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हरियाणा की आंच से यूपी तक तपिश

भाजपा का प्रयास है कि यूपी के दो चरणों के चुनाव तक आंदोलन शांत रहे
आरक्षण की मांग को लेकर उमड़ी भीड़

'कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना’.....इस चर्चित गाने के बोल की तरह अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति ने इस बार आंदोलन के बहाने ऐसी बिसात बिछाई है कि हरियाणा सरकार से कहीं अधिक दूसरे राज्योंउत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में चल रहे विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी को घेरा जा सके। आंदोलन को लेकर तैयार आठ सूत्री मांग पत्र भी इस ओर इशारा करते हैं। इनमें दो मांगें ऐसी हैं कि पड़ोसी प्रदेशों में चुनाव आचार संहिता लागू होने के चलते फिलहाल भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र व हरियाणा सरकार इसे पूरा करने की स्थिति में नहीं है। समिति के अध्यक्ष यशपाल मलिक के मुताबिक '29 जनवरी से हरियाणा के साथ दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश के कई हिस्से में एक साथ शुरू शांतिपूर्ण आंदोलन मांगें पूरी होने तक चलेगा।’ यानी चुनाव तक आंदोलन जारी रहने की उम्‍मीद है।

  इस बार का आंदोलन कई अर्थों में पिछले साल के आंदोलन से भिन्न है। एक तो इस बार जाट नेता भडक़ाऊ भाषण नहीं दे रहे हैं। दूसरा, आंदोलन से 36 बिरादरियों को जोडऩे की कोशिश है। इसके अलावा संघर्ष समिति का, आंदोलन को हरियाणा में 'हिट’ कराने से कहीं अधिक जोर पड़ोसी प्रदेशों में केंद्र एवं हरियाणा की भाजपा सरकार की 'वादाखिलाफी की पोल’ खोलने पर है। पंजाब, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में 'जाट संदेश यात्रा’ निकालकर लोगों से भाजपा को वोट न देने की अपील की जा रही है। यशपाल मलिक खुद पड़ोसी प्रदेशों के चक्‍कर काट रहे हैं, जिसका असर दिखने भी लगा है। यूपी के बिजनौर के नगीना क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी ओमवती जब हल्के के गांव बढ़ापुर प्रचार करने पहुंचीं तो उन्हें ग्रामीणों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा।

  हालांकि, आंदोलन को कुंद करने और पिछले साल की तरह कहीं आंदोलन हिंसक न हो, इसके लिए मनोहरलाल खट्टर सरकार ने पुलिस के साथ भारी संख्‍या में अद्र्धसैनिक बलों के जवान तैनात करने, गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करने से लेकर कई एहतियाती कदम उठाए गए हैं। इसके अलावा पार्टी के जाट नेताओं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला और दो सीनियर मंत्रियों कैप्टन अभिमन्यु, ओमप्रकाश धनखड़ को भी अहम जिम्‍मेदारी सौंपी गई है। जाटों के खिलाफ हमेशा मोर्चा खोले रखने वाले पार्टी सांसद राजकुमार सैनी को भी मुंह बंद रखने की हिदायत दी गई है। प्रदेश की खाप पंचायतों में भी आंदोलन को लेकर फूट है। बावजूद इसके, पड़ोसी राज्यों में संघर्ष समिति द्वारा भाजपा के विरुद्ध प्रचार की काट अब तक नहीं निकाली जा सकी है।

   यशपाल मलिक विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट बैंक को प्रभावित करने वाले अपने गणित का खुलासा करते हुए कहते हैं कि हरियाणा से लगती यूपी की 60 तथा पंजाब की 25 सीटें ऐसी हैं जहां उनके समुदाय का सीधा दखल है। मगर संगठन का अधिक जोर उन सीटों पर है जहां जाटों का प्रतिशत दस से कम है। ऐसे क्षेत्रों में

'टे‌िक्‍टकल वोटिंग’ कराने के लिए लोगों से भाजपा को छोडक़र किसी मजबूत प्रत्याशी को वोट देने की अपील की जा रही है।’ मतदाताओं को बताया जा रहा है कि जाटों को आरक्षण देने में हरियाणा एवं केंद्र सरकार आनाकानी कर रही है।

 आंदोलन को फ्लॉप कराने के तमाम प्रयासों के बाजवूद जाट आंदोलन के निरंतर विस्तार से घबराई भाजपा ने कांग्रेस को इसके लिए जिम्‍मेदार ठहराया है, ताकि इसका लाभ विधानसभा चुनाव के दौरान उठाया जा सके। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला का आरोप है कि आंदोलन में भूपिंदर हुड्डा के परिवार की भूमिका है। दूसरी ओर हुड्डा कहते हैं, 'शांतिपूर्वक आंदोलन का अधिकार सबको है। इससे किसी को वंचित नहीं किया जा सकता।’ कांग्रेस एवं इनेलो ने आंदोलन को खुला समर्थन दिया है।

...इसलिए मोदी से नाराज हैं जाट

जाट नेताओं का कहना है कि 2006 से 2014 तक चले आरक्षण आंदोलन को देखते हुए चार मार्च, 2014 को तत्कालीन केंद्र सरकार ने हरियाणा, यूपी, राजस्थान, कश्मीर सहित नौ राज्यों के जाटों को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल कर लिया गया था। मगर 17 मार्च, 2015 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नोटिफिकेशन रद्द कर जाटों को इस सूची से बाहर कर दिया गया। इसको लेकर 26 मार्च, 2015 को जब जाट नेताओं ने प्रधानमंत्री आवास पर पीएम नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की तो उन्होंने जल्द ही केंद्र की ओबीसी श्रेणी में जाटों को शामिल करने का भरोसा दिया, जो पूरा नहीं हुआ है। इस आधार पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा में जाटों को आरक्षण देने पर रोक लगा दी है। संघर्ष समिति पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष करनैल सिंह भावड़ा कहते हैं, दोनों सरकारें सही पैरवी नहीं कर रहीं, जिससे उन्हें लाभ नहीं मिल पा रहा है।’

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