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स्मार्ट एलेक्सा है न

अब स्मार्ट होने की परिभाषा बदल रही है। फोन से लेकर घर तक
आकांक्षा पारे काश‌िव

इस जमाने में इंसान बेवकूफ होता जा रहा है और गैजेट्स स्मार्ट! ऐसे ही जब इंसानी अक्‍ल को कम आंकने वाले हमारे साले साहब ने हमें

एलेक्‍सा से रूबरू कराया तो हम भी इसके दीवाने होने से खुद को रोक न सके। घर में चीनी खत्म एलेक्‍सा तुरंत राशन वाले का नंबर खोज कर उसे बता दे। कार की सर्विसिंग की तारीख नजदीक एलेक्‍सा सुबह से ही स्मार्ट फोन पर अलर्ट कर दे। किसी जरूरी कार्यक्रम में जाना हो एलेक्‍सा याद दिला दे, नहाने का समय हो एलेक्‍सा गीजर चालू कर दे और तो और हमारी सलहज के जन्मदिन से पहले उसने साले साहब को महिलाओं को लुभाने वाले कई उपहार के विकल्प तक दे डाले। अब बताइए बीवी का जन्मदिन जो डिवाइस याद रख सके इससे बेहतर जीवन में और क्‍या मिलेगा। साले साहब ने बताया कि अमेरिका वाले बहुत पढ़-लिख गए हैं। अमेरिका की एक कंपनी है जो स्मार्ट होम यानी होशियार घर बनाने की डिवाइस बनाती है इसी का नाम एलेक्‍सा है। इसे घर में लगा लो तो लाइफ जिंगालाला से भी एक कदम आगे चली जाती है। हम ठहरे जनमजात बेवकूफ। होशियार इंसानों से ही खौफजदा हो जाते हैं फिर होशियार मशीन का क्‍या भरोसा। एलेक्‍सा नाम की यह मशीन रूपी सुंदरी हम घर ले जाएं और पता चले सही बिंदू सेट करने के चक्‍कर में हम अपनी बिंदू को ही अपसेट कर बैठें। सो तय हुआ कि हम अपनी प्यारी बिंदू सहित साले साब के घर ही डेरा जमाएंगे ताकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी नकली होशियारी पर आधारित यह मशीन और क्‍या-क्‍या कर सकती है इसका पता लगा सकें।

अभी हम नींद की कुनमुनाहट में बिंदू प्यारी की कर्कश आवाज से सुबह के स्वागत का इंतजार ही कर रहे थे कि बिलकुल कान के पास हमें आवाज आई, 'गुड मॉर्निंग वेक अप।’ आहा हा! आवाज क्‍या थी, समझिए घुंघरू की मीठी झंकार थी। हम चौंक कर उठ बैठे। ये क्‍या कमरे में तो कोई नहीं। साले साहब ने बताया कि एलेक्‍सा खुद से ही सीखती है। यह मशीन नहीं मशीन के अंदर एक दिमाग है, वही नकली होशियारी वाला दिमाग। वह रोज सुबह छह बजे उठते हैं यदि सवा छह हो जाए तो एलेक्‍सा को चिंता होती है और वह यह वेकअप वाला संगीत चला देती है। हमें पता चला एलेक्‍सा का गठबंधन स्मार्ट फोन से है। यानी हमारे साले साब कौन सी वेबसाइट देख रहे हैं, किसको कितने बजे फोन कर रहे हैं सब एलेक्‍सा को पता चल जाता है। और तो और साले साब कहें, एलेक्‍सा आजादी की मांग करने वालों, दलितों की आवाज वाला चैनल खोज दो जरा और एलेक्‍सा फट्ट से वोई चैनल लगा दे। हमें तो सच ऐसा लगने लगा कि ये कोई एलेक्‍सा-फेलेक्‍सा नहीं है, कोई साया है जो साले साब के घर पर काबिज हो गया है। आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि एक मशीन की हिम्‍मत हो जाए कि तल्लीनता से 'बींदणी’ पर अत्याचार होते देख रही बीवी बगल में बैठी रहे और आजादी-आजादी की मांग करते नई उम्र के लडक़े अचानक स्क्रीन पर नमूदार हो जाएं। अब हमें भी इस एलेक्‍सा में जरा रुचि आने लगी थी। बिना लड़ाई-झंझट के चैनल चेंज! रिमोट के लिए चिरौरी करना बंद। हमने इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की पड़ताल शुरू की तो पाया घर को व्यवस्थित रखने, दुकान से राशन लाने, बच्चों को कहानी सुनाने, मांजी को पुराण सुनाने का काम

एलेक्‍सा बखूबी करती है। जिन कामों के लिए हमारी भागवान बिंदू टोक-टोक कर हमें अधमरा कर देती है, एलेक्‍सा उन्हें खूब प्यार से बार-बार याद कराती है।  बिट्टू की फीस भरने की तारीख नजदीक है, एलेक्‍सा हाजिर। ताला खोल कर घर में घुसते ही एलेक्‍सा लाइट चालू कर देगी, एसी चला देगी। रात हुई तो याद दिलाएगी, इसबगोल खा लो बाबू। पिछले 22 सालों से बिंदू रानी के साथ रह रहे हैं पर मजाल है कि बिंदू रानी को एक दिन भी याद रहा हो कि हमें याद दिला दें। एलेक्‍सा हमारे व्यवहार से सीखती है कि हम क्‍या-क्‍या करते हैं और उसी के हिसाब से व्यवहार करती है। भला हो उस अमेरिकी कंपनी का जिसने हमारे स्वीट होम के बोर्ड को स्मार्ट होम में तब्‍दील कर दिया है। अब तो एलेक्‍सा है और हम हैं। इसका एक अच्छा असर यह हुआ है कि बिंदू रानी ने आए दिन मायके जाने की धमकी देना छोड़ दिया है। उसे भी पता है अब हम सिर्फ इतना ही कहते हैं, एलेक्‍सा है न।

 

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