Advertisement

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में अगड़ी जातियां नहीं

नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष बना कर यादवों को रिझाने की कोशिश कितनी सफल होगी
बिहार भाजपा के बड़े नेता

बि हार में नित्यानंद राय को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाने के बाद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से अगड़ी जातियों की पकड़ समाप्त हो गई है। उन्हें महेंद्र पांडेय की जगह पार्टी की कमान सौंपी गई है। विधान परिषद में पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी तो विधान सभा में प्रेम कुमार पार्टी के नेता हैं। मोदी पिछड़ी तो कुमार अति पिछड़ी जाति से आते हैं। राय को अध्यक्ष बना कर पार्टी यादव जाति के बड़े वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करना चाहती है।

बिहार विस चुनाव में करारी हार के एक वर्ष बाद प्रदेश भाजपा में बड़ा बदलाव हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने मिशन 2019 को ध्यान में रखते हुए पार्टी संगठन में बदलाव शुरू कर दिया है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने मंगल पांडेय के स्थान पर संघ से जुड़े नित्यानंद राय को प्रदेश भाजपा की बागडोर थमाकर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया है।

वैसे प्रदेश संगठन में बदलाव महागठबंधन की काट माना जा रहा है। सही मायने में भाजपा की केंद्रीय टीम माकूल समय का इंतजार कर रही थी। जब प्रदेश में लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी सरीखे विरोधी दलों के नेताओं की टीम गोलबंद होने लगी तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने विरोधी दलों के लिए 'मारक नीति’ अपनाते हुए पार्टी सांसद नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष की कमान थमा दी। सभी विकल्पों को तलाशने के बाद भाजपा ने जातीय समीकरण व सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखकर नए प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी की है। उजियारपुर से सांसद राय आलाकमान की नजर में संघ के भरोसेमंद कार्यकर्ता हैं, साथ ही प्रदेश के बड़े वोट बैंक यादव समुदाय से आते हैं। पिछले विस चुनाव में यादव वोट बैंक का झुकाव पूरी तरह से राजद की ओर था इसलिए नित्यानंद राय को भाजपा की बागडोर सौंप कर यादव वोट बैंक का भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण करना नए बदलाव का मुख्य उद्देश्य हो सकता है। फिलहाल भाजपा को टक्‍कर देने वाले प्रमुख दल राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे हैं, दूसरी ओर नीतीश की अगुआई वाले जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह हैं। उधर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी हैं। जदयू, राजद व कांग्रेस महागठबंधन के तीनों घटक दलों के प्रदेश अध्यक्ष यादव से इतर जाति के हैं। ऐसे में भाजपा की कमान यादव को सौंपना दूरगामी नीति का हिस्सा हो सकता है। वैसे भाजपा का नित्यानंद को कमान सौंपना संघ के सर संघचालक मोहन भागवत के उस बयान की क्षतिपूर्ति के रूप में भी देखा जा सकता है। विस चुनाव के दौरान भागवत ने आरक्षण पर बयान दिया था। राजनीतिक तौर पर समझा यह जा रहा है कि मोहन भागवत के आरक्षण पर पुनर्विचार करने वाले बयान से भाजपा को भारी क्षति उठानी पड़ी थी। बिहार में सांगठनिक तौर पर किए गए इस परिवर्तन से तो यह तय ही है कि पार्टी ने प्रदेश में पिछड़ी जाति के लोगों में अपनी पैठ मजबूत करने की दिशा में यह कदम उठाया है। इसका कारण यह है कि भागवत के बयान के बाद पिछड़ी जाति के अधिकतर लोगों ने नाराज होकर राजद, जदयू और अन्य दूसरी पार्टियों की ओर अपना रुख कर दिया। भाजपा के बिहार प्रदेश के नेताओं समेत वरिष्ठ नेताओं को भी यह आभास हो रहा था कि भागवत के बयान के बाद पिछड़ी जाति के आक्रोशित लोगों में दोबारा पैठ बनाने के लिए परिवर्तन करना जरूरी है। बहरहाल भाजपा आलाकमान की ओर से किया गया यह परिवर्तन इस मायने में राजनीतिक तौर पर अहम है कि बिहार की पिछड़ी जाति के लोगों में यादव, कुर्मी और कोइरी आदि जातियों की अपनी अलग पहचान और राजनीतिक पैठ है। यहां की राजनीतिक दशा व दिशा तय करने में पिछड़ी जाति के इन ताकतवर जमात के लोगों की भूमिका अहम मानी जाती है। जाहिर है कि बिहार की राजनीति में जाति फैक्‍टर काफी मायने रखता है। इससे पहले भी जब देश में मंडल-कमंडल का दौर था, तब भी बिहार में भाजपा ने राजनीतिक प्रयोग किया था। उस समय भी आयोग के फैसले का विरोध करने पर बिदके पिछड़ी जातियों को अपने पक्ष में करने के लिए नंदकिशोर यादव को कमान सौंपी गई थी।

हालांकि नित्यानंद राय के सामने चुनौतियां भी काफी है। सबसे पहले तो कम उम्र के होने के कारण उन्हें वरिष्ठ नेताओं का भरोसा हासिल करना होगा, जो इतना आसान भी नहीं है।  क्‍योंकि वे राज्य स्तरीय नेता नहीं हैं। साथ ही उन्हें प्रदेश के युवा कार्यकर्ताओं का भी विश्वास जीतना है। बहरहाल सांसद नित्यानंद पर दांव लगाने का मतलब साफ है कि भाजपा की नजर राजद प्रमुख लालू प्रसाद के परंपरागत वोट बैंक पर है। पार्टी आलाकमान की अपेक्षाओं पर नित्यानंद कितना खरे उतरेंगे यह तो समय बताएगा मगर इतना साफ  है कि सामाजिक समीकरण को साधने की कोशिश में भाजपा को अपने पंरपरागत वोट बैंक को बरकरार रखने की चुनौती भी कम नहीं होगी।

Advertisement
Advertisement
Advertisement