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इंटरनेट के जरिए खपती काली कमाई

बिटक्‍वाइन वालेट जैसे एप के जरिए काला धन रखने वाले करोड़ों रुपयों का ऑनलाइन लेन-देन बिना सरकार या रिजर्व बैंक की निगाह में आए कर रहे हैं
गैरकानूनी ऑनलाइन लेन-देन अब जोर पकड़ रहा है

भा रत में एक समानांतर काली अर्थव्यवस्था चिरकाल से मौजूद है। विश्व बैंक ने वर्ष 1999 में भारत के लिए इस समानांतर अर्थव्यवस्था के आकार का आकलन किया था जो कि तब जीडीपी का  20.7 प्रतिशत था और 2007 में यह बढक़र 23.2 प्रतिशत हो गया। पिछले दशक में भारतीयों को आसमान छूती महंगाई का सामना करना पड़ा, जिसने समानांतर अर्थव्यवस्था की वृद्धिमें और मदद की जो कि भारत की वास्तविक अर्थव्यवस्था को खत्म करती जा रही है। अत्यधिक महंगाई अन्य वर्गों की अपेक्षा गरीबों और मध्यम वर्गों को ज्यादा प्रभावित करती है। यह सरकार को कानूनी तौर पर राजस्व प्राप्त करने से भी वंचित करती है, जिससेकल्याणकारी और विकास की गतिविधियों पर असर होता है।

इसलिए इस तथ्य को समझते हुए भारत सरकार ने काले धन के प्रसार पर लगाम लगाने के लिए 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को अचानक खत्म कर दिया। मगर इससे पहले एक कदम के तौर पर ब्‍लैक मनी एमनेस्टी स्कीम को पहली बार आरंभ किया गया था। यह काले धन का इस्तेमाल करने वाले लोगों को व्यवस्था के अंदर लाने का एक अवसर भी था। मेरे विचार से ऐसा महत्वपूर्ण कदम हर दशक के बाद शुरू किया जाना चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था में आने वाले अंतर को पाटा जा सके। देश के अनेक गैर बैंकिंग घटक पूरी तरह से नगद अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं और यह उनकी जीवन-रेखा है। उदाहरण के तौर पर आपके घर में काम करने वाली नौकरानी, जो कि अपने रोजमर्रा के खर्च के लिए नगदी पर ही निर्भर है, ठीक ऐसा ही गलियों में सब्‍जी बेचने वाले के साथ भी है।

काले धन की छाया के अन्य स्रोतों में भ्रष्टाचार और अन्य तरीके भी हैं। मैं इनके और विस्तार में नहीं जा रहा हूं। आप रीयल इस्टेट और छोटे व्यापारियों की तरफ नजर घुमाकर देख सकते हैं कि वे अनेक टैक्‍स विभागों से आसानी से बच निकलते हैं। इनके लिए रीयल इस्टेट और सोने में पैसा लगाना एक बड़े मुनाफे का काम होता है। जो लोग और नए तरीके से काला धन छिपाना चाहते हैं उनके लिए आज ऑनलाइन एप मौजूद हैं। आप इसके लिए बिटक्‍वाइन वालेट अथवा डार्कनेट या और ज्यादा कुछ आसानी से खोज सकते हैं।

बिटक्‍वाइन 2009 में निर्मित एक क्रिप्टो मुद्रा है जो कि बिना किसी क्रेडिट कार्ड अथवा केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के विविध प्रकार के ट्रांजेक्‍शन कर सकती है।  बिटक्‍वाइन एक डिजिटल करंसी है जो कंप्यूटरों के जरिए ही निर्मित की गई है और इसका मूल्यांकन पद्ब्रिलक लेजर के जरिए किया जाता है। अमेरिका, ब्रिटेन और चीन के कई लोग शेयर बाजारों के जोखिम से बचने के लिए बिटक्‍वाइन में निवेश करते हैं। इस पैसे को किसी भी दूसरी डिजिटल मुद्रा की तरह सामान और सेवाओं मसलन कॉफी, रेस्तरां में भोजन या कपड़े खरीदने के लिए भुगतान में इस्तेमाल किया जा सकता है।

प्रवासी भारतीयों द्वारा अपने मूल देश में भेजे जाने वाले धन के मामले में भी बिटक्‍वाइन का प्रभाव महसूस किया जा रहा है। ये भारतीय अब पारंपरिक चैनलों की जगह पर बिटक्‍वाइन के जरिए पैसा भेजना मुफीद समझ रहे हैं, हालांकि इसमें काले धन की गुंजाइश बरकरार रहती है। पेपाल जैसी व्यवस्था के बदले बिटक्‍वाइन को पसंद करने की मुख्‍य वजह कम ट्रांजेक्‍शन शुल्क और कम पेपर वर्क है। बिटक्‍वाइन इन लोगों को इंटरनेट के जरिए और ब्‍लॉकचेन तकनीक की मदद से पैसे भेजने का अवसर देता है। इसका प्रयोग बेहिसाब धन रखने वाले लोग इस व्यवस्था से मिलने वाली सुविधाओं के लिए करते हैं। हालांकि सरकार के ताजा फैसले के बाद बिटक्‍वाइन के बारे में जानकारी लेने के लिए बढ़ती संख्‍या के कारण इसकी कीमत में भी 5 से 10 फीसदी का उछाल आ गया है। आपको यह जानने की जरूरत है कि इसके उपयोगकर्ता इंटरनेट की मदद से मुद्रा को हस्तांतरित कर सकते हैं। इस प्रकार के वॉलेट का उनके द्वारा प्रयोग किया जाता है जो बेहिसाब काला धन अपने पास रखते हैं। बिटक्‍वाइन अर्थव्यवस्था ऐसी है जिसमें हर समय धन का लेन-देन होता रहता है। इसमें नेटवर्क के सदस्यों के बीच वैधता और प्रामाणिकता की आवश्यकता होती है। प्रामाणिकता की प्रक्रिया बहुत ही मामूली है जो कि हर कुछ ही मिनटों में बिटक्‍वाइन नेटवर्क में हो रहे सभी तरह के लेन-देन के लिए एक ब्‍लॉक का निर्माण करती है। इस नेटवर्क के बैंक अथवा सदस्य ब्‍लॉकचेन टेक्‍नोलॉजी के अंतर्गत लेन-देन के प्रदर्शन के लिए गुप्त रखे जाते हैं। ये इतने ज्यादा सुरक्षित होते हैं कि समानांतर अर्थव्यवस्था में इनको उच्च डिग्री के डिजिटाइजेशन पर रखा जाता है।

बिटक्‍वाइन के माध्यम से धन के लेन-देन को समझने के लिए आप जेबपे के बारे में जान सकते हैं जो कि एक मोबाइल बिटक्‍वाइन कंपनी है, जो इस प्रकार के लेन-देन का हस्तांतरण करती है। इनके जरिए लेन-देन इतना गंभीर मसला है कि भारत में इनके नियमन के लिए नियामक रखे जाने की सख्‍त जरूरत है। इनको एक परिसंपत्ति अथवा मुद्रा के रूप में निर्धारित करने से यानी भारतीय मुद्रा में वापस लाने से कराधान पर भी प्रभाव पड़ेगा। हमेशा दो कदम आगे रहने वाले इस तरह के धोखेबाजों पर लगाम लगाने के लिए सरकार को भी नए तरीके निकालने होंगे ताकि विद्यमान समानांतर काली अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण किया जा सके। आखिरकार यदि किसी के पास डिजिटल तरीके से 5 करोड़ की मुद्रा छिपाने का विकल्प है तो वह भला नगद इतना पैसा अपने पास क्‍यों रखेगा।

 (लेखक आउटलुक मनी के संपादक हैं)

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