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गुपचुप नहीं, अब खुलकर दोस्ताने का दौर

नरेन्द्र मोदी की सरकार ने इस्राइल के साथ भारत के गर्मजोशी भरे संबंधों को खुलेआम स्वीकार कर नई पहल की
इस्राइली पीएम नेतन्याहू के साथ मोदी

अरब और भारत के मुसलमानों की नाराजगी से बचने के लिए भारत ने इस्राइल के साथ अपने जिन संबंधों को छिपा कर रखा था अब वे धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि नरेन्द्र मोदी किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली इस्राइल यात्रा पर रवाना होने वाले हैं। इस यात्रा में रक्षा सौदों पर सबसे अधिक जोर रहेगा। मोदी की इस यात्रा का राजनीतिक महत्व इस बात में छिपा है कि हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजों को देखते उन्हें कथित मुस्लिम तुष्टीकरण की परवाह करने की जरूरत नहीं है। इसलिए वे फिलिस्तीन की यात्रा पर नहीं जा रहे हैं, यह एक ऐसा फैसला है जो पश्चिम एशिया के दो देशों के साथ भारत के रिश्तों को नए सिरे से दिखाता है।

मोदी की यात्रा, जिसे ऐतिहासिक करार दिया जा रहा है, एक रिश्ते की सार्वजनिक स्वीकारोक्ति है जिसे उनके पूर्ववर्तियों ने प्रोत्साहित तो किया मगर इसका सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया। इस उम्मीद के उलट कि मोदी अपनी यात्रा के दौरान फिलिस्तीन में भी रुक सकते हैं और जैसा कि कई मंत्रियों ने अतीत में किया भी है, मोदी सिर्फ इस्राइल की यात्रा पर जा रहे हैं। यह कई वर्षों के गोपनीय रिश्तों का चरम बिंदु है क्योंकि भारत ने करीब चार दशकों तक इस्राइल को मान्यता नहीं दी थी। दिवंगत प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने जब इस्राइली युद्ध हीरो जनरल मोशे दयान के साथ गोपनीय भेंट की थी और इसका भंडाफोड़ हुआ था तब उन्हें कटु आलोचना का सामना करना पड़ा था। कई साल के बाद मुंबई में इस्राइली महावाणिज्यदूत को इसलिए देश छोड़ने के लिए कहा गया था क्योंकि उन्होंने भारत-इस्राइल कूटनीतिक संबंधों पर बयान दिया था।

हालांकि इस तरह की अधिकांश बातें शीत युद्ध के बाद समाप्त हो गईं, लेकिन करगिल की लड़ाई के बाद भारत ने जब अपनी रक्षा खरीद में विविधता लाने का फैसला किया तो यह रिश्ता फलना-फूलना शुरू हो गया। दरअसल इसका अर्थ रूस से दूरी बनाना भी था क्योंकि उसके साथ लगातार परेशानियां आ रही थीं। पहले अटल बिहारी वाजपेयी और फिर मनमोहन सिंह सरकार के दस साल में यह रिश्ता फलता-फूलता रहा और अब जबकि भारत अपने रक्षा आधुनिकीकरण की योजना पर दौड़ लगा रहा है, नरेन्द्र मोदी इस दिशा में बड़ी पहल करने जा रहे हैं।

हालांकि रूस अब भी रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन पिछले कुछ साल में, अधिकांश नई खरीद अन्य जगहों से हो रही है। इसमें अमेरिका नंबर पहला है, रूस प्रभावशाली रूप से नंबर दो पर है, इस्राइल तीसरे पर, फ्रांस नंबर चार और ब्रिटेन पांचवें नंबर पर है। इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि ठुकराया हुआ रूस बाजार की तलाश में पाकिस्तान सहित अन्य देशों की ओर देख रहा है।

भारत इस्राइल से सालाना एक अरब डॉलर के रक्षा हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर खरीदता है। इनमें मूल रूप से राडार, मिसाइल, ड्रोन, रात में काम आने वाले उपकरण, यूएवी और सॉफ्टवेयर हैं। साथ ही भारत रूसी दौर के मिग 21, इस्राइली सॉफ्टवेयर के साथ खरीद रहा है जिसे लेकर रूस नाखुश है। वैसे इस्राइल बड़े जहाज या अन्य बड़े उपकरण जिन्हें भारत दूसरे देशों से खरीद रहा है, के धंधे में नहीं है। अभी तक भारत ने इस्राइल से दस अरब डॉलर के रक्षा उपकरण खरीदे हैं। भारत संयुक्तपरियोजना के रूप में शस्त्र सज्जित ड्रोन विकसित करना चाहता है जो युद्ध की स्थिति में टिकाऊ साबित हो और इस दिशा में इस्राइल के साथ काम चल रहा है।

आगामी मोदी यात्रा के दौरान, रक्षा सौदों की अनुमानित कीमत लगभग दो अरब डॉलर हो सकती है। इनमें मध्यम श्रेणी की सतह-से-हवा (एसएएम) में मार करने वाली मिसाइलें और करगिल युद्ध के दौरान भारत के बेहद काम आए बराक मिसाइलों के उन्नत संस्करणों का सौदा शामिल है। दरअसल, उन संकटपूर्ण दिनों में इस्राइल ने उन्हें अपने भंडार में से भारत पहुंचाया था। बराक के उन्नत संस्करण के लिए भारत 17 हजार करोड़ रुपये की अनुमानित कीमत के आदेश दे रहा है। इसमें नौसेना संस्करण की मिसाइलें भी शामिल है जो भारत अपने स्वदेशी विमानवाही पोत आईएनएस विक्रांत के लिए खरीद रहा है। यह पोत अभी निर्माणाधीन है। उन्नत मिसाइल खरीद से संबंधित करार पर छह अप्रैल को दस्तखत हो चुके हैं।

केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी की किसी भी देश की यात्रा से पहले ही उस देश के साथ रक्षा सौदों को अंतिम रूप देने या दस्तखत करने में कोई हिचक नहीं दिखाई है और न ही इसे छिपाने का प्रयास किया है। ऐसा पहले अमेरिका, फ्रांस या रूस के साथ हो चुका है। इसलिए तेल अवीव में इस्राइली नेतृत्व के साथ बैठक से पहले दोनों देशों में होने वाले रक्षा सौदों में कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है।

थल और नौसेना के साथ-साथ सरकार भारतीय वायु सेना पर भी ध्यान दे रही है। वायुसेना के पास तीन फाल्कन राडार (एयर बॉर्न वार्निंग सिस्टम या कहें अवाक्स) हैं जो हवा के जरिए जमीन और समुद्र की निगरानी करता है और ऐसे दो सिस्टम की खरीद इस्राइल से और होनी है।

रूस हो या पश्चिम, कल के आपूर्तिकर्ता आज के सहयोगी हैं। इस साल के दूसरे हिस्से में, मोदी की इस्राइल यात्रा के समाप्त होने के बाद भारतीय वायुसेना इस्राइल द्वारा आयोजित होने वाले बहुपक्षीय वायु अभ्यास में पहली बार हिस्सा लेगी। इसमें भारत और इस्राइल के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस और इटली भी शामिल होंगे। संक्षेप में कहें तो इस्राइल अब भारत के लिए अछूत नहीं रहा। ये अब भारत का बड़ा कारोबारी साझीदार है और यह कारोबार रक्षा और सुरक्षा का है।

(लेखक वरिष्ठपत्रकार हैं और रक्षा व विदेश मामलों पर लिखते हैं)

 

जाधव किस कूटनीति के शिकार

कराची के डॉन अखबार की रिपोर्ट कहती है कि जासूसी के आरोप में पाकिस्तानी जेलों में 13 भारतीय, जबकि भारत में 30 पाकिस्तानी बंद हैं। ऐसे में बिना किसी स्वीकारोक्ति के यह कहना कि हर कोई जासूसी में लिप्त है, कितना गंभीर माना जा सकता है? आतंकवाद को बढ़ावा देने के भारत के आरोप के खिलाफ वर्षों से जूझ रहे पाकिस्तान को कुलभूषण जाधव के कथित जासूसी के मामले में अब भारत पर प्रत्यारोप लगाने का एक मौका मिला है। वह आसानी से इस मौके को नहीं गंवाना चाहेगा। न ही भारत इस मामले में हार मानेगा क्योंकि वह पिछले नौ महीनों से कश्मीर घाटी की सड़कों पर हो रहे प्रदर्शनों से निबटने के मामले में घरेलू और विदेशी आलोचना से ध्यान हटाना चाहता है।

शाश्वत असहज पड़ोसी अपने पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों के लंबे अवरोध में उलझे हैं। भारत जाधव को बचाने के लिए अपनी ओर से सारे प्रयास करेगा क्योंकि वह इसे पूर्व नियोजित हत्या करार दे रहा है जबकि पाकिस्तान इसलिए पीछे नहीं हटना चाहता क्योंकि इस मामले को वह मुंबई आतंकी हमले में अजमल कसाब को फांसी देने जैसी घटनाओं के बदले के रूप में देखता है। दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध 2008 के मुंबई आतंकी हमले के बाद से सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। भारत ने समुद्री सुरक्षा पर विचार के लिए तय बैठक स्थगित कर दिया। इस मामले में भारत में पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने पाकिस्तान के उस मूड को ही दर्शाया कि 'देखो, हमने तुम्हें पकड़ लिया।’ ऐसा ही रुख उनके रक्षा मंत्री ख्वाजा असीफ ने भी दिखाया जिन्होंने जाधव को गुजरात में 2002 की सांप्रदायिक हत्याओं और समझौता एक्सप्रेस धमाके तथा अन्य मामलों से जोड़ दिया। मगर इस्लामाबाद को भारत तथा विश्व समुदाय द्वारा उठाए जाने वाले कई सवालों का जवाब देना है। जाधव एक गैर सैनिक हैं जो कि ईरान में चाबहार बंदरगाह परियोजना में वैध तरीके से काम कर रहे थे। इसकी पुष्टि ईरानी अधिकारियों से की जा चुकी है। इस परियोजना में भारत-ईरान और अफगानिस्तान सहयोगी हैं। इसमें से पाकिस्तान को अनिवार्य रूप से बाहर रखा गया है और इसलिए पाकिस्तान के लिए इसे पसंद करने की कोई वजह नहीं है। निस्संदेह पाकिस्तान ने पिछले साल जाधव को पकड़ने के बाद यह आरोप लगाकर कि वह ईरान से ऑपरेट कर रहे थे, ईरान के साथ अपने संबंधों को भी नुकसान पहुंचा लिया है। वो भी तब जबकि ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी राजकीय यात्रा पर थे। वैसे पाकिस्तान का एक लक्ष्य पूरा हो गया है। चाबहार पोर्ट का काम धीमा हो गया है जबकि चीन-पाकिस्तान ग्वादर आर्थिक गलियारे का काम बहुत आगे निकल चुका है।

भारत कुलभूषण जाधव को बचाने के लिए एक और आक्रामक कूटनीतिक प्रयास करने की तैयारी में है। इसके लिए वह जाधव के खिलाफ पेश आरोप पत्र की प्रति हासिल होने के इंतजार में है। वैसे भारत और पाकिस्तान एक दूसरे के बारे में और दुनिया से बातें कर रहे हैं न कि एक दूसरे से बात कर रहे हैं।

दुनिया को यह जानने की जरूरत है कि जाधव को अफगान तालिबान ने पाकिस्तानी जमीन का इस्तेमाल कर किडनैप किया था। जाधव को बाद में आईएसआई को बेच दिया गया। इस्लामाबाद में उस समय के जर्मन राजदूत गुंटर मुलक ने आधिकारिक रूप से यह बात कही है। पिछले दिसंबर में खुद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विदेश और रक्षा मामलों के सलाहकार सरताज अजीज यह मान चुके हैं कि जाधव के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं हैं। ऐसे में क्या यह असैन्य सरकार पर सेना के प्रभुत्व का मामला है? दूसरी बात, पाकिस्तान ने एक असैन्य और विदेशी नागरिक जाधव के मामले की सुनवाई सैन्य अदालत में की और इस प्रकार किसी भी असैन्य अदालत में अपील के प्रति खुद को तकनीकी रूप से सुरक्षित कर लिया।

रणनीतिक विश्लेषक और पूर्व भारतीय राजनयिक एमके भद्रकुमार, जो कि विदेश मंत्रालय में पास्तिान से जुड़े मामलों को देखते रहे हैं, का कहना है कि जाधव के मामले की सुनवाई के लिए सैन्य अदालत की राह चुनने के कारण मामले में सुप्रीम कोर्ट का दखल मुश्किल हो गया है। हालांकि भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है कि जाधव सिर्फ अपने माता-पिता के नहीं बल्कि पूरे देश के बेटे हैं और उनके लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट में सबसे अच्छा वकील खड़ा करेगी।

 

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