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'संघ’ साथ ऐसे बनती है बात

एक बार फिर भाजपा के लिए चुनावों में आरएसएस ने की मेहनत
स्वयंसेवकों के साथ आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत

सन् 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से फैसले लेने शुरू किए थे, लगने लगा था कि अब वह 'खुद मुख्‍तार’ हो गए हैं और अब उन्हें अपने पितृ संस्थान की जरूरत नहीं रह गई है। भारतीय जनता पार्टी के लिएराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महत्ता किसी से छुपी हुई नहीं है। नरेन्द्र मोदी कितने भी ताकतवर हो जाएं, संगठन के बिना उनकी नींव कमजोर ही रहेगी। बीते दिनों उत्तर प्रदेश के चुनाव में यह संदेश स्पष्ट हो गया, 'संघ बोलता कम करता ज्यादा है।’ इसकी झलक भी वहां के चुनाव में देखनेे को मिली। संघ मजबूती से पार्टी के साथ कदमताल करता रहा और भारतीय जनता पार्टी बेफिक्री से चुनावी दांव-पेच और उठापटक में लगी रही। भारतीय जनता पार्टी की हर गतिविधि पर संघ की पैनी और सावधान नजर थी। विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश से लेकर गोवा और उत्तराखंड से लेकर मणिपुर तक बूथ स्तर तक संघ के कार्यकर्ता पदाधिकारी भाजपा के साथ लगे रहे।

आरएसएस के पास जमीनी स्तर पर बहुत अच्छा नेटवर्क है। इसी नेटवर्क का लाभ हमेशा भाजपा को मिलता है। उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले संघ के कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव जाकर मतदान करने के लिए लोगों को प्रेरित किया था। उत्तर प्रदेश में जाति का गणित उलटफेर करने में सक्षम माना जाता है। इसी को ध्यान में रख कर संघ कार्यकर्ताओं ने दलितों के साथ न सिर्फ संपर्क बढ़ाया बल्कि ऐसे मुहल्ले, बस्ती को चिह्निïत किया और सुनिश्चित किया कि उम्‍मीदवार नेता वोट मांगने इन बस्तियों के हर घर तक पहुंच सकें। संघ ने दलितों के बीच भोजन के कार्यक्रम रख कर यह भी संदेश दिया कि वे उनके लिए अस्पृश्य नहीं हैं। संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं, 'संघ कभी तात्कालिक परिणाम पर भरोसा नहीं करता है। संबंध कभी भी आज और अभी के लिए नहीं होते। संबंध लंबी चलने वाली प्रक्रिया है और इसे सिर्फ वोट के तराजू में नहीं तौलना चाहिए।’ यदि इसके निहितार्थ निकाले जाएं तो लगता है कि संघ जमीनी स्तर पर रिश्ते बनाकर भारतीय जनता पार्टी को वोट की खेती के लिए जमीन मुहैया कराता है। भाजपा जब चुनाव के लिए रणनीति बनाती है, उम्‍मीदवारों की उठापटक से जूझती है, तब संघ का स्वयंसेवक भाजपा को सत्ता दिलाने के लिए कमर कस लेता है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की घोषणा से भी बहुत पहले जब दूसरी पार्टियों में चुनाव को लेकर सुगबुगाहट भी पैदा नहीं हुई थी संघ अपने काम में जुट गया था। इन कामों में प्रमुखता से बौद्ध अनुयायियों के लिए धम्‍म यात्रा, महिला सम्‍मेलन और दलितों के लिए स्वाभिमान यात्रा प्रमुख हैं।

आरएसएस भाजपा के लिए जीवन रेखा की तरह काम करता है। न सिर्फ कार्यकर्ता और पदाधिकारी बल्कि संघ प्रमुख मोहन भागवत भी चुनाव से बहुत पहले ऐसे कामों में रुचि लेने लगते हैं। इस बार भी मोहन भागवत लखनऊ में लगभग 5 दिन रहे। इस दौरान उन्होंने भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं से बैठक की और संगठन मंत्री से चुनावी तैयारियों का जायजा भी लिया। उत्तर प्रदेश में संघ के एक पदाधिकारी बताते हैं, 'यह सब मीडिया का बनाया शिगूफा है कि भाजपा संघ से अपने रिश्ते स्वीकारने में सावधानी बरतती है। यह भी कोरी कल्पना है कि संघ हिंदुत्व के एजेंडे पर काम करता है और भाजपा को इसका नुकसान होता है।’ उनका यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्‍योंकि भाजपा में भी नेता मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत सिर्फ भाजपा की जीत नहीं कही जा सकती। संघ की भूमिका को कोई खत्म नहीं कर सकता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई प्रकोष्ठ हैं और सब मिल कर काम करते हैं। बूथ प्रमुखों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है और संघ या इन प्रकोष्ठों से जुड़े लोग इसमें मुख्‍य भूमिका निभाते हैं।

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