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सुविधाओं की छिपी कीमत

ई-वॉलेट और कार्ड से भुगतान बेशक सुविधाजनक है, लेकिन लेन-देन का यह तरीका डालता है जेब पर असर
कार्ड से भुगतान पर देनी होती है कई तरह की फीस

क्‍या आपने प्लास्टिक कार्ड और ई- वॉलेट (पर्स) की बढ़ी धमक से चमत्कृत होकर अपनी आंखें तो नहीं मूंद ली है? यदि आप ऐसा कर रहे हैं, तो आप सावधान हो जाइए, क्‍योंकि भुगतान के इन माध्यमों के इस्तेमाल की कीमत अदा करनी होती है, जिसके बारे में आपको खबर होनी चाहिए। विमुद्रीकरण (डीमॉनिटाइजेशन) के ताजातरीन अभियान से ई-वॉलेट और प्लास्टिककार्ड (डेबिट और क्रेडिट दोनों) की लोकप्रियता में जबरदस्त उछाल आया है। माना डिजिटल भुगतान सुविधाजनक है और इसका उपयोग करने के कई लाभ हैं। इनका इस्तेमाल करने वाले आपको बहुत सारे ऐसे भी लोग मिल जाएंगे जो यह कसमें खाकर कहने को तैयार है कि कैसे भुगतान के इन आधुनिक अवतारों से उनका जीवन कितना सुविधाजनक हो गया है और इनके उपयोग के कारण वो अपनी गाढ़े खून-पसीने की कमाई को बचा पा रहे हैं। बाकी अन्य चीजों की तरह, हर चीज के अपने फायदे और नुकसान तो होते ही हैं और यही सिद्धांत डिजिटल लेन-देन पर भी लागू होता है। पर सुविधाओं की चकाचौंध में आप भुगतान के नए अवतारों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने से पहले इनसे जुड़े भुगतानों की तरफ से अपनी आँखें न मूँद लें।

उदाहरण के तौर पर, देखते हैं कि आपको आपके मोबाइल वॉलेट का इस्तेमाल वास्तव में आपकी जेब पर कितना बोझ डालता है। मोबाइल वॉलेट एक ऐसा आभासी वॉलेट है जिसके द्वारा आप किसी भी वस्तु का भुगतान कर सकते हैं, चाहे वो रोजमर्रा के मोबाइल रीचार्ज के भुगतान हों या किन्हीं वस्तुओं और सुविधाओं जैसे कैब से यात्रा या किसी भी रेस्तरां से खाना मंगवाने जैसी चीजों का भुगतान हो।

भारत में डिजिटल वॉलेट द्वारा बहुत सारी चीजों का भुगतान करने के रास्ते हैं। क्‍लोज्ड वॉलेट के क्षेत्र में पेटीएम, मोबिञ्चिवक, फ्री चार्ज, ऑक्‍सीजन आदि शामिल हैं। ओपन वॉलेट क्षेत्र में आईसीआईसीआई बैंक से पैसा पाने की सुविधाएं या पॉकेट शामिल हैं, जो कि बैंक से इस तरह जुड़ी हुई हैं कि बैंक से आपको नकदी निकालने की सुविधा मिलती है। ओपन वॉलेट सुविधा में आप कभी भी धन निकाल सकते हैं, किंतु मोबाइल वॉलेट में आप पहले फीस का भुगतान किए बिना ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते।

हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इन वॉलेट के उपयोग की मासिक लेन-देन की सीमा एक लाख रुपये तय की हुई है। इसका मतलब यह है कि आप एक महीने में एक लाख रुपये से अधिक धन एक वॉलेट में ट्रांसफर नहीं कर सकते। हालांकि वॉलेट द्वारा लेन-देन करते हुए बहुत प्रकार के डिस्काउंट यानी छूट उपलद्ब्रध हैं, किंतु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जब भी आप वॉलेट से वापस बैंक अकाउंट में धन ट्रांसफर करते हैं, ऐसे हर लेन-देन में आपको 1 से 3 फीसदी तक फीस का भुगतान करना पड़ता है। फिलहाल, यह भुगतान 30 दिसंबर तक माफ किया गया है। किंतु यह कोई गारंटी नहीं है कि 30 दिसंबर के बाद जब हालात कुछ सामान्य होते दिखेंगे, तब ये भुगतान कोई और रूप धारण करके नहीं आएगा।

इस पूरी प्रकिया को आप इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि मान लीजिए कि आपने अपने बैंक अकाउंट या क्रेडिट कार्ड से अपने वॉलेट में 10,000 रुपये ट्रांसफर करवाए। इसके लिए आपके सिर पर 100 रुपये से 300 रुपये की फीस के भुगतान का बोझ पड़ेगा। यह फीस वॉलेट ऑपरेटरों के लिए अलग-अलग है। इसका मतलब है कि सही मायनों में अपने वॉलेट में 10,000 रुपये डालने का मतलब है कि आपको बदले में 10,300 रुपये का भुगतान करना है।

एमडीआर का प्रभाव

भारत सरकार का यह कहना है कि नकदी-रहित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए डेबिट या क्रेडिट कार्ड और नेट बैंकिंग की लेन-देन की कीमत को वो खुद वहन करेगी। फिलहाल, सरकार को भुगतान के लेन-देन की कीमत जिसे एमडीआर (मर्चेंट डिस्काउंट रेट) के नाम से जाना जाता है, उपभोक्‍ताओं को अदा करना पड़ती है। यद्यपि सन् 2012 में आरबीआई ने डेबिट कार्ड के प्रति लेन-देन के लिए जो एमडीआर लगाया था वो रुपये 2000 पर 0.75 फीसदी थी। इसका मतलब है कि 1000 रुपये पर आपको 7.5 रुपये का अतिरिक्‍त भुगतान करना था और डेबिट कार्ड पर 2100 रुपये का उपयोग करने पर आपको 21 रुपये का अधिक भुगतान करना था। जब आप अपने क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं, तो ये चार्ज भिन्न हो सकते हैं

क्‍योंकि क्रेडिट कार्ड से भुगतान करते हुए एमडीआर पर कोई रोक नहीं है।

बहरहाल, नकद-रहित चलन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने हर सरकारी विभाग को निर्देश दिए हैं कि वो बाकी मर्चेंट्स की तरह एमडीआर की कीमत को वहन करने के लिए उचित कदम उठाएं। वित्त मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्ति में ये स्पष्ट किया गया है - 'डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड या किसी भी अन्य डिजिटल साधन द्वारा भुगतान करने पर जन सामान्य को सरकार को एमडीआर का भुगतान नहीं करना होगा।’ फिर भी सच यह है कि अधिकतर व्यापारी आपको उन भुगतानों के बारे में अंधेरे में रखते हैं, जो वो आपसे डेबिट कार्ड द्वारा भुगतान करने पर लेते हैं, जोकि हर लेन-देन मूल्य का लगभग 2 फीसदी होता है अगर खरीदारी कार्ड के माध्यम से की गई है।

प्लास्टिक भुगतान

यदि आपको एटीएम से धन प्राप्त करने में दिक्‍कत आ रही है और जहां आसानी से इस्तेमाल हो सकता है वहां डेबिट कार्ड इस्तेमाल करने जा रहे हैं तो कृपया दो बार सोच लें - क्‍योंकि कार्ड से भुगतान करने की भी एक कीमत है। वैसे भी हर महीने एटीएम पर आप 5 लेन-देन से ज्यादा नहीं कर सकते। इसके बाद, आप 5 से अधिक लेन-देन में एटीएम का उपयोग करते हैं तो उसकी एक कीमत चुकानी पड़ेगी। अगर आप अपने बैंक नेटवर्क से बाहर जाकर कोई एटीएम इस्तेमाल करते हैं, तो आपको इसकी और भी कीमत देनी होगी। क्रेडिट कार्ड की कहानी (देखें टेबल) तो और भी गहरी है। क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल पर लगाए जाने वाले चार्ज कई बार इतने महंगे पड़ते हैं कि अगर आप उनसे वाकिफ नहीं हैं तो ये आपकी जेब पर अच्छा-खासा बोझ पड़ जायेगा।

साथ ही, क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल पर होने वाले खर्च पर सर्विस टैक्‍स भी लगाया जाता है, जो हर लेन-देन की पूरी कीमत पर 14 फीसदी है जिसमें द्ब्रयाज, फीस और चार्ज शामिल हैं। इसका मतलब है कि यदि आप 5000 रुपये का लेन-देन करते हैं तो अंतत: आपको 5725 रुपये का भुगतान करना पड़ता है। किंतु यदि आप 2000 रुपये से कम का लेन-देन करते हैं तो 30 दिसंबर 2016 तक आपका यह चार्ज जो कि कर के रूप में माना जाता है, उसे माफ कर दिया गया है। किंतु, इस बात का खुलासा अभी होना बाकी है कि यह लागू किस प्रकार किया जाएगा, क्‍योंकि बहुत अधिक संभावना है कि खरीदारी या लेन-देन की पूरी रकम को 2000 रुपये की जद में रखने के लिए उपभोक्‍ता और व्यापारी दोनों मिलकर बिल की कुल रकम को कई छोटे-छोटे भागों में बांट लें।

इस सारी जानकारी से हम आप तक यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं कि कार्ड या वॉलेट द्वारा किए जाने वाला डिजिटल भुगतान कभी भी नकद भुगतान की जगह नहीं ले सकता। नकद भुगतान हमेशा डिजिटल भुगतान के साथ-साथ अपनी उपस्थिति बनाए रखेगा। ताकि आम आदमी के हाथ में यह चुनने की आजादी रहे कि कहां वो नकद भुगतान करके धन बचाना चाहता है और कहां वो सुविधा के लिए शुल्क या फीस देना चाहता है? यदि आप अपने भुगतान की प्रक्रिया को डिजिटल बनाने की सोच रहे हैं तो एक बार दुबारा सोच लीजिए क्‍योंकि आपके लिए यह आवश्यक है कि आपको ऐसा करने से पहले चार्ज, फीस और शर्तों के बारे में पूरी जानकारी हो ताकि नुकसान होने के बिंदु आपको पता हों न कि सिर्फ आपका सुविधा के नाम पर आंखों पर पट्टी बांधने का काम चल रहा हो।

शायद आपको यह ज्ञान होगा कि इस संसार में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता और भारत में डिजिटल भुगतान के लिए तो कम-से-कम यह तथ्य सोलह आने सच है। जब तक ऐसे भुगतानों को बढ़ावा देने के लिए एक साफ-सुथरी व्यवस्था नहीं बन जाती, तब तक नकदी भुगतान से डिजिटल भुगतान की ओर करवट बदलना केवल एक कोरा सच भर है।

डिजिटल के भी बड़े खतरे

इंटरनेट की सबसे बड़ी कंपनी भारत में 4.29 लाख करोड़ रुपये का करती है व्यापार सरकार ने साधी चुप्पी

विराग गुप्ता

अमेरिका के पूर्व वित्तमंत्री लारेंस एच. समर्स के अनुसार नोटबंदी का कदम तेज रफ्तार की गाड़ी के टायर को पंचर करने जैसा है। नोटवंदी के बाद देश में इंस्पेक्‍टर राज से उदारीकरण की रफ्तार थम सकती है और रुपये की साख कमजोर होने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत को भारी नुकसान हो सकता है। नोटबंदी के अनेक लाभ हो सकते हैं पर अर्थव्यवस्था में मंदी, असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी का प्रकोप तथा जीडीपी में नुकसान की भरपाई कैसे होगी? इस ओर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया गया। सरकार जो कैशलेस करके डिजिटल पेमेंट की बात कर रही है लेकिन इसकी रफ्तार बहुत ही धीमी है। आधार की अनिवार्यता के बावजूद सरकार प्राइवेसी तथा डाटा सुरक्षा के लिए जनता को कानूनी सुरक्षा कवच प्रदान करने में विफल रही। उबर, गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां भारतीय कानून में लचीलेपन का फायदा उठाकर खरबों रुपये के टैक्‍स की चोरी करती हैं, जिन पर अंकुश लगाने की बजाय छोटे उद्यमियों पर शिकंजा क्‍या सही कदम है?

डिजिटल इंडिया के सुहाने नारे से क्‍या आम जनता की तस्वीर बदलेगी यह गंभीर प्रश्न है। क्‍योंकि इस बात को भी समझना होगा कि कितने लोग डिजिटल पेमेंट का सहारा लेते हैं। अखिल भारतीय व्यापारी संघ की मानें तो 10 फीसद जनता ही डिजिटल पेमेंट करती है। वहीं उद्योग संघ एसोचैम की मानें तो देश को कैशलेस सोसाइटी बनाने में पांच साल का वक्‍त लगेगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल डिजिटल की सुरक्षा को लेकर है। जिस तरह से हैकर्स किसी के भी अकाउंट को हैक कर सकते हैं उससे निपटने के सरकार के पास क्‍या उपाय है। डिजिटल भुगतान की मुहिम को चलाने से पहले सरकार को सुरक्षा को चौकस करना चाहिए। भारत में 1995 में इंटरनेट आने के पांच साल बाद आईटी एक्‍ट बना जिसमें 2008 में व्यापक संशोधन और 2011 में कई नियम बने। डिजिटल इंडिया तथा कैशलेस इकॉनमी में आम जनता की रक्षा करने में परंपरागत कानून नाकाफी हैं। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद आईटी एक्‍ट तथा साइबर सुरक्षा के कानूनों में व्यापक समीक्षा की बात करते हैं पर कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी जो सीनियर एडवोकेट भी हैं, ऐसा नहीं मानते। बैंक अकाउंट से गलत ट्रांसफर, डेबिट कार्ड का दुरुपयोग या ई-वॉलेट से रिफंड के मामले में पर्याप्त कानून न होने से लोग रिफंड के लिए पुलिस और बैंकों के बीच भटकते रहते हैं। इंटरनेट कंपनियां भारतीयों की निजी जानकारी वाले डाटा को बड़े लाभ पर बेचने के साथ हमारे देश की सामरिक सूचनाओं को विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ साझा करती हैं। नेटवर्क की खराबी के कारण कई बार उपभोक्‍ताओं को दो बार पेंमेट करना पड़ता है। मोबाइल कंपनियों को दंडित करने के लिए कोई ठोस कानून नहीं बना है।

सरकार की ओर से ही दो तरह की जो बातें हो रही हैं उससे कैशलेस अर्थव्यवस्था को लेकर संशय के बादल मंडरा रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 तक भारत में 500 अरब डॉलर की डिजिटल पेंमेट अर्थव्यवस्था हो जाएगी जो जीडीपी का 15 फीसद है। इंटरनेट की सबसे बड़ी कंपनी द्वारा भारत में 4.29 लाख करोड़ के व्यापार की रिपोर्ट है और सिर्फ छह हजार करोड़ की आमदनी पर टैक्‍स देने के बावजूद सरकार चुप है। पेटीएम के कारोबार में 700 फीसद का इजाफा हुआ है। नोटबंदी के बाद सिर्फ एक फीसद शेयर बेचकर पेटीएम के मालिक ने 325 करोड़ रुपये कमाए हैं। एसोचैम द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक कैशलेस अभियान से जीडीपी में 1.5 फीसद से अधिक की गिरावट से लाखों लोग बेरोजगार हो सकते हैं। इंटरनेट कंपनियों को व्यापार करने के लिए भारत में ऑफिस और सर्वर स्थापित करने की बाध्यता का कानून यदि बन जाए तो मेक इन इंडिया अभियान को सफलता मिल सकती है। कैशलेस या लेसकैस की व्यवस्था के प्रसार से छोटे कारोबारी जीएसटी के दायरे में आ जाएंगे, पर नोटबंदी से अगर मंदी आ गई तो फिर अर्थव्यवस्था कैसे उबरेगी? 

(लेखक साइबर विशेषज्ञ और विधिवेत्ता हैं)

बैंककर्मियों के सहयोग को क्‍यों नकारें

नोटबंदी को लेकर सरकार ने जो फैसला किया उसके बाद आम आदमी को दिक्‍कत न हो इसके लिए बैंककर्मियों ने पूरा सहयोग किया। कुछ बैंककर्मियों के गलत कारनामों के कारण सभी को गलत नहीं कहा जा सकता। सरकार के फैसले के बाद बीमार बैंककर्मी से लेकर जरूरतमंत कर्मचारियों की भी छुट्टिïयां रद्द कर दी गईं। रिटायर हो चुके कर्मचारियों की सेवाएं ली गईं। 24-24 घंटे कर्मचारियों ने काम किया लेकिन कुछ बैंकों ने ही ओवरटाइम का प्रावधान किया। उसके बाद भी बैंककर्मी डटे रहे। लोगों के गुस्से का सामना करते हुए ऐसे पुराने नोटों को बदला जिसे हाथ में पकड़ते ही एलर्जी हो जाती थी। जिस बैंक कर्मचारी ने कभी कैश का काम नहीं किया मजबूरी में उसे भी काम करना पड़ा। नोट गिनते समय कुछ चूक भी हुई। कहीं कैश ज्यादा हो गया तो कहीं कम। बैंकों में बड़ी मात्रा में जमा हो रही धनराशि को गिनने के लिए मशीन नहीं उपलद्ब्रध थी और न ही रखने का प्रबंध था। उसके बावजूद बैंककर्मी अपने काम में जुटे रहे। कई बैंककर्मी तो घर दूर होने के कारण कई-कई रात बैंकों में ही रुके रहे। सुरक्षा के नाम पर कोई सुविधा नहीं उपलद्ब्रध कराई गई। इसलिए कई जगहों पर बैंककर्मियों के साथ दुव्र्यवहार भी किया गया। आज स्थिति सामान्य हो रही है। बैंककर्मियों ने जो योगदान दिया उसे नकारा नहीं जा सकता। आज बैंक में कर्मचारियों की कमी है। फिर भी उन्होंने ईमानदारी से काम किया। नवंबर 2017 में बैंक कर्मचारियों का वेतन समझौता प्रस्तावित है। केंद्र सरकार को भी इस पर विचार करना चाहिए।

क्‍योंकि आज केंद्र सरकार की जो भी योजनाएं बैंकों के जरिए संचालित हो रही हैं बैंककर्मी ईमानदारी से उन योजनाओं का संचालन कर रहे हैं। इसलिए बैंककर्मियों की भी समस्याओं पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।

अश्विनी राणा उपाध्यक्ष, नेशनल आर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स

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