Advertisement

प्रेमालिंगन का जादू

बसंत का बांकपन ही ऐसा है कि मन में प्रेम के लड्डू फूटने लगते हैं
श‌िव शर्मा

प्रेम एवं हास्य दो ऐसे रस हैं जो हमें पशुओं से अलग करते हैं। पशु प्रेमियों से क्षमा सहित, पशुओं का प्रेम यौनिक अधिक होता है। हास्य का तो प्रश्न ही नहीं उठता। मनुष्यों में बसंत ऋतु आते ही प्रेमाकुंर फूटने लगता है। यह कामदेव की कृपा है, इंद्र अपना राजपाट उन्हें जो सौंप देते हैं। मुनि वात्स्यायन ने तो बाकायदा कामदेव के सम्‍मान में कामसूत्र की रचना कर डाली। इसी के अनुसार प्रेम के प्रथम पायदान प्रेमालिंगन को बताया गया।

इन दिनों 'कडलिंग’ के नाम से यह प्रेमालिंगन खूब परवान चढ़ रहा है। इसमें लोगों ने क्‍लब बना डाले हैं जो घर-घर जाकर प्रेम से वंचित लोगों को प्रेमासिक्‍त करते हैं। राष्ट्रपति ट्रंप इसके प्रतीक बन गए हैं। चुनाव पूर्व कई सुंदरियों ने उन पर हालिंग अर्थात पप्पी-शप्पी लेने के आरोप लगाए थे। यह एक प्रकार की थेरेपी है जो निराश-हताश लोगों को प्रेम का डोज पिला देती है। मुन्नाभाई फिल्म की भाषा में इसे जादू की झप्पी भी कहते हैं। लेकिन इसमें यौन संबंधों का कोई स्थान नहीं है। यह शुद्ध-सात्विक शारीरिक स्पर्श मात्र होता है।

हमारे देश में यह सुकार्य कई कथित संतों ने भी किया है। वे लोगों को मुक्रत में प्रेमानुभूति कराते हैं। कुछ संत अधिक मात्रा में प्रेमालिंगन करने लगते हैं तो उन्हें जेल भी जाना पड़ता है। कुछ रास, कुछ योगाञ्जयास के नाम पर, कुछ कुंडलिनी जागृत करके प्रेमालिंगन का अञ्जयास कराते हैं और अच्छी फीस वसूल कर लेते हैं। बिन प्रेम, साहित्य तो कूड़ा-कचरा माना जाता है। एक लव-गुरु ने अपनी शोध-छात्रा को साहित्य में प्रेम-रस विषय दिया पीएच.डी. करने के लिए। पहले उन्होंने शिष्या को प्रेम का सैद्धांतिक पाठ पढ़ाया। संस्कृत वांग्मय तो भरा पड़ा है प्रेम एवं काम के ग्रंथों से। यदि इनका वर्णन यहां करूं तो देशभक्‍त मेरी पिटाई कर दें। हुआ यह कि एक बार कालिदास समारोह में मालवा के प्रसिद्ध कवि बाल कवि बैरागी ने कवि-सम्‍मलेन में कालिदास की कविता का मालवी अनुवाद पढ़ डाला, 'गोरी-गोरी जंघा वाली’ और हंगामा हो गया। लोगों ने समझा शायद वह फिल्मों का कोई शृंगारिक गीत पढ़ रहे हैं। वैसे भी कालिदास शृंगार के महाकवि हैं किंतु पवित्रता वादियों के लिए वह वर्जित हैं। महाकवि कालिदास ने तो यहां तक लिख डाला कि कदंब की तरह अलसाती, संतुष्ट उरोजों वाली चपल, चितवन वाली नारी का प्रेमालिंगन अवश्य करना चाहिए। वह सौंदर्य के अनन्य उपासक थे। यहां मैं उनके द्वारा कुमार संभवक्वा् में शिव-पार्वती के प्रणय-प्रसंगों का वर्णन तो हरगिज नहीं करूंगा। अन्यथा घोर अश्लील घोषित कर दिया जाऊंगा। हमारी वज्रयानी परंपरा में तो नाभि से लेकर कपाल तक को विभिन्न चक्रों में बांटा गया है। इन चक्रों के मधुर मिलन से ही महा आनंद प्राप्त करने की बात कही गई है। यह भी कहा है कि इनके दमन से महा विस्फोट भी हो सकता है। अर्थात प्रेमालिंगन मनुष्यों के लिए अति आवश्यक है।

बात लव-गुरु एवं उनकी शोध-शिष्या की चल रही थी। वह उनके सैद्धांतिक ज्ञान से समझ नहीं पाई कि प्रेमालिंगन होती क्‍या बला है। कारण यह था कि वह  रुढि़वादी परिवार से आई थी और उसने कभी अपने माता-पिता को भी प्रेम प्रदर्शित करते नहीं देखा था। अत: लव गुरु ने अकादमिक ढंग से, शिष्या को व्यावहारिक रूप से प्रेमालिंगन कर बताया। दुर्भाग्य से गुरु पत्नी ने यह दृश्य देख लिया। उन्होंने झाड़ू हाथ में लेकर लव गुरु से पूछा, 'अभी तक आपने मुझे यह प्रेमालिंगन का पाठ क्‍यों नहीं पढ़ाया, जो इस कलमुंही को पढ़ा रहे हैं।’ लव गुरु ने इसका भी उत्तर शास्त्रों की भाषा में ही दिया। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के टीकाकारों के हवाले से बताया कि भगवान श्रीकृष्ण परकीया गोपियों से इसलिए प्रणय करते थे कि वह निस्वार्थ होता था। सच्चा प्रेम वहां नहीं हो पाता जहां रिश्तों का बंधन होता है। अर्थात परिणीता से सच्चा प्रेम होना संभव नहीं होता जो परकीया से हो पाता है। इसलिए हम राधा-कृष्ण की मूर्तियों की पूजा करते हैं, रुञ्चिमणी-कृष्ण की नहीं। दूसरी बात गुरु ने बताई कि जब गुरुआइन प्रेमालिंगन करती हैं तो उनका एक हाथ जेब में होता है ताकि गुरु से घर-खर्च के लिए धन प्राप्त हो सके। इस कारण प्रेमालिंगन निजी संबंधों में सफल नहीं होता। जाहिर है इसके बाद गुरु की क्‍या दशा हुई होगी। कुछ भी हो, कोई भी देश हो, हिंसा एवं तनाव से मुक्ति के लिए खुला प्रेमालिंगन अनिवार्य है, बशर्ते वह निस्वार्थ हो।

Advertisement
Advertisement
Advertisement