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नीतीश की 'रंग’ बदलती टेढ़ी चाल

उत्तर प्रदेश और पंजाब में प्रचार से दूर रहने पर जदयू नेता के राजग से नजदीकी के लग रहे हैं कयास
कमल में रंगः पुटना पुस्तक मेले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

पटना में चल रहे पुस्तक मेले में बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने कमल के चित्र में लाल रंग क्‍या भरा उनके राजग के साथ जाने की चर्चा तेज हो गई। यह पहला मौका नहीं है कि इस तरह की बात उठी है। गुरु गोबिंद सिंह के 350वें प्रकाशोत्सव के दौरान जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पटना गए थे तब भी नीतीश ने उनकी जोरदार तारीफ की थी। इसे दोनों नेताओं के बीच बढ़ती निकटता के  रूप में देखा जा रहा है। नीतीश के पंजाब और उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार नहीं करने के फैसले को भी लोग मोदी से उनकी नजदीकी को जोडक़र देख रहे हैं। इतना ही नहीं जदयू में उनके पुराने विश्वस्त रहे पूर्व मुख्‍यमंत्री और 'हम’ के नेता जीतन राम मांझी ने तो इतना तक कह दिया कि नीतीश जल्द ही राजग में शामिल होने वाले हैं। जो लोग नीतीश को नजदीक से जानते हैं उन्हें यह पता है कि वह किसी का कितना भी विरोध करें पर इतनी जगह जरूर रखते हैं कि कभी साथ आने का मौका मिला तो इस कड़वाहट को मिठास में बदला जा सके। इसका साफ प्रमाण उनका राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के साथ जाना है। कभी लालू ने कहा था कि नीतीश के दांत उनके पेट में हैं और वे दिखावे के लिए सेक्‍युलर हैं।

पटना पुस्तक मेले में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्‍मानित बउआ देवी ने कैनवास पर कमल फूल की तस्वीर बनाई थी और नीतीश से इस कलाकृति पर ऑटोग्राफ देने का आग्रह किया। नीतीश ने इसे फूल में रंगभर कर पूरा किया। नीतीश ने इस मौके पर कहा कि बिहारियों का मन और मिजाज पढऩे का होता है और ये हमेशा से उनकी पहचान रही है। बिहारी ज्ञान देना और ज्ञान लेना चाहता है। उनके इस बयान के भी राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे अपने समर्थक राजद और कांग्रेस के साथ-साथ विरोधियों का मन-मिजाज भी पढऩे की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसे में हाल में पूर्व मुख्‍यमंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतन राम मांझी का बयान काफी अहम है। मांझी ने साफ किया कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मिलकर काम करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और वे आने वाले दिनों में राजग में शामिल हो जाएंगे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अचानक जदयू का चुनाव से अलग हट जाना भाजपा को फायदा पहुंचाने की कवायद है। उन्होंने नीतीश के नोटबंदी के समर्थन वाले बयान को अपने दावे का आधार बनाया।

एक फरवरी को जब नीतीश ने उत्तर प्रदेश और पंजाब में प्रचार नहीं करने की घोषणा की थी तब भी उन्होंने किसी दल को शुभकामना देने के सवाल को टाल दिया था। उन्होंने सिर्फ यही कहा था कि उनकी शुभकामना इन प्रदेशों के लोगों के साथ है। उनका तर्क था वह अभी निश्चय यात्रा पर घूम रहे हैं और अपने एजेंडा पर काम कर रहे हैं। हम दूसरे के एजेंडा के चक्‍कर में नहीं पडऩा चाहते, हम अपने एजेंडा पर काम कर रहे हैं।

जदयू की इच्छा उत्तर प्रदेश में महागठबंधन बना कर चुनाव लडऩे की थी पर ऐसा नहीं हो सका। काफी प्रयासों के बाद उनकी सपा और कांग्रेस से बात नहीं बनी। जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्‍ता केसी त्यागी ने गठबंधन में जगह नहीं मिलने पर दुख जताया था। उन्होंने कहा था कि सपा और कांग्रेस बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में गठबंधन बनाने में नाकाम रही है। हम लोगों ने तय किया है कि सांप्रदायिक ताकतों की हार के लिए हम चुनाव नहीं लड़ेंगे। इससे धर्मनिरपेक्ष वोट बटेंगे नहीं। बिहार में महागठबंधन होने के बाद भी समाजवादी पार्टी ने बिहार में चुनाव लड़ा था लेकिन हम लोग यूपी में चुनाव नहीं लड़ेंगे।

नीतीश कुमार के आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल से रिश्ते काफी नजदीकी रहे हैं। केजरीवाल उनके शपथ ग्रहण के दौरान पटना भी गए थे और वहां बड़े स्तर पर नीतीश को साथ लेकर राष्ट्रीय स्तर पर आने की बात भी कही थी। इसके बाद जब नीतीश दिल्ली आए तो उन्होंने केजरीवाल से उनके मुख्‍यमंत्री कार्यालय में जाकर भेंट की थी और साथ चलने का वादा किया था। केजरीवाल की पार्टी ने पंजाब में काफी मजबूती से चुनाव लड़ा है। उन्हें उम्‍मीद थी कि नीतीश कुमार उसका प्रचार करने आएंगे जिससे यहां रहने वाले बिहार के लोगों का वोट उनके खाते में आ जाएंगे मगर ऐसा नहीं हुआ। माना जा रहा है कि जब गुरु गोबिंद सिंह के प्रकाशोत्सव में शामिल होने के लिए पंजाब के मुख्‍यमंत्री प्रकाश सिंह बादल पटना गए तब एक अलग कहानी का खाका खींचा गया और नीतीश पंजाब नहीं गए। पंजाब को लेकर एक मजेदार तथ्य यह है कि 2009 में राजग की लुधियाना में हुई रैली में नीतीश और मोदी पहली बार एक मंच पर साथ आए थे। तब मोदी गुजरात के मुख्‍यमंत्री हुआ करते थे।

इसी तरह उत्तर प्रदेश के बिहार से लगते विधान सभा क्षेत्रों में नीतीश कुमार का खासा प्रभाव है। यहां सिर्फ उनके व्यक्तिगत समर्थक हैं बल्कि उनकी जाति के मतदाताओं की संख्‍या काफी है। ऐसे में उनका यहां प्रचार के लिए नहीं आना कई सवाल पैदा करता है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि नीतीश ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाते हैं जिससे उन्हें भविष्य में परेशानियों से दो-चार होना पड़े। वह साफ कहते हैं कि हम दूसरे के एजेंडा में नहीं पडऩा चाहते हैं। हमारा एजेंडा बिहार है और हम इसके विकास में लगे हैं। जदयू का भाजपा के साथ 17 वर्ष तक गठबंधन रहा था। इसके तहत नीतीश केंद्र में मंत्री रहने के अलावा बिहार के मुख्‍यमंत्री भी रहे थे। यह गठबंधन 2014 के लोक सभा चुनाव के दौरान टूट गया था। इस समय मोदी के नीतीश के डीएनए पर सवाल उठाने के बाद दोनों के रिश्तों में काफी तल्खी भी आ गई थी।

नीतीश के बारे में माना जाता है कि वे आने वाले समय को जल्द पहचान लेते हैं। बिहार की राजनीति में जिस तरह से लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे और उप मुख्‍यमंत्री तेजस्वी यादव का कद बढ़ रहा है उससे यह लगता है कि वे आज नहीं तो कल नीतीश के लिए ही चुनौती बनेंगे। ऐसे में यह संभावना जताई जा रही है कि जदयू प्रमुख भाजपा के उन नेताओं से अपने मधुर रिश्ते कायम रखेंगे जो उनके छात्र जीवन यानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आपातकाल विरोधी आंदोलन के दौरान से मित्र हैं। ऐसे लोगों में कई उनके मंत्रिमंडल में रह चुके हैं और बेहद नजदीकी मित्र के रूप में चर्चित हैं। अब देखना यह है कि जब अगले महीने पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के नतीजे आते हैं तब नीतीश क्‍या रुख अपनाते हैं। ये नतीजे इतना तो जरूर तय करेंगे कि नीतीश का राजग से रिश्ता कैसा रहेगा?

 

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