दिए हैं। बहुत से लोग घर बैठे फिल्म बना कर यूट्यूब पर अपलोड कर देते हैं। तो यही वजह है कि मोबाइल से लोगों तक पहुंच बनाने वालों की कमी नहीं है। टीवी पर सुकून से धारावाहिक देखने वाली पीढ़ी के मुकाबले एक ही बार में एक सीजन को मोबाइल पर डाउनलोड कर अपनी सुविधा से मनपसंद धारावाहिक देखने वाले बढ़ रहे हैं। जाहिर सी बात है ऐसे में बाजी नए खिलाडिय़ों के हाथ में रहने की संभावना ज्यादा है।      

नेटफ्लिक्स की दस्तक   ‌

दुनिया की सबसे बड़ी वीडियो स्ट्रीमिंग देने वाली सेवा नेटफ्लिक्स ने भारत में भी दस्तक दे दी है। अब अपने मनपसंद कार्यक्रम जहां चाहें वहां देखें, स्मार्ट फोन पर, स्मार्ट टेलीविजन पर, प्लेस्टेशन या फिर एपल टीवी पर ही। इसके लिए कम से कम 500 रुपये ग्राहक को चुकाने होंगे। यह रकम एक बार के कार्यक्रम या फिल्म के लिए होगी। नेटफ्लिक्स पर भारतीय लेखकों से किसी विषय पर एक सीजन यानी दस या उससे ऊपर के एपिसोड लिखवाए जा रहे हैं। अमेरिका में नेटफ्लिक्स रेटिंग होती है जिससे शो की लोकप्रियता पता चलती है। नेटफ्लिक्स पर पुख्ता इंतजाम है कि बच्चे वयस्कों की कोई सामग्री न देख सकें। अभी नेटफ्लिक्स पर फिलहाल बहुत ज्यादा भारतीय कंटेंट नहीं है लेकिन धीरे-धीरे यह पैठ बना रहा है। बॉलीवुड की कुछ शानदार हिट फिल्मों से इसका खाता खुल गया है। नेटफ्लिक्स अब अमेजन के साथ भारत में और विस्तार कर रहा है। भारतीय बाजार में 2 हजार करोड़ के निवेश की खबर ने अलग तरह की सुगबुगाहट पैदा कर दी है। यह रकम कंटेंट जनरेशन और उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए खर्च किए जाने का अनुमान है। अमेजन प्राइम वीडियो ने दिसंबर में लॉन्च होने के बाद अब तक 95 लाख लोगों को अपने साथ जोड़ लिया है। नेटफ्लिक्स के पास अभी इसकी आधी संख्या भी नहीं है।

अमेजन प्राइम वीडियो अपने उपभोक्ताओं को विज्ञापनों से मुक्त ऑन डिमांड सेवा सालाना मात्र 499 रुपये के एवज में देगा जबकि नेटफ्लिक्स के लिए एक महीने की सेवा के लिए ही 500 रुपये चुकाने होंगे। दोनों सेवा प्रदाताओं का जोर स्ट्रीमिंग के लिए कॉपी-पेस्ट कंटेंट के बजाय ओरिजनल कंटेंट पर है। जाहिर सी बात है यदि भारत में टीवी जैसे माध्यम की लत पड़ चुके दर्शकों को अपने पास तक खींचना है तो कुछ नया तो होना ही चाहिए। यही वजह है कि नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम ने भारत में बहुत से लेखकों को खोजने का काम शुरू किया है और उनसे एक सीजन के लिए नया और दर्शकों को बांधे रखने वाला कंटेंट लिखने को कहा गया है। नेटफ्लिक्स पर सारे सीजन यानी 10 या 12 एपिसोड एक साथ लोड कर दिए जाते हैं और फिर दर्शक अपनी सुविधा से उन्हें देखते रहते हैं। नई तरह की भारतीय कहानियों पर भी जोर है। इंडियन ओरिजिनल सीरीज में विक्रम चंद्रा के उपन्यास सेक्रेड गेम्स को चुना गया है। नेटफ्लिक्स पिक्चराइजेशन में भी कोई समझौता नहीं चाहता।

 

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