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बिजली खूब, फिर भी मिल रही महंगी

मध्यप्रदेश में कई सरकारी बिजलीघर ठप, निजी क्षेत्र से कई गुना अधिक दाम में खरीदी जा रही बिजली, शिवराज सरकार पर उठ रहे सवाल
क्षमता से बेहद कम उत्पादन कर रहे हैं कई ब‌िजलीघर

बिजली की किल्लत राज्य सरकारों की परेशानी का कारण बनी रहती है। लेकिन देश में एक राज्य ऐसा है जिसके लिए बिजली का अत्यधिक उत्पादन मुश्किलें खड़ी कर रहा है। इस मामले में एमपी गजब है। नदियों पर अंधाधुंध बिजलीघर बनाने का जो सिलसिला मध्यप्रदेश में 70 के दशक से शुरू हुआ, वह न्यूक्लियर, थर्मल और सोलर पावर के दौर में भी बदस्तूर जारी है। बिजलीघरों की उत्पादन क्षमता मांग को मीलों पीछे छोड़ चुकी है। फिर भी उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है।

फिलहाल मध्यप्रदेश में 17500 मेगावाट से अधिक बिजली उत्पादन की क्षमता है, जबकि गर्मियों में भी औसत मांग सिर्फ 7-8 हजार मेगावाट के आसपास रहती है। भरपूर बिजली उपलब्ध होने के बावजूद राज्य सरकार प्राइवेट बिजली कंपनियों से महंगी दरों पर खरीद के सौदे कर चुकी है। जबकि दूसरी तरफ मांग से अधिक उत्पादन क्षमता के चलते राज्य के कई बिजलीघर ठप पड़े हैं या फिर नाममात्र की बिजली पैदा कर रहे हैं।

ऊर्जा के स्रोतों में निवेश और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के बीच ऐसा भारी असंतुलन शायद ही कहीं देखने को मिले। मध्यप्रदेश में बिजली के नाम पर चल रहे गोरखधंधे उजागर होने लगे हैं। आम आदमी पार्टी की मध्यप्रदेश इकाई ने शिवराज सरकार पर प्राइवेट कंपनियों के साथ गैर कानूनी तरीके से बिजली खरीद के समझौते (पीपीए) कर सरकारी खजाने को करीब 50 हजार करोड़ रुपये के नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है। आप के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल बताते हैं कि बिजली खरीद के बारे में सूचना के अधिकार के तहत कई चौंकाने वाली जानकारियां मिली हैं। राज्य सरकार ने 5 जनवरी, 2011 को एक ही दिन जबलपुर और भोपाल में छह बिजली कंपनियों के साथ बिजली खरीद के एग्रीमेंट कर लिए, जबकि भारत सरकार की बिजली खरीद नीति और राज्य सरकार के बिजली खरीद कानून के तहत ऐसे सौदे प्रतिस्पर्धी बोली के आधार पर ही किए जा सकते हैं।

अग्रवाल के मुताबिक, इन समझौतों के तहत राज्य सरकार बिजली खरीदे या न खरीदे, उक्त कंपनियों को फिक्स्ड चार्ज के तौर पर 25 साल तक सालाना 2163 करोड़ रुपये का भुगतान करना ही पड़ेगा। आश्चर्यजनक है कि समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले दो अधिकारी गजराज मेहता और संजय मोहसे उस दिन संबंधित पद पर पदस्थ ही नहीं थे। तीन अधिकारियों एबी बाजपेयी, पीके सिंह और एनके भोगल ने एक ही दिन भोपाल और जबलपुर में समझौतों पर हस्ताक्षर किए। यह साफ बताता है कि समझौते फर्जी हैं। झाबुआ पावर से खरीदी गई 2.54 करोड़ यूनिट के लिए 214.20 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। यानी बिजली खरीद की दर 84.33 रुपये प्रति यूनिट आई। निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीदने के लिए खुद के बिजलीघरों को बंद रखने के आरोप भी शिवराज सिंह चौहान की सरकार पर लग रहे हैं।

नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने इसे देश का सबसे बड़ा बिजली घोटाला करार दिया है। उनका कहना है कि जब तक इस घोटाले की जांच के लिए आदेश नहीं हो जाते, वह अपने बिजली बिल का भुगतान नहीं करेंगे। आम आदमी पार्टी ने भी राज्य सरकार को इस मुद्दे पर घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

इस बीच, मध्यप्रदेश की बिजली कंपनियों को राज्य विद्युत नियामक आयोग से बिजली दरों में औसतन 9.48 फीसदी बढ़ोतरी करने की अनुमति मिल गई है। नए टैरिफ के अनुसार, सबसे ज्यादा 13.32 फीसदी महंगी बिजली किसानों को दी जाएगी। घरेलू बिजली 7.8 फीसदी महंगी हुई है। मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी का कहना है कि रीवा में बनने जा रहे एशिया के सबसे बड़े सोलर पावर प्लांट से दिल्ली मेट्रो को 2.97 रुपये प्रति यूनिट की दर पर बिजली मिलेगी, लेकिन प्रदेश की जनता बिजली के लिए 7.50 से 9.50 रुपये प्रति यूनिट चुकाने को मजबूर है।

नरसिंहपुर निवासी किसान नेता विनायक परिहार कहते हैं कि जो राज्य दिल्ली तक सस्ती बिजली पहुंचा सकता है, वहां की जनता तीन गुना महंगी बिजली खरीदने के लिए बाध्य है। जबकि बिजली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए मध्यप्रदेश के लोगों ने बड़ी कीमत चुकाई है। बिजली और सिंचाई के नाम पर नर्मदा घाटी में 277 बांध बन चुके हैं। यहां सरदार सरोवर जैसे छह हाइड्रो प्रोजेक्ट हैं। इन बांधों के निर्माण के लिए हजारों लोगों को उजाड़ा गया, लाखों हेक्टेयर भूमि डूब गई। लेकिन आज प्राइवेट सेक्टर को मौका देने के लिए सरकारी बिजलीघरों को ठप किया जा रहा है। अमरकंटक, संजय गांधी, सतपुड़ा और सिंगाजी पावर प्लांट 40 प्रतिशत से भी कम क्षमता पर काम कर रहे हैं। परिहार पूछते हैं कि बिजली के नाम पर इतनी बड़ी कीमत चुकाने के बाद आखिर क्या हासिल हुआ?

बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के राजकुमार सिन्हा ने आउटलुक को बताया कि 2007 से 2011 के बीच राज्य सरकार ने 91,160 मेगावाट विद्युत उत्पादन के 75 अनुबंध निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों से कर रखे हैं। इतने अधिक बिजली उत्पादन से सरकारी बिजली संयंत्रों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। बिजली की मांग नहीं होने के कारण नवंबर 2016 तक बगैर बिजली खरीदे 5513 करोड़ रुपये का भुगतान निजी कंपनियों को किया गया।

सिन्हा के अनुसार, पिछले साल दस महीनों में प्रदेश के सभी बांधों में पर्याप्त पानी उपलब्ध था, लेकिन हाइड्रो प्रोजेक्ट से पर्याप्त बिजली पैदा नहीं की गई। बांधों से बिजली उत्पादन 38 पैसे प्रति यूनिट आती है जबकि निजी थर्मल पावर प्लांट से सरकार 3.68 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदती है। इस खरीद पर राज्य सरकार ने 557 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। यही बिजली अगर नर्मदा घाटी में स्थापित हाइड्रो प्रोजेक्ट से ली जाती तो राज्य सरकार को कम से कम 500 करोड़ रुपये की बचत होती।

जरूरत से ज्यादा बिजली होने के बावजूद मध्यप्रदेश में नए बिजलीघर बनाने की तैयारियां चल रही हैं। मध्यप्रदेश के चुटका में परमाणु विद्युत निगम (एनपीसीआईएल) द्वारा 1400 मेगावाट का परमाणु बिजली संयंत्र प्रस्तावित है। पिछले तीन दशक से इस परियोजना का भारी विरोध हो रहा है। लेकिन परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जारी रही। नर्मदा किनारे खंडवा में सिंगाजी चरण एक, सिवनी में झाबुआ पावर और गाडरवारा में बी.एल.ए.पावर के बिजलीघर बन चुके हैं। इन तीनों बिजलीघरों से महंगी बिजली होने के कारण राज्य विद्युत नियामक आयोग के टैरिफ आदेश में इनसे बिजली खरीदने को मना कर दिया गया है। लेकिन एक यूनिट बिजली खरीदे बिना भी इन तीनों परियोजनाओं के लिए फिक्स्ड चार्ज राज्य सरकार को देना होगा क्योंकि ये समझौते 25 साल के लिए हैं।

इन बिजलीघरों के अतिरिक्त नर्मदा किनारे तीन और बिजलीघर निर्माणाधीन हैं। अगले दो साल बाद एनटीपीसी के पावर प्लांट और रीवा सोलर पावर प्लांट से लगभग 4000 मेगावाट विद्युत प्रदेश को मिलने लगेगी। तब राज्य में बिजली उत्पादन क्षमता 20,000 मेगावाट से भी अधिक हो जाएगी। नए-नए बिजलीघर बनवाने और सरकारी पावर प्लांट बंद रखने को राजकुमार सिन्हा एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा मानते हैं। दूसरी ओर बिजली की अधिकतम उपलब्धता के बावजूद हकीकत यह है कि प्रदेश के 117 गांवों और 46 लाख घरों में बिजली नहीं पहुंची है। निजी संयंत्रों से विद्युत क्रय अनुबंध के कारण मध्यप्रदेश विद्युत मैनेजमेंट कंपनी को भारी घाटा हो रहा है। पिछले चार साल मे मैनेजमेंट कंपनी को 9,288 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। जिसकी भरपाई बिजली दर बढ़ाकर उपभोक्ताओं से की जा रही है।

 

महंगी बिजली खरीदने के करार से बंधे हैं

मध्य प्रदेश के ऊर्जा मंत्री पारस चंद्र जैन

मध्यप्रदेश में महंगी बिजली की खरीद और सरकारी बिजलीघरों में कम उत्पादन के मुद्दे पर राज्य के ऊर्जा मंत्री पारस चन्द्र जैन से आउटलुक के लिए सौरभ सिंह ने बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश :

हम पावर सरप्लस में हैं। सस्ती बिजली हमारे पास है तो महंगी बिजली क्यों खरीद रहे हैं?

ये कई सालों पहले निजी कंपनियों से किए गए एमओयू की वजह से हो रहा है। तब हमारी स्थिति बिजली के मामले में खराब थी। हम एग्रीमेंट से बंधे हैं।

प्लांट क्यों बंद हैं?

केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि हमें सोलर की तरफ बढ़ना है और एक-दो प्लांट बंद होने से ज्यादा असर नहीं पड़ता।

प्राइवेट कंपनियों से नए पावर परचेज एग्रीमेंट क्यों कर रहे हैं?

हमें सोलर एनर्जी का उत्पादन बढ़ाना है। इसलिए कंपनियों से पावर परचेज एग्रीमेंट सोलर एनर्जी को लेकर ही कर रहे हैं।

बिजली खरीद के लिए सरकारी उत्पादन क्षमता का उपयोग क्यों नहीं कर रहे हैं?

सरकार की क्षमता के हिसाब से उपयोग किया जा रहा है।

नए प्रोजेक्ट के लिए भू-अधिग्रहण क्यों?

सोलर एनर्जी के लिए जमीन की जरूरत है और हिसाब से अधिग्रहण हो रहा है।

अभी कितने घंटे बिजली दे रहे हैं?

प्रदेश में घरेलू उपयोग के लिए 24 घंटे और किसानों को सिंचाई के लिए 10 घंटे बिजली मप्र सरकार दे रही है। 

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