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सत्ता के खेल में वतन की आबरू पर हमले

प्रसंगश:
आलोक मेहता

लंदन से अंतरराष्ट्रीय राजनीति की एक युवा शोधार्थी मारग्रेट ने समान परिचित मित्र से नंबर लेकर पिछले दिनों हमें फोन कर पूछा- 'सर, मैं भारत आने की दिली इच्छा पूरी करने पहली बार भारत आने का कार्यफ्म बना रही हूं। आपसे जानना चाहती हूं कि इस समय इंडिया कितना सुरक्षित है?’ हमने उत्तर दिया- 'स्वागत है- अरे, भारत बिलकुल सुरक्षित है।’ उसने थोड़े दुखी स्वर में विस्तार से सवाल किया- 'सर, मैं रियलिटी (वास्तविकता) जानना चाहती हूं। एंबेसी या ट्रैवल एजेंट तो असली स्थिति बताते नहीं हैं। देखिए न, मैं टी.वी., इंटरनेट, सोशल मीडिया पर लगातार आपके प्रधानमंत्री, मंत्रियों, राज्यों के नेताओं के बयान देख और पढ़ रही हूं। कोई कह रहा है- सी.एम. केजरीवाल ने दिल्ली बर्बाद कर दी- गंदगी से बीमारियों और पुलिस लापरवाही से अपराधों की भरमार। वाराणसी जाने के लिए नजर डालूं, तो पी.एम. नरेन्द्र मोदी को बोलते सुनती हूं- उत्तर प्रदेश में हत्यारों, बलात्कारियों और अपराधियों का ही बोलबाला है। मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव यों पुलिस की नई 100 नंबर शुरू करने से लोगों को सुरक्षा का आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन आगरा-वाराणसी जैसे इलाकों में भाजपा से जुड़े सांप्रदायिक संगठनों की हिंसक गतिविधियों की जानकारी दे रहे हैं। अमृतसर जाने की इच्छा रही है, लेकिन पिछले हफ्तों में वहां 'ड्रग्स’ के अपराधियों को बादल परिवार के प्रश्रय से हर तरफ अपराधियों की भरमार की खबरें सुनने-पढऩे को मिलीं।

भारत के बारे में व‌िदेशों में बन रही गलत छव‌ि के ल‌िए कौन ज‌िम्मेदारदेहरादून-अल्मोड़ा की तरफ भी आपके नेता ठगों या साधु के वेश में शैतानों की कहानियां सुना रहे हैं। आपका नॉर्थ ईस्ट सुना है बड़ा खूबसूरत है। लेकिन मणिपुर के कारण मिल रही खबरों से लगता है कि कहीं नाकेबंदी है, तो कहीं बम विस्फोट हो रहे हैं। आपके बड़े-बड़े नेता ही चारों तरफ खराब हालत बता रहे हैं। दिसंबर में लंदन से एक फ्रेंड जयपुर गई, तो करेंसी इश्यू से परेशान हो गई। सर, अब ऐसी हालत में क्‍या इंडिया आना सेफ होगा?’

इतने तर्कों का पूरा जवाब तो मेरे पास भी क्‍या हो सकता है। फिर भी मैं अपने देश की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए यही कह सका- 'मारग्रेट, आप परेशान न हों। इंडिया इतना बुरा नहीं हो गया है। आप प्रोग्राम बनाएं और जब आएं, तो बता दें।’ उधर से शोधार्थी ने कहा- 'एनी वे, सर शायद कुछ महीने बाद हालत ठीक हो, तो प्रोग्राम बनने पर आपको भी बताऊंगी।’ मतलब यह कि इतनी लंबी चर्चा के बाद भी उसकी उलझन खत्म नहीं हुई। यों हमारे नेतागण इस स्थिति के लिए मीडिया को 'दोषी, 'पापी’, 'अपराधी’ कह सकते हैं। लेकिन मीडिया तो उनके ही भाषण प्रसारित-प्रकाशित कर रहा है। चुनाव के दौरान तो प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर से ही प्रायोजित कार्यफ्म, खबरें, वीडियो जारी हो रहे हैं। उनमें भी तो नेता दहाड़ते हुए दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है कि जो जहां सरकार में बैठा है या बैठा था-केवल लूटपाट, अत्याचार, अपराध ही कर रहा है। हर दिन कहा जाता है कि सत्तर सालों में नेताओं ने लूटा ही लूटा। इसीलिए गरीबी-बेरोजगारी है। तब यह बात उठती है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्तर वर्षों में कई दलों ने केंद्र या प्रदेशों में राज किया है। उत्तर भारत के कई राज्यों में भी 1967 से 2014 तक पांच-पांच वर्ष तक गैर कांग्रेसी सरकारें रहीं। ज्योति बसु से भैरों सिंह शेखावत या मुलायम सिंह-मायावती, लालू यादव-नीतीश कुमार, जयललिता, नवीन पटनायक या चंद्रबाबू नायडू के भी या नरसिंह राव-मनमोहन सिंह से इंदर कुमार गुजराल, अटल-आडवाणी तक के सत्ताकाल में भी क्‍या समान बदहाली और लूटपाट रही? इमरजेंसी में भी हरियाणा में ज्यादतियों के साथ बंसीलाल ने नये उद्योगों और पर्यटन केंद्रों को विकसित किया या महाराष्ट्र-गुजरात में लगातार तरक्‍की नहीं हुई? 1991 से 2004 तक की आर्थिक सफलता के बड़े दावे तो भाजपा-कम्‍युनिस्ट, जनता दल और कांग्रेस भी करती रही। 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह स्वयं भाजपा शासित राज्यों में आर्थिक विकास की बड़ी उपलब्धियों के सर्टिफिकेट समारोहों में देते रहे।

अब ऐसा क्‍या हो गया है, जो सबको एक-दूसरे के केवल पाप ही नजर आ रहे हैं। 'हम करें तो पुण्य, तुम करो तो पाप-’ वाली स्थिति है। प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री, बड़ी पार्टियों के शीर्ष नेताओं का कड़ा रुख देखकर दूसरी-तीसरी पंक्ति वाले नेता-प्रवक्‍ता या उनसे जुड़े संगठनों के सिपहसालार सारी नैतिक, कानूनी सीमाएं लांघकर बेतुके, उत्तेजक, घटिया, अश्लील बयान दे रहे हैं। मोबाइल, फेसबुक, ट्विटर पर कोई नैतिक लगाम ही नहीं है। अस्सी के दशक तक चुनावों के दौरान लाठियां-गोलियां चलने, बूथ कब्‍जे, वोट लूट की घटनाएं होती थीं। चुनाव आयोग ने बहुत कुछ नियंत्रित किया। लेकिन अब नोटों या सत्ता के बल पर आधे झूठ-सच, गाली-गलौच के वाक-संघर्ष चलते हैं। पंजाब के हाल के चुनाव में कहीं कोई हिंसा नहीं हुई, लेकिन चरित्र हनन और कुप्रचार की हिंसा ने पूरे हिंदुस्तान को शर्मिंदा सा कर दिया। यह सिलसिला उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड में भी जारी रहता दिखता है, क्‍योंकि आपराधिक पृष्ठभूमि वालों के साथ सांप्रदायिक आग उगलने वालों को भी मैदान में उतार दिया गया है। 'वतन की आबरू’ की चिंता किसे, कब होगी?

 

 

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